Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

संपूर्ण समर्पण भाव अर्थात प्रेम

Advertiesment
हमें फॉलो करें प्रेम प्रकृति अनमोल उपहार
NDND
संपूर्ण मानव समाज के लिए प्रेम एक सर्वोत्तम सौगात है। प्रेम प्रकृति का वह अनमोल उपहार है जो मानव जाति के अस्तित्व हेतु अति आवश्यक है। यदि मनुष्य के हृदय से प्रेम समाप्त हो जाए तो मानव जाति के विनाश को शायद ही कोई न रोक सके।

प्रेम वह मधुर अहसास है जो जीवन में मिठास घोल देता है। कटुता दूर करने व वात्सल्य तथा भाईचारे के संचार में प्रेम की महती भूमिका है। मगर अफसोस! आज प्रेम का वह शाश्वत रूप नहीं रहा। प्रेम की नैसर्गिक अनुभूति आज आधुनिकता की चकाचौंध में कहीं खो गई है। वर्तमान में प्यार जैसे शब्द से सभी परिचित होंगे मगर सच्चे प्यार की परिभाषा क्या है, यह बहुत कम लोग जानते हैं।

वर्तमान में सिनेमाई प्रभाव के चलते नायक-नायिका के क्षणिक प्यार को ही प्रेम का विस्तृत रूप समझ लिया गया है और वैसा ही प्रदर्शन युवा पीढ़ी भी करने लगी है। वह क्षणिक आकर्षण व उसकी आड़ में भावनाओं के शोषण को ही प्यार मानकर स्वयं तो गुमराह हो ही रही है, साथ में प्यार को भी बदनाम कर रही है। यदि यह सवाल उठे कि आखिर सच्चा प्यार क्या है? तो जवाब में हजारों तर्क दिए जा सकते हैं, जो सभी अपनी जगह सही भी होंगे, मगर यदि इन तर्कों का सार निकाला जाए तो वह है 'प्रेम यानी संपूर्ण समर्पण भाव।'

विशुद्ध प्रेम वही है जो प्रतिदान में कुछ पाने की लालसा नहीं रखता। आत्मा की गहराई तक विद्यमान आसक्ति ही सच्चे प्यार का प्रमाण है। सच्चा प्यार न तो शारीरिक सुंदरता देखता है और न ही आर्थिक या शैक्षणिक पृष्ठभूमि। सच्चा प्यार बस, प्रिय के सामिप्य का आकांक्षी होता है। निर्निमेष दृष्टि से देखने की भोली चाह के अतिरिक्त प्यार शायद ही कुछ और सोचता हो। वास्तव में तो प्यार अभी तक प्यार है जब तक उसमें विशालता व शुद्धता कायम है। अशुद्ध व सतही प्यार न केवल दो हृदयों के लिए नुकसानदायक है बल्कि भविष्य में जीवन के स्याह होने की वजह भी बन जाता है।

सच्चे प्यार का अहसास किया जा सकता। इसे शब्दों में अभिव्यक्त करना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव भी है। सच्चे प्यार में गहराई इतनी होती है कि चोट लगे एक को, तो दर्द दूसरे को होता है, एक के चेहरे की उदासी से दूसरे की आँखें छलछला आती हैं। सच्चे प्रेम का 'पुष्प' कोमल भावनाओं की भूमि पर आपसी विश्वास और मन की पवित्रता के संरक्षण में ही खिलता और महकता है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि इसकी कोमल पंखुड़ियों पर सामाजिक बदनामी की अम्ल वर्षा करें या इसकी जड़ों को विश्वास एवं समर्पण के अमृत से सींचें।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi