हमें गर्व है कि विश्व का सबसे बड़ा संविधान हमारे देश का है। जो डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा रचित और हस्तलिखित पाण्डुलिपि में श्री प्रेम बिहारी रायजादा जी द्वारा निर्मित है। जो 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में तैयार किया गया था। 26 जनवरी, 1950 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण कर, भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया था।
गणतंत्र दो शब्दों से मिलकर बनता है जो 'गण' अर्थात् जनता और 'तंत्र' अर्थात् शासन से है। गणतंत्र में जनता का ,जनता के लिए व जनता के द्वारा किया जाने वाला शासन होता है। हमारे देश में जनता के लिए बनाया गया संविधान लचीले संविधान की श्रेणी में भी आता है। जो समय-समय पर विशेष प्रक्रिया द्वारा जन हितार्थ में परिवर्तित किया जा सकता है। यह एक उत्तम संकेत है कि समय-समय पर देश, काल, परिस्थितियों के आधार पर लोकतंत्र की मूल भावना अक्षुण्ण रहे। वैसे भी राष्ट्र में नियम कायदे तो जनमानस के लिए ही होते हैं तो उनका सहर्ष पालन भी जनता द्वारा होने पर ही गणतंत्र सफल है।
हमें हमारे संविधान की वृहदता यह भी याद दिलाती है कि हमें अपने अधिकार व कानून दिलवाने में कई अमर शहीदों ने अनेकों संघर्ष किए हैं।
यहाँ मैं कहूँगी कि-
"आओं शत्-शत् वंदन करें शहीदों को,
जिन्होंने आजा़दी की मंजिल दिलवाई।
उन्होंने बहाया रक्त का कतरा-कतरा
तब हमने आज़ाद हवाओं में श्वासें पाई।"
इससे हम देशवासी संविधान के प्रति संकल्पित और प्रेरित होते है कि हमें इसके नियम कायदों का पालन करते हुए अपने देश को हर क्षेत्र में उन्नति, उत्कृष के नए शिखर पर ले जाना है तथा उसके प्रति सदैव समर्पित भाव रखते हुए निरंतर प्रगतिशील बनाना है।
हमारी भारतीय संस्कृति जो पहले से ही उत्कर्ष व वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से ओतप्रोत रही है उसी को ध्यान में रखकर लिखा गया हमारा संविधान जिसमें उस समय 395 आर्टिकल, 8 अनुसूचियाँ थी। जो 22 भागों में चर्म पत्र पर लिखी गयी थी ताकि 1000 साल बाद भी वह अपना मूल स्वरूप ना खोए।
हमारा संविधान जनता के हित में तैयार किया गया तंत्र है। साथ ही हमारी भारतीय संस्कृति, मर्यादाएं जो अक्षुण्ण थी, है और रह सके इसलिए नीति सिद्धांतों के आधार स्तम्भ पर इसे निर्मित किया गया है। हमारे यहाँ जाति, धर्म से उठकर सभी को बराबरी के मौलिक अधिकार प्रदान किए गए है।
हमारे देश में कानून के अंतर्गत कोई भी छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब व ऊँच-नीच नहीं है बल्कि इन सबसे बढ़कर सभी समान अधिकारों से युक्त हो, समानता के अधिकारी है। हमारे देशवासियों को पूर्ण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है। विधि के अंतर्गत सभी अपनी गलतियों के लिए एक समान दण्ड के अधिकारी भी है। यहाँ बड़ी बात इसलिए भी है कि हमारे देश की संस्कृति में इतने बहुआयामी विविधता के रंगों का समावेश है।
जहाँ विश्व की द्वितीय सबसे अधिक जनशक्ति रहती है। जहाँ हर 5 कि.मी. पर भाषा, खानपान, नृत्य, संगीत, गायन, वादन, कलाएं व पहनावा बदल जाता है तो ऐसी बहुरंगता में इतनी कानून कायदों की समानता होना अपने आप में अद्वितीय ही है। इसका यहीं गुण तो हमारे महान संविधान के गुणगान गाने को स्वतः प्रेरित करता है।
हमें चाहिए कि देश के निरंतर विकास के लिए हम और विशेषतः युवा पीढ़ी अग्रणी बने क्योंकि किसी भी देश की उन्नति का सबसे बड़ा कारक वहाँ के युवा ही होते है। हम इस बात में भी विश्व में सबसे अधिक भाग्यशाली है कि हमारे यहाँ युवा पीढ़ी की आबादी सबसे अधिक है और इसलिए भारत भी युवा है। हमारे देश से शिक्षित युवा ना केवल देश में अपितु पूरे विश्व में अपने ज्ञान से उन्नत सेवाएँ दे रहे है। हमारी आर्थिक उन्नति के लिए भी हमारा युवा वर्ग बहुत बड़ा कारण है।
इसके अलावा हमारे देश में प्रकृति ने जो अनमोल व उत्तम उपहार प्रदान किए है उससे भी हमारे देश की उन्नति हो रही है, हमारे यहाँ के हैरिटेज व्यापार विश्वव्यापी स्वरूप ले रहे है, हमारे देश का कृषि प्रधान होना भी हमारी समृद्धि को चार चाँद लगाता है।
हमारे यहाँ की संस्कृति की महानता पूरा विश्व मानता है। जो करोनाकाल में हमने प्रत्यक्ष रूप से देखी भी है। हम सदैव सभी धर्मो का आदर करते हुए, सकल मानवजाति को सम्यक रूप से देखते हैं।
कुछ विघ्नसंतोषी ताकतों के कारण हमारे देश की अखण्डता, खण्डित हुई और अनेक पड़ोसी देश जैसे- बांगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि बन गए। हमारा अखण्ड भारत खण्ड-खण्ड हुआ। जो हम भारतीयों के लिए शोकग्रस्त व घातक भी बना। हमारे यहाँ लगभग 60 सालों में देश में प्रजातंत्र होने के बाद भी राजतंत्र जैसी स्थितियाँ दर्शनीय रही।
फिर देश के महापुरुषों ने एक ऐसे संघ को स्थापित किया जिससे देश सही मायने में संगठित होने की दिशा में बढ़ा। यहाँ वास्तविक एकता की भावना पर जोर दिया गया। जो भारत अपनी धर्म, भाषा, संस्कृति के महत्व को भूल सुप्तावस्था में जा रहा था उसे जागृत करने में संघ ने महत्ती भूमिका का निर्वहन किया।
आज भारत की धर्म, संस्कृति का युवा पीढ़ी में पुनः उदय हो रहा है। जो नवचेतना से नवभारत का अप्रतीम उदाहरण बन रहा है। संघ के नियमों से जन-जन में देशभक्ति की भावना बढ़ रही है। संघ संविधान का आदर करते हुए गणतंत्र के सही मायने सिखा रहा है। उससे जनता संविधान में लिखित अपने अधिकारों के प्रति सजग हो रही है और वास्तविक लोकतंत्र के महत्व को जान रही है।
अब जो लहरे संघ विचारधारा के रूप में उठी है वह अपने क्रियाकलापों व देशसेवा भावना से अखण्ड भारत के सपने को साकार करने में लगी है। संघ द्वारा लोक संस्कृति को बलवती करने के लिए निरंतर प्रयास हो रहे है जिससे वह दिन भी दूर नहीं होगा जब हम पुनः विश्वगुरू बन विश्व का मार्ग दर्शन करेंगे।
अभी हमने चलना शुरू ही किया है तो देश प्रगति के मार्ग पर है। प्रतीक्षा है उस दिन की, कि जब हम दौड़े और विश्व आदर से हमारे पथ का अनुगमन करें।
अब अंत में इतना ही ....
"हम हमारे भारत वर्ष का सम्मान करते हैं,
सदा अपनी मातृभूमि का गुणगान करते हैं,
देवभूमि देश है जहाँ राम,कृष्ण जन्म लेते,
गर्व हमें, हम भू के स्वर्ग पर निवास करते हैं।"
©®सपना सी.पी.साहू "स्वप्निल"
इंदौर (म.प्र.)