नई दिल्ली। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को रियो में ओलंपिक खेल गांव में प्रवेश करते ही वही अहसास हुआ जैसा उन्हें 1998 में कुआलालम्पुर में राष्ट्रमंडल खेलों के खेल गांव में भाग लेने गई भारतीय क्रिकेट के साथ हुआ था।
तेंदुलकर ने कहा, 'मेरे जहन में वही याद ताजा हो गई जो तब खेल गांव में घुसते समय हुई थी। 1998 राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा होने के साथ ही जो यादें थी वो ताजा हो गईं। लेकिन इन खेलों की भव्यता की तुलना नहीं की जा सकती। लेकिन खेलों के दौरान की उर्जा और जज्बा 1998 की तरह ही है, चैम्पियन खिलाड़ियों के आस पास का माहौल भी अलग नहीं है।
तेंदुलकर उस भारतीय टीम का हिस्सा थे जिसने 1998 राष्ट्रमंडल खेलों में शिरकत की थी, एकमात्र इसी राष्ट्रमंडल खेल के कार्यक्रम में क्रिकेट इसका हिस्सा था। तेंदुलकर भारतीय ओलंपिक दल के सद्भावना दूतों में से एक हैं, उन्होंने एथलीटों से बात की और उन्हें शुभकामनाएं दीं।
उन्होंने कहा, 'मैं ओलंपिक खेलों का कोई विशेषज्ञ नहीं हूं और निश्चित रूप से उन्हें सलाह नहीं दूंगा कि उन्हें अपनी स्पर्धाएं कैसे जीतनी चाहिए। ये सभी अपने अपने स्तर पर चैम्पियन हैं और जानते हैं कि प्रदर्शन करने के लिए क्या करने की जरूरत है। मैं उन्हें सिर्फ यह बताने के लिए वहां था कि पूरा देश शुभकामनाओं के साथ आपके साथ है। मैंने किसी विशेष खिलाड़ी से बात नहीं की क्योंकि वहां काफी खिलाड़ी मौजूद थे। हाकी खिलाड़ी वहां नहीं थे क्योंकि उनका मैच था। (भाषा)