विजय कुमार सप्पत्ती
देश-विदेश
बादलों के पार
सपनों के गाँव
यादों की गलियाँ
और ज़िंदगी की साँसें ...
बता तो क्या तू मेरे साथ वहाँ थी, जानां !!
कोई फूलों की झुकी हुई डाली ;
जिसे तुमने हँसते हुए छुआ हो...
किसी झरने की तेज आवाजें;
जिसने मुझे मुग्ध किया हो ...
कोई शांत बहती नीली नदी;
जिसमें हमने सपनों को तैरते देखा हो ...
कोई दहकती हुई सिन्दूरी शाम;
जिसने हमारी झोली रंगों से भरी हो
किसी अनजान देवता की आरती ;
जिसमें तुमने मेरे संग दिये सजाया हो ...
कोई गहरे लाल सूरज की किरणें ;
जो तेरे चेहरे पर पड़ रही हो ...
किसी शांत फुसफुसाते जंगल में
तुम्हारी मुस्कराहट की आवाजें हो ...
कोई अजनबी सा जाना शहर
जहाँ मैं तेरा नाम लेता हूँ...
बता तो क्या तू मेरे साथ वहाँ थी, जानां!!!
कहीं थरथराते हुए जिस्मों की आग हो;
जिसमें हम जल रहे हों ...
कहीं उखड़ते हुए साँसों के तूफान हो;
जिसमें हम बह रहे हों ...
कोई लबों के किस्से हो
कोई आँखों की बातें हो
कोई जिंदगी के अहसासों की रातें हो
जहाँ मैंने जिंदगी जिया था ...
बता तो क्या तू मेरे साथ वहाँ थी, जानां!!!