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गणतंत्र की कहानी, तारीख की जुबानी

गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को ही क्यों?

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211 विद्वानों द्वारा 2 महीने और 11 दिन में तैयार भारत के संविधान को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्व था। 26 जनवरी एक विशेष दिन के रूप में चिन्हित किया गया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1930 के लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था। साथ-साथ एक और महत्वपूर्ण फैसला इस अधिवेशन के दौरान लिया गया।

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इस दिन सर्वसम्मति से यह फैसला लिया गया था कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन 'पूर्ण स्वराज दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सभी स्वतंत्रता सेनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे। इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था

31 दिसंबर 1929 की मध्यरात्रि को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लाहौर में अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में पहली बार तिरंगा फहराया गया।

25 नवंबर 1949 को देश के संविधान को मंजूरी मिली। 26 जनवरी 1950 को सभी सांसदों और विधायकों ने इस पर हस्ताक्षर किए और इसके दो दिन बाद यानी 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू कर दिया गया।

भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को इंडियन स्टैंडर्ड टाइम के अनुसार 10 बजकर 18 मिनट पर लागू हो गया।

लिखित संविधान में कई बार संशोधन होने के बाद इसे अपनाने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा।

26 जनवरी 1950 को डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाउस के दरबार हाल में भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। इर्विन स्टेडियम में झंडा फहराया गया। यही पहला गणतंत्र दिवस समारोह था। मुख्य अतिथि थे इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो।

गणतंत्र दिवस मनाने का वर्तमान तरीका 1955 में शुरू हुआ। इसी साल पहली बार राजपथ पर परेड हुई। राजपथ परेड के पहले मुख्य अतिथि पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद थे।

संविधान में संघ एवं राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन कनाडा के संविधान से लिया गया है।

सोवियत संघ के संविधान से मूल कर्तव्य और आस्ट्रेलिया के संविधान से समवर्ती सूची ली गई है।

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गणतंत्र दिवस के मौके पर राजपथ पर तिरंगा फहराया जाता है। फिर राष्ट्रगान गाया जाता है और 21 तोपों की सलामी होती है।

भारतीय संविधान में आपात उपबंध व्यवस्था जर्मनी के संविधान की गई है।

डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता में बनाया गया भारतीय संविधान 395 अनुच्छेदों और 8 अनुसूचियों के साथ दुनिया में सबसे बड़ा लिखित संविधान था जो और भी विस्तृत हो चुका है।

1950 से 1954 के बीच गणतंत्र दिवस का समारोह कभी इर्विन स्टेडियम, किंग्सवे, लाल किला तो कभी रामलीला मैदान में हुआ था न कि राजपथ पर।

वर्ष 1950 से 1970 के दौरान गुट निरपेक्ष आंदोलन और पूर्वी ब्लॉक या कम्युनिस्ट ब्लॉक के सदस्य देशों के प्रतिनिधियों की मेजबानी करवाई गई तो शीत-युद्घ के पश्चात पश्चिम देशों को न्यौता दिया गया।

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