तुम्हारा एक चुटकी प्यार
दब रहा है
एक मुट्ठी गुस्से के नीचे
तुम्हारी एक पल की झलक
धुँधला रही है
एक युग की जुदाई के पीछे
तुम्हारा वह रत्ती भर का साथ
रूला रहा है
मन भर के परायेपन के साथ
बस नहीं मिट सकी
तुम्हारी एक मीठी-सी बात
लंबे-लंबे कड़वे संवाद के बाद।
सब टूट रहा है, भूल रहा है
और लरज जा रहा है,
बस नहीं बिसरा है आज भी
तुम्हारी याद का वह पहला मानसून
जो मन की भीगी क्यारियों में
आँखों से अब तक बरस रहा है।
समय के साथ सब पकता गया
और छुटता गया हाथ
लेकिन, है आज भी मेरे भीतर
वैसा ही कच्चा,
वैसा ही सच्चा, वह कुँवारा अहसास।
(फीचर डेस्क)