वो गया दफ़अतन कई बार मुझे छोड़के,
पर लौटकर फिर मुझ में ही आता रहा।
कुछ तो मजबूरियां थीं उसकी अपनी भी,
पर चोरी-छिपे ही मोहब्बत निभाता रहा।
कई सावन से तो वो भी बेइंतहा प्यासा है,
आंखों के इशारों से ही प्यास बुझाता रहा।
पुराने खतों के कुछ टुकड़े ही सही,
पर मुझे भेजकर अपना हक़ जताता रहा।
शमा की तरह जलना उसकी फितरत थी,
पर मेरी सूनी मंज़िल को राह दिखाता रहा।