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इंतजार

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, शनिवार, 28 जून 2008 (12:48 IST)
- कृष्ण गोपाल श्रीवास्तव

आज वह बहुत खुश था। आज वो दिन आ ही गया था, जिसका वो सालों से इंतजार कर रहा था। उसके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी थी। वो उड़कर सीधा उसी के पास पहुँच जाना चाहता था, वही तो थी उसकी ज़िंदगी का मकसद, उसकी प्रेरणा, उसकी चाहत, उसकी 'साधना'।

आज जब इंटरव्यू के बाद उसे पता लगा कि वो नौकरी के लिए चुन लिया गया है, उसका मन किया कि वो उसके पास पहुँचे और बताए कि वो आज कुछ बन गया है। धीरे-धीरे ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ रही थी और किशन के मस्तिष्क में भी पुरानी यादें ताजा हो रही थी।

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उसे याद है आज भी वो दिन जब वो बीए की परीक्षा दे रहा था, अचानक एक दिन उसकी क्लास में एक नया चेहरा दिखाई दिया। वो बस देखता ही रह गया। उसके चेहरे में एक अजीब सा आकर्षण था, जो किशन को बरबस ही उसकी ओर खींच रहा था। अब तो यह रोज का सिलसिला बन गया था वो रोज उसे छुप-छुप कर देखा करता था।

एक दिन जब वह बीए की परीक्षा में प्रथम आया तो वो उसके पास आई और बोली - बधाई हो, किशन! इसके बाद वो रोज मिलने लगे और मुलाकातों का ऐसा दौर शुरू हुआ जो कभी थम नहीं पाया। अब वो दोनों काफी अच्छे दोस्त बन गए थे। अगर एक भी दिन किशन साधना से न मिले तो उसे चैन नहीं आता था। वो साधना से प्यार करने लगा था, लेकिन वो यह नहीं जान पाया कि वो भी उससे प्यार करती है या नहीं।

  'मेहरबाँ होकर बुला लो चाहे जिस वक्त मैं कोई गया वक्त नहीं जो लौटकर फिर नहीं आऊँगा।' वो सागर किनारे बैठ आती-जाती लहरों को देख रहा था।      
इसी तरह दिन बीत रहे थे कि आखिर एक दिन कशन ने उससे अपने प्रेम का इजहार कर ही दिया, साधना का जवाब वह नहीं था, जिसका कि किशन को इंतजार था। साधना ने कहा किशन मैंने तुम्हें अपनी ज़िंदगी की एक बात नहीं बताई थी, वो यह कि मैं पहले किसी लड़के से प्यार करती थी, मैं एक बार धोखा खा चुकी हूँ, दुबारा नहीं खाना चाहती, प्लीज मुझे गलत मत समझना, इतना कहकर वो चली गई।

किशन की तो जैसे दुनिया ही बर्बाद हो गई। उसके प्यार का घरौंदा बनने से पहले ही टूट गया। वो उसे जितना भुलाने की कोशिश करता वो उतना ही और याद आती। फिर उसने निश्चय किया कि वो एक दिन कुछ बनकर दुबारा वापस आएगा। इस बीच किशन का चयन पत्रकारिता-कोर्स में हो गया और वह दूसरे शहर चला गया। लेकिन वो दोनों अब भी काफी अच्छे दोस्त थे।

उसके पत्र किशन के पास आते थे, यही पत्र किशन की प्रेरणा थे। किशन के लिए उसका प्यार एक जुनून बन गया था। वो घंटों बैठकर उसकी तस्वीर देखा करता था। वो उसे दीवानों की तरह प्यार करने लगा था और उसकी दीवानगी की हद बढ़ती ही जाती थी।

ट्रेन के स्टेशन पहुँचने पर ही उसकी तंद्रा भंग हुई। वो सीधा उसके पास पहुँचा और अपनी सफलता के बारे में बताया और कहा कि साधना 'क्या मुझसे शादी करोगी? साधन का जवाब था। ' किशन मैं तुमसे प्यार नहीं कर सकती तुम्हें तो मुझसे बहुत अच्छी लड़की मिल जाएगी। क्या हम सिर्फ अच्छे दोस्त बनकर नहीं रह सकते। जवाब में किशन बस इतना ही कह पाया।

'मेहरबाँ होकर बुला लो चाहे जिस वक्त मैं कोई गया वक्त नहीं जो लौटकर फिर नहीं आऊँगा।' वो सागर किनारे बैठ आती-जाती लहरों को देख रहा था, तभी उसकी नजर मुक्त गगन में उड़ रहे पक्षियों पर पड़ी उसके मन में फिर एक आशा की किरण जागी। उसे लगा कि वो आएगी! वो आज भी उसका कर रहा है, इंतजार... बस...इंतजार!

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