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मितवा की याद आई

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शशीन्द्र जलधारी

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अवनि अम्बर झूम उठे,
जब बारिश की लगी झड़ी।
इंद्र देवता ने पहनाई,
धरती को बूँदों की लड़ी।

प्रकृति विहँस उठी इतराकर,
शीतल पवन चली इठलाकर।
ठुमक-ठुमक कर नाचे मयूरा,
सतरंगी बाँहें फैला कर।।

गाकर मल्हार थिरकने लगे अधर,
नाच उठे काले कजरारे जलधर।
पपीहा की पिहू-पिहू कोयल की कुहू-कुहू,
मन में जगाए टीस, बेशुमार-बेकदर।।

पावस की बूँदों से चहक उठा वन-उपवन,
झुलसाए तन-मन की हो गई ठंडी अगन।
नदियाँ और झरने भी गीत लगे गाने,
खुशियाँ लहरा गई पाकर नव जीवन।।

नभ में गूँजे हैं ढोल और बजे मृदंग,
बादल भी करने लगे मनमोहक नर्तन।
पुलकित और मुदित हुआ मन मयूर आज,
दुल्हन सा निखर गया प्रकृति का रूप-रंग।।

शीतल पुरवाई में मितवा की याद आई,
बिजुरी की चमक देख आँखें भर आई।
घड़ाम-धुडुम खिड़की-दरवाजे टकराए तो,
द्वार पर अटकी निगाह निंदिया भी बिसराई।।

बारिश में विरहा की अग्नि में तन जले,
व्याकुल है मन मेरा यादों के घन तले।
टपक-टपक बूँदें सुलगाए दिल में अगन,
शाम ढले, दीप जले, दूर करो फासले।

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