- सिद्धेश्वर सिंह
* लोगों में रहता हूँ अकेला
कोरे कागजों को निहारता हूँ
ध्यान से अखबार बासी लगता है आते ही।
अक्सर लिखता हूँ एसएमएस
और सेंड नहीं कर पाता।
कितना आसान है
सभा-संगोष्ठियों में व्याख्यान देना
किन्तु कितना कठिन और लंबा है
प्रेम जैसे
एक छोटे से शब्द का उच्चारण।