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तांका : शब्दों की धार...
दिल का दर्द
सलीके से उतार
शब्दों की धार
कभी सैलाब बन
कभी गिरी गंभीर।
अबोध मन
अनबूझा संसार
खोखले शब्द
सहमे से उत्तर
सुलगते सवाल।
मेरा नसीब
न ही तुझे पाना है
न तुझे खोना
सुलगती रातों में
यादों से बतियाना।
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