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प्यार से सुलझाएँ विवादों को

विवाद बढ़ाएँ नहीं, उसका हल निकालें

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विशाल मिश्र

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शादीशुदा जिंदगी में वाद-विवाद आम बात हो गई है। किसी न किसी कारण से दोनों में तीखी नोक-झोंक, बहस घर-घर की कहानी हो गई है। कभी-कभी तो बात इतनी बढ़ती है कि जिनका निराकरण पारिवारिक थानों या कोर्ट कचहरी में होता है। कुछ मामलों में यह सुखद होता है जबकि कुछ में इनकी परिणति तलाक के रूप में होती है। कुछ उपायों के जरिये सकारात्मक हल निकाला जा सकता है जिससे साँप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। मतलब आपकी समस्या का हल घर बैठे निकल जाएगा और संबंध भी मधुर बने रहेंगे।

स्वयं पर नियंत्रण रखें
यदि किसी बात को लेकर वाद विवाद हुआ है तो कुछ भी बोलते समय स्वयं पर नियंत्रण रखें। गुस्से में अनाप-शनाप बकने के बजाय तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात रखें और जीवनसाथी के सवालों का जवाब दें। क्रोध में आकर कुछ भी बोलने से पुरानी समस्या तो जस की तस रह जाती है नई और खड़ी हो जाती है।

आत्मीय संबंध
विवाद के दौरान यह न भूलें कि आप पति-पत्नी हैं और हमेशा साथ में रहना है। ऐसी कोई बात किसी के प्रति न कहें कि बाद में माफी माँगने में भी शर्म महसूस हो। सबसे महत्वपूर्ण बात ध्यान में रखें कि इस दौरान केवल आप दो ही हों तो आसानी से और शांतिपूर्ण ढंग से आप किसी हल तक पहुँच जाएँगे। प‍त्नी मायके से किसी को बुला ले या लड़के के माँ-बाप अकारण हस्तक्षेप करें, इससे बात बिगड़ने की आशंका ज्यादा रहती है क्योंकि दोनों अपने ही बेटे या बेटी का पक्ष लेंगे।

समस्या आप दोनों के बीच की है तो हल भी आप दो ही बेहतर ढंग से निकाल सकते हैं। बच्चों को तो कतई आपके आसपास न रहने दें। इसका बुरा प्रभाव उनके वर्तमान और भविष्य दोनों पर पड़ सकता है।

मध्यस्थ की भूमिका
कोशिश करें कि किसी की भी मध्यस्थता की आवश्यकता न पड़े। लेकिन कई बार बात ज्यादा बढ़ जाने की स्थिति में यदि ऐसा करना जरूरी हो भी तो किसी विश्वासपात्र व्यक्ति को रखें जोकि दोनों के बीच कड़ी का काम करे और घर की बात अपने तक ही रखे उसका ढींढोरा नहीं पीटे। यह भूमिका पतिदेव के खास मित्र या पत्नी की सहेली जोकि दोनों से परिचित हों, निभा सकते हैं।

घुमा-फिराकर बात न करें
जो भी कहना हो, मन में शंका-कुशंका हो उसे स्पष्ट कह दें तो दूसरे पक्ष समस्या को समझकर आसानी से उसका हल निकाल सकता है। क्योंकि अब भी बात को छिपाना मतलब समस्या की जड़ बन जाएगा जोकि आज नहीं तो कल फिर पनप सकती है।

धमकी से काम नहीं चलता
दोनों के पास पेटेंट धमकी होती है। श्रीमतीजी कहती हैं कि मायके चली जाऊँगी और श्रीमानजी 'तलाक दे दूँगा।' भूलकर भी इन जुमलों का प्रयोग न करें। ध्यान रखें आपको समस्या खत्म करने की दिशा में बढ़ना है न कि आपस में संबंध खत्म करना है।

समस्या गंभीर हो तो
  जहाँ भी चार बर्तन होते हैं तो ठनकते हैं। कभी भी यह सोचकर हीन भावना से ग्रसित न हों कि यह सब हमारे घर में ही क्यों हो रहा है। पराई थाली में घी देखने की बीमारी आदमी की आज की नहीं है।      
कभी किसी बड़ी परेशानी की स्थिति में एक ही बैठक में हल न हो तो उसे किश्तों में निपटा लें। दोनों मिलकर एक-एक विषय पर विचार करें। सुबह-शाम में या दो-चार दिन में भी निपटारा हो जाए तो भी महँगा सौदा नहीं है लेकिन इस बीच ध्यान रखें बोलचाल बंद न हो। रोजमर्रा के काम दोनों अपने-अपने वैसे ही पूर्ववत चलने दें।

गाँठ बाँधकर न रखें
'जो हुआ उसे भूल जाएँ' के अनुसार किसी भी बात को गाँठ बाँधकर न रखें। आज ‍की आपाधापी और भागदौड़ में जरूरी नहीं कि व्यक्ति शब्दों का चयन ज्यादा सोच-समझकर करे या आप भी उसका वही अर्थ निकालें। ऐसी स्थिति में छोटी-छोटी बातों को मुद्दा बनाने की बजाय सकारात्मक हल पर विचार करें।

भरोसा कायम रखें
दोनों एक-दूसरे पर भरोसा बनाए रखें। आजकल समाचार पत्रों में पढ़ते हैं कि चरित्र शंका को लेकर हो रही हत्याओं की संख्‍या में काफी इजाफा हुआ है। इससे बचने के लिए दोनों को एक-दूसरे में विश्वास जताना होगा तभी काम बन सकता है।

जहाँ भी चार बर्तन होते हैं तो ठनकते हैं। कभी भी यह सोचकर हीन भावना से ग्रसित न हों कि यह सब हमारे घर में ही क्यों हो रहा है। पराई थाली में घी देखने की बीमारी आदमी की आज की नहीं है। कुछ घरों की बातें सीमा के बाहर होकर घर के बाहर आ जाती हैं तो कुछ में चहारदीवारी में रह जाती हैं। इसलिए आप केवल अपने घर को देखें और सुख-शांति से रहने के उपाय ढूँढें।

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