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क्या तुम ही तन्हाई हो?

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हमें फॉलो करें कविता
-कुमार अमित 
 
अभी-अभी मेरे दिल में दी है किसी ने दस्तक,
जैसे तुम आई हो।

महसूस कर रहा हूं धीमी हवाओं का झोंका,
जैसे तुम पुरवाई हो।
मधुर धुन छेड़ी है किसी ने,
क्या तुम गुनगुनाई हो?
 
कितने हसीं थे वो पल जब तुम थीं मेरे साथ,
चल रहे थे जीवन डगर पे हम थामे इक-दूजे का हाथ।
साथ हंसते-गाते थे हम,
करते थे दुनियाभर की बात।
 
दुख में, सुख में साथ थे हम,
सुकून से कटती थी हर रात।
जीवन था आनंद भरा, प्यार भरा सौगात।
 
किसी ने शोर किया, टूट गया मेरा सपना,
पर अभी बाकी है पूरी रात।
ऐसा लगता है मानो ये सब,
कल ही की हो बात।
 
अरे ये क्या? मैं तो यहां अकेला हूं,
कोई नहीं है मेरे साथ।
याद आ गया है मुझको कि तुम,
कब का छोड़ चुकी हो मेरा हाथ।
 
अब कोई नहीं है मेरे पास यहां,
हंसने-मुस्कुराने को।
सारा दिन सताने को,
रूठने और मनाने को।
 
सारा समय अकेला बैठ करता रहता हूं खुद ही से बात,
याद करता हूं बीती बातें।
चाहे दिन हो, चाहे रात।
 
मेरे आस-पास कोई नहीं है,
बस यादों का है साथ और।
रह-रहकर मैं इनसे पूछता हूं,
क्या तुम ही तन्हाई हो?
क्या तुम ही तन्हाई हो?
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