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प्रेम गीत : मुस्कराओ न...

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सुशील कुमार शर्मा

देखो न इतने प्यार से कहीं सब्र न छलक जाए,
मुस्कुराने की इस अदा पर कहीं प्यार न हो जाए।


 
बहुत जज़्ब किया खुद को तेरे सामने न आऊं,
कहीं तू देखकर मुझको गले से न लिपट जाए।
 
रात को चांद सरगोशियां किया करता है,
ऐसा न हो चांद कहीं तुझ में ही सिमट जाए।
 
घने दरख़्तों के नीचे तेरी गोद में मेरा सिर हो,
तू खिलखिलाकर हंसे और मुझसे लिपट जाए।
 
दिल ने बहुत चाहा कि तुझे अपना कह सकूं,
न ज़माने की इज़ाज़त थी न मुझसे ही कहा जाए।
 
 

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