फाल्गुनी
बहुत कुछ
लिखने की उत्कंठा
बहुत कुछ
कहने की त्वरा,
मुझे विवश कर जाती है
न कुछ लिख पाती हूँ
न कुछ कह पाती हूँ
अभिव्यक्ति की विवशता
पर तुम ही कुछ लिखो
मैं अपनी व्यग्रता को
उसी में देखना समझना
और महसूसना चाहती हूँ।
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तुमसे जी भरकर
नफरत करने के बाद
तुम्हें देखना
मुझे अनुभूतिविहीन कर गया
अपनी इस रिक्तता का
दोष किसे दूँ मैं?