मैं प्यासा एक प्रेमी हूं,
जो इधर-उधर भटकता हूं।
अपनी प्यारी प्रिया के गम में,
बिन बरसात तड़पता हूं।
मैं घर वालों के अरमानों का,
एक अनमोल सितारा था।
अपने घर वालों का प्यारा,
उनकी आंखों का तारा था।
पढ़ते-पढ़ते इश्क लगाया,
अब आंखों से आंसू छिड़कता हूं।
कुछ दिन तक मौसम मूक बना था,
सपने बहुत सजाए थे।
उसके प्यार में पींगे भरते,
सावन में गीत भी गाए थे।
वह दूर गई अब न आएगी,
यही सोचकर बिलखता हूं।
शायद उसकी शादी हो गई,
या दे दी होगी कूद के जान।
मैं तो उसका आशिक बन बैठा,
बन न सका प्यारा इंसान।
उसके ही ख्यालों में अब तक,
टूटे बाल झटकता हूं...!