शिरीष कुमार मौर्य
वो मेरी आँखों में खोजती थी
रोने के निशान
भीगी हुई पलकें
गीली कोरें
मेरे गालों पर तलाशती थी
आँसुओं की सूखी लकीरें
मेरे दिल पर हाथ रख महसूसना चाहती थी
धड़कनें
जिनमें मेरा रूदन था
उसे पता था कि रो रहा हूँ मैं
और मैं हँसता जाता था
बस एक वही चीज थी
जो फिसलती जाती थी उसके हाथों से
मेरे रोते समय
उसे नहीं मिलते थे मेरे रोने के निशान
और इस दुनिया में मैं ही जीतता जाता था
वह हारती जाती थी
हमेशा!