भारतीय कंपनियों में विदेशी परिसंपत्तियों का आकर्षण इस साल काफी बढ़ता देखा गया। साल 2010 के दौरान भारतीय कंपनियों ने 55 अरब डॉलर मूल्य के विलय एवं अधिग्रहण सौदे किए। खास बात यह है कि अरबों डॉलर मूल्य के सौदे रिकॉर्ड संख्या में हुए।
यदि 2010 को पीछे मुड़कर देखा जाए, तो यह साल विलय एवं अधिग्रहण सौदों की दृष्टि से भारतीय कंपनियों के लिए काफी शानदार रहा है। विलय एवं अधिग्रहण सौदों में भारतीय कंपनियों ने 2007 के रिकॉर्ड को तोड़ दिया गया है। खास बात यह है कि बड़े मूल्य के विलय एवं अधिग्रहण सौदों का दौर इस साल एक बार फिर से लौट आया। इस साल एक अरब डॉलर से अधिक मूल्य के नौ सौदे हुए।
डील रिपोर्टर एशिया प्रशांत के सहायक संपादक फ्रेनी पटेल ने कहा कि भारतीय कंपनियाँ उतना मूल्य चुकाने को तैयार हैं, जो उन्हें लगता है कि सही मूल्यांकन है। वे सिर्फ मोलभाव वाले सौदे ही नहीं कर रही हैं, बल्कि वे आर्थिक मंदी का लाभ उठाने को भी तैयार हैं। वास्तव में विकसित देशों की कई घाटा उठाने वाली कंपनियाँ खुद की बिक्री के लिए तैयार हैं।
विलय एवं अधिग्रहण क्षेत्र में भारतीय कंपनियों की मुख्य मंशा विदेशों में परिसंपत्तियों का अधिग्रहण करने की रहती है। 2010 के दौरान भारतीय कंपनियों ने विदेशी बाजारों में 27.25 अरब डॉलर के विलय एवं अधिग्रहण सौदे किए। उनका मुख्य मकसद अपनी बाजार हिस्सेदारी का विस्तार करना था। जैसा कि भारती जईन सौदे में नजर आया। इसके अलावा रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा, जिंदल और कोल इंडिया ने भी दीर्घावधि के लिए कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करने को विदेशी बाजार में संपत्तियों का अधिग्रहण करने की कोशिश करते दिखे।
ग्रांट थार्नटन इंडिया के विशेषज्ञ सलाहकार सेवा भागीदार सीजी श्रीविद्या ने चेताते हुए कहा कि यह बात महत्वपूर्ण है कि बेहतर मूल्यांकन वाले सौदे किए जाएँ। ऐसा नहीं होता है, तो खरीदार को अच्छा रिटर्न नहीं मिल पाएगा। भारतीय कंपनियों ने दक्षिण अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर में विलय एवं अधिग्रहण सौदे किए।
इस साल हुए कुछ और महत्वपूर्ण सौदों में हीरो होंडा संयुक्त उपक्रम के बीच 26 साल से चली आ रही दोस्ती का टूटना और जेएसडब्ल्यू स्टील द्वारा 2,157 करोड़ रुपए के सौदे में इस्पात इंडस्ट्रीज की करीब 40 फीसद हिस्सेदारी का अधिग्रहण था। हीरो होंडा के संयुक्त उपक्रम से होंडा के बाहर निकलने के सौदे के मूल्य का खुलासा नहीं हो पाया है।
बैंकिंग क्षेत्र में पिछले करीब डेढ़ साल से विलय एवं अधिग्रहण गतिविधियाँ देखने को नहीं मिल रही थी। पर इस साल यह सूखा समाप्त हो गया। बैंक ऑफ राजस्थान को निजी क्षेत्र के सबसे बड़े आईसीआईसीआई बैंक में विलय हुआ। इस सौदे का मूल्य करीब 1,500 करोड़ रुपए रहा।
शोध कंपनी वीसीसीएज के अनुसार, इस साल जनवरी से 15 दिसंबर तक कुल 54.6 अरब डॉलर के विलय एवं अधिग्रहण सौदे हुए। यह आँकड़ा 2007 के 42 अरब डॉलर से भी अधिक रहा है। (भाषा)