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क्या तोड़ दें बंधन!

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

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मानते आ रहे हैं कि प्यार या शादी एक बंधन है। प्यारा-सा बंधन। अजीब बात है कि बंधन भी प्यारा-सा होता है अर्थात हथकड़ी भी प्यारी-सी होती है। अरे नहीं साहब, ये वो बंधन नहीं, ये जरा अलग किस्म का बंधन होता है।

अच्‍छा तो अब बंधन भी अलग-अलग किस्म के होने लगे हैं। सब बेवकूफ बनाने के काम हैं। हथकड़ियाँ चाहे हाथों में लगी हों या पल्लू में, हथकड़ियाँ चाहे लोहे की हों या सोने की, कंगन जैसी हों या गले में मंगलसूत्र जैसी या न मालूम कैसी-कैसी। खुद लगा ली हो हथकड़ियाँ या किसी के प्यार में पड़कर उसी से कहा कि लगा दो हथकड़ियाँ...प्लीज।

प्रेमी की भावना होती है कि तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं, पर किसी गैर को चाहोगी तो मुश्किल होगी। अबे मजनूँ मियाँ जब वो तुमको ही नहीं चाहती तो टेंशन काहे को लेते हों। प्यार और चाह में फर्क करना सीखो। प्यार स्वतंत्रता का पक्षधर है और चाहत तुम्हारे दिमागी दिवालिएपन की सूचना। जरा प्यार करके तो देखो। थोड़ा-सा प्यार हुआ नहीं कि अधिकार जताने लग जाते हो। जैसे बस अब ये मेरी है। मेरी के लिए जीना भी तो सीखो, मरने की झूठी कसमें मत खाओ।

आमतौर पर पुरुष का चित्त खानाबदोश होता है। घर बनाना या बसाना तो स्त्री ने सिखाया है वरना यूँ ही जिंदगी मारी-मारी फिरती थी। तब समझो इस मनोविज्ञान को कि प्रेमिका की भावना क्या होती होगी। प्रेमिका हर चीज में स्थायित्व ढूँढती है। प्रेमी की हर हरकत पर वह नजर रखती है कि कहीं बदल न जाए सनम।

  इसीलिए तोड़ दो वे सारे बंधन जिसमें प्रेम नहीं। निश्चत तौर पर ऐसा कहना बहुत आसान है लेकिन ऐसी सोच सभी की हो जाएगी तो 99 प्रतिशत संबंध टूट जाएँगे।      
आजकल की लड़कियाँ सोच-समझकर प्रेम करने लगी हैं। पहले तो बगैर सोचे-समझे प्रेम हो जाता था। आँख मिली नहीं ‍कि प्रेम हुआ, पहले का माहौल भी साफ-सुथरा और विश्वास योग्य था, आजकल जिसने बगैर सोचे भरोसा किया तो समझे लॉटरी जैसा काम है खुल गई तो लाख की वरना जिंदगी खाक तो है ही।

अब सवाल यह उठता है कि प्रेम या विवाह क्या बंधन है? ओशो मानते हैं कि यदि प्रेम नहीं है तो फिर बंधन ही होगा, क्योंकि आपस में प्रेम होना अर्थात स्वतंत्रता और आनंद का होना है किंतु यदि झूठ-मूठ का प्रेम है दिखावे का प्रेम है तो फिर वह प्रेम कैसे हो सकता है, महज आकर्षण, चाहत या समझौता। और यह ज्यादा समय तक नहीं चलता, बहुत जल्द धराशायी हो जाता है। यदि धराशायी नहीं होगा तो जिंदगी एक घुटन के सिवाय कुछ नहीं।

इसीलिए तोड़ दो वे सारे बंधन जिसमें प्रेम नहीं। निश्चत तौर पर ऐसा कहना बहुत आसान है लेकिन ऐसी सोच सभी की हो जाएगी तो 99 प्रतिशत संबंध टूट जाएँगे। ओशो कहते हैं कि सांसारिक प्रेम में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं- इसे समझें और ‍इसमें जिएँ। प्रेमिका या पत्नी से कुछ समय के लिए दूरी बनाओ, फिर नजदीक आओ और फिर ‍दूरी बनाओ। यह मिलना और बिछड़ना ही प्रेम को रिजनरेट और रिफ्रेश करके रखेगा।

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