Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

लगा जैसे पूरा देश अभिनव बिंद्रा को देख रहा था...

Advertiesment
हमें फॉलो करें Other Sports News
31वें रियो ओलंपिक खेलों में सोमवार के दिन जब भारत की पदक तालिका सूनी थी और ढलती शाम रात में तब्दील हो रही थी, तब पूरा देश टकटकी लगाए और सांस रोके अभिनव बिंद्रा का 10 मीटर एयर राइफल मुकाबला देख रहा था। चूंकि पदक तालिका में भारत के आगे शून्य टंगा हुआ था, तब ये उम्मीद जगी कि शायद अभिनव कोई चमत्कार करके भारत का खाता सोने के तमगे से खोल दें। 
क्वालिफिकेशन राउंड में अभिनव बिंद्रा सातवें स्थान पर थे लेकिन फाइनल राउंड में एक के बाद एक निशानेबाज अंकों के खेल में पिछड़कर बाहर होते रहे। आखिरकार बिंद्रा और यूक्रेन के निशानेबाज सेरही कुलिश के बीच टाइब्रेकर हो गया। फाइनल निशाना साधने में बिंद्रा एकाग्रता खो बैठे। बिंद्रा का निशाना 10.0 अंक ही हासिल कर पाया जबकि यूक्रेनी निशानेबाज 10.5 अंकों के साथ उनसे आगे निकल गए। 
 
हताश बिंद्रा ने बुझे हुए मन से हाथ हिलाकर 'गुडबाय' कहा...यह विदाई सिर्फ रियो से नहीं थी, बल्कि ओलंपिक करियर से थी। बिंद्रा का यह तीसरा और आखिरी ओलंपिक था..इसके बाद वे कभी ओलंपिक की शूटिंग रेंज में नजर नहीं आएंगे। बिंद्रा इस समय उम्र के 33वें पड़ाव पर हैं। वे भारतीय ओलंपिक इतिहास में एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने व्यक्तिगत मुकाबले में स्वर्ण पदक अपने गले में पहना। 
 
साल 2008 के बीजिंग ओलंपिक खेलों में बिंद्रा ने जब स्वर्ण पदक जीता था, तब पूरा देश खुशी से झूम उठा था। बिंद्रा से उम्मीद रखी जा रही थी कि वे 2012 में लंदन ओलंपिक बीजिंग की कहानी को फिर से दोहराएंगे, लेकिन वे फाइनल के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाए। लंदन ओलंपिक में गगन नारंग ने कांस्य पदक जीतकर भारतीय निशानेबाजों की कुछ हद तक लाज बचाई। 
 
रियो ओलंपिक में भारत का 118 सदस्यों का दल उतरा है और ओलंपिक के उद्‍घाटन के चार दिन बाद भी भारत की पदक तालिका सूनी ही रही। चूंकि बिंद्रा ओलंपिक के प्रेशर को आसानी से झेलने वाले इंसान हैं, लिहाजा सबसे ज्यादा उन्हीं से उम्मीद थी कि वे स्वर्ण पदक जीतकर खाता खोलेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। 
 
बिंद्रा ने अपना पूरा ध्यान मुकाबलों पर लगा रखा था। पिछले एक महीने से वे सोशल मीडिया से भी दूर थे। आज यदि वे पदक नहीं जीत पाए और चौथे स्थान पर रहे, तो इसका जितना दु:ख पूरे देश को हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा वे खुद दु:खी होंगे। जिन लोगों ने उनका लाइव मुकाबला देखा होगा, वे जानते होंगे कि टाइब्रेकर में कितना ज्यादा तनाव था। थोड़ी सी चूक ने बिंद्रा को पदक से वंचित कर दिया। लेकिन आज जिस पायदान पर बिंद्रा खड़े हैं, वहां तक पहुंचना ही एक सपना रहता है। बिंद्रा के पदक न जीत पाने का मलाल बिलकुल नहीं है, हमें उनके अंत तक लड़ाई लड़ने के जज्बे को सलाम करना चाहिए। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रियो ओलंपिक 2016 : पदक तालिका