फाल्गुनी
शरद रात्रि में,
प्रश्नाकुल मन,
बहुत उदास,
कहता है मुझसे,
उठो, चाँद से बातें करो
और मैं,
बहने लगती हूँ
श्वेत चाँदनी में, तब,
तुम बहुत याद आते हो।
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तुम्हारी याद लगती है
भीगी चाँदनी में
ओस की
हर बूँद
तुम्हारी याद लगती है
जिसे छुआ नहीं जा सकता
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सिर्फ दो प्रश्न हैं मेरे जीवन में
एक तुम, दूसरा तुमसे जुड़ा हुआ