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यह मानसून, तुम बिन सून
फाल्गुनी
कानों में नटखट भौंरे की गुनगुन गूँज रही कोयल की धुनआँखों में अनगिन ख्वाबों को बुन रोती हूँ सुन सावनी रुनझुन इन्द्रधनुष के सब रंग चुन स्वप्न कैनवास को दिया सुकून मेरी मन-धरा पर बरसों बनके शीतल बूँद सब कुछ तो है पास हमारे बस, तुम बिन सून, यह मानसून।