- फाल्गुनी
नहीं दिखता तुम्हारी आँखों में
अब वो शहदीया राज
नहीं खिलता देखकर तुम्हें
मेरे मन का अमलतास,
नहीं गुदगुदाते तुम्हारी
सुरीली आँखों के कचनार
नहीं झरता मुझ पर अब
तुम्हारे नेह का हरसिंगार,
सेमल के कोमल फूलों से
धरती करती नहीं श्रृंगार
कई दिनों से उदास खड़ी है
आँगन की तुलसी सदाबहार,
रिमझिम-रिमझिम बूँदों से
मन में नहीं उठती सौंधी बयार
रुनझुन-रुनझुन बरखा से
नहीं होता है सावन खुशगवार,
बीते दिन की कच्ची यादें
चुभती है बन कर शूल,
मत आना साथी लौटकर
अब गई हूँ तुमको भूल।