अब आएगा 'राम का राज्य' या 'हिन्दू राज्य'?
, शुक्रवार, 16 मई 2014 (07:08 IST)
क्या नरेन्द्र मोदी के शासन में होगा 'राम का राज्य' या 'हिन्दू राज्य'? इस सवाल का जवाब हम देंगे अंतिम पन्ने पर...भारत में 'राम राज्य' की स्थापना राम से पूर्व भी की गई थी। कहते हैं कि प्रलय के बाद हर सतयुग में राम होते हैं और 'राम राज्य' की स्थापना की जाती है। यह अट्ठाईसवां कलियुग चल रहा है। विष्णु ही प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से धरती का भाग्य बनाते और बिगाड़ते हैं। उन्हीं से धर्म की स्थापना है और उन्हीं से धर्म का पालन। जब भी 'राम राज्य' की बात होती है तो सभी समझते हैं कि 'हिन्दू राज्य' की स्थापना होगी, लेकिन क्या यह सही है? मोदी तो यही कहते आए हैं कि सबका साथ और सबका विकास, निर्भिक समाज और शांतिपूर्ण माहौल।
हिन्दू संस्कृति में राम द्वारा किया गया आदर्श शासन 'राम राज्य' के नाम से प्रसिद्ध है। राम के राज्य में जनता हर तरह से सुखी और समृद्ध थी। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए सबकुछ दांव पर लगा दिया जाता था। जीने का अधिकार और न्याय का अधिकार सभी को मिला था।आज कुछ लोग 'राम राज्य' की कल्पना का मखौल उड़ाते हैं तो कुछ व्यंग्य में कहते हैं कि 'क्या राम राज्य फैला रखा है।' इसका मतलब यह कि जिसकी जो मर्जी आए, वह वो काम कर रहा है। नहीं, राम राज्य में ऐसा नहीं था। लोगों को स्वतंत्रता थी, लेकिन इस शर्त पर नहीं कि आप दूसरे की स्वतंत्रता छीन लो।महाभारत युद्ध के बाद समय-समय पर 'राम राज्य' स्थापित किया गया। 'राम राज्य' मॉडल सुखी जीवन का आदर्श उदाहरण है। व्यावहारिक जीवन में परिवार, समाज या राज्य में सुख और सुविधाओं से भरी व्यवस्था के लिए आज भी इसी राम राज्य का उदाहरण दिया जाता है।साधारण रूप से जिस राम राज्य को मात्र सुख-सुविधाओं का पर्याय माना जाता है असल में वह मात्र सुविधाओं के नजरिए से ही नहीं, बल्कि उसमें रहने वाले नागरिकों के पवित्र आचरण, व्यवहार, विचार और मर्यादाओं के पालन के कारण भी श्रेष्ठ शासन व्यवस्था का प्रतीक है।
क्या धर्म आधारित व्यवस्था कारगर सिद्ध होगी...
आज समाज धर्म से भटक गया है। लोग अधर्म की राह पर हैं। वे झूठ बोलने वाले, शराबी, कामुक और अपराधी हो चले हैं। उनमें नैतिकता अब रही नहीं। लगभग सभी सांप्रदायिक सोच से ग्रस्त हैं। उनमें अपने परिजनों के प्रति भी अब संवेदना नहीं रही तो दूसरे धर्म और समाज के लोगों के प्रति क्या रहेगी? ऐसे में धर्म आधारित शासन व्यवस्था का सभी धर्म के लोग आग्रह करते हैं, लेकिन धर्म आधारित व्यवस्था इस बहुलतावादी समाज में संभव नहीं। हालांकि हमने देखा है कि इस्लामिक मुल्कों में धर्म आधारित समाज व्यवस्था का क्या हश्र हो रहा है।
धर्म के प्रति कट्टरवादी सोच धर्म की ओर नहीं अधर्म की ओर ले जाने वाली सिद्ध हुई है। ऐसे कई मुल्क हैं जिन्होंने धर्म के आधार पर शासन व्यवस्था निर्मित की है लेकिन उन मुल्कों में भी व्यक्ति के जीने के अधिकार छीन लिए गए हैं और वे पहले से कहीं ज्यादा बदतर जीवन-यापन कर रहे हैं। उन लोगों के लिए व्यक्ति के जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण धर्म हो गया है। ठीक इसके विपरित दूसरी अति की व्यस्था के चलते (जैसे अमेरिका आदि यूरोपीय देश) धर्म का नाश ही नहीं हुआ समाज विक्रत भी हो चला है। लोगों ने नए नए धर्मों का अपनी सुविधानुसार अविष्कार कर लिया है जैसे साइंटोलॉजी, न्यूड समाज आदि। तो, यह एक अति से दूरी अति की ओर की व्यवस्था में भी व्यक्ति का जीना मुश्किल हो जाता रहा है।
तब कैसा प्रधानमंत्री और कैसी व्यवस्था होना चाहिए...
धार्मिक या सांप्रदायिक सोच से परे ऐसे में कुछ लोगों का मानता है कि 'राम राज्य' ही एकमात्र विकल्प है। न धर्म, न कम्युनिज्म, न माओवाद और न अन्य किसी कानून व्यवस्था से शासन चलेगा। शासन चलेगा तो लोकतंत्र से ही चलेगा। लोकतंत्र से मनमानी तंत्र को हटाना पड़ेगा।
राम और यमराज जैसा हो शासक : लोकतंत्र को चलाने वाला 'राम' के जैसा राजा होना चाहिए, तभी राम राज्य स्थापित हो सकता है। उस राजा का आचण श्रेष्ठ होना चाहिए अर्थात 'राम राज्य' के अनुसार ऐसा तत्वज्ञानी और धार्मिक व्यक्ति जिसके मन में सभी के प्रति दया और संवेदना का भाव हो। जो दूसरों की पीड़ा समझता है और जिसमें सत्ता के प्रति मोह नहीं हो, वही श्रेष्ठ शासक सिद्ध हो सकता है। ‘रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाई पर वचन न जाई’... जितने भी वीर योद्धा हुए वो सभी अपनी प्रजा की रक्षा का वचन अपने प्राण दे कर चुकाते आए है।
श्रीवाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण में लिखा है कि महाराज दशरथ के मन्त्री विद्वान, सलज्ज, कार्यकुशल, जितेंद्रिय, महात्मा, शस्त्रविद्या के ज्ञाता, यशस्वी, तेजस्वी, औरे क्षमाशील थे। (श्लोक 6, 7, और 8, सर्ग 7, बालकाण्ड)। वेद, पुराण और स्मृति ग्रंथों में राजा का धर्म और उसके कर्तव्यों के बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है।
दूसरी ओर राजा में ऐसे भी गुण होना चाहिए की वक्त पड़ने पर वह राज्य की न्याय व्यवस्था को बचाने के लिए लोगों को कठोर दंड भी दें, अर्थात वह यमराज जैसा शासक हो। यमराज की दंड नीति प्रबल थी। यमराज के भय से सभी लोग अपने-अपने श्रेष्ठ कार्यों में लगे रहते हैं जिसके चलते समाज में शांति बनी रहती है।
भारत में ऐसे कई राजा हुए हैं जिनकी सोच दार्शनिक रही और जिन्होंने समाज के हर वर्ग के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझकर हर वर्ग को तरक्की की राह में ले गए और उन्होंने राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखने के साथ ही राज्य के भीतर शांति बनाए रखने के लिए कठोर दंड नीति का भी उपयोग किया। युधिष्ठर से लेकर हर्षवर्धन तक तक ऐसे बहुत से सम्राट हुए हैं जिनकी सोच सांप्रदायिक नहीं थी और जिन्होंने प्रजा को हर तरह से सुखी और खुशहाल बनाए रखा।
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राम राज्य का वर्णन : तुलसीदासजी रामचरितमानस में लिखते हैं कि राम राज्य में किस तरह का माहौल रहता है। उन्होंने रामचरित मानस के उत्तरकांड में राम राज्य का वर्णन किया है जिसका संक्षिप्त वर्णन यहां प्रस्तुत है।
'रामराज्य' में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं। धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत् में परिपूर्ण हो रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है। पुरुष और स्त्री सभी रामभक्ति के परायण हैं और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हैं।
छोटी अवस्था में मृत्यु नहीं होती, न किसी को कोई पीड़ा होती है। सभी के शरीर सुंदर और निरोग हैं। न कोई दरिद्र है, न दुःखी है और न दीन ही है। न कोई मूर्ख है और न शुभ लक्षणों से हीन ही है।
सभी दम्भरहित हैं, धर्मपरायण हैं और पुण्यात्मा हैं। पुरुष और स्त्री सभी चतुर और गुणवान् हैं। सभी गुणों का आदर करने वाले और पण्डित हैं तथा सभी ज्ञानी हैं। सभी कृतज्ञ (दूसरे के किए हुए उपकार को मानने वाले) हैं, कपट-चतुराई (धूर्तता) किसी में नहीं है।
सभी नर-नारी उदार हैं, सभी परोपकारी हैं और ब्राह्मणों के चरणों के सेवक हैं। सभी पुरुष मात्र एक पत्नीव्रती हैं। इसी प्रकार स्त्रियाँ भी मन, वचन और कर्म से पति का हित करने वाली हैं।
री रामचंद्रजी के राज्य में दण्ड केवल संन्यासियों के हाथों में है और भेद नाचने वालों के नृत्य समाज में है और 'जीतो' शब्द केवल मन के जीतने के लिए ही सुनाई पड़ता है (अर्थात् राजनीति में शत्रुओं को जीतने तथा चोर-डाकुओं आदि को दमन करने के लिए साम, दान, दण्ड और भेद- ये चार उपाय किए जाते हैं। रामराज्य में कोई शत्रु है ही नहीं, इसलिए 'जीतो' शब्द केवल मन के जीतने के लिए कहा जाता है। कोई अपराध करता ही नहीं, इसलिए दण्ड किसी को नहीं होता, दण्ड शब्द केवल संन्यासियों के हाथ में रहने वाले दण्ड के लिए ही रह गया है तथा सभी अनुकूल होने के कारण भेदनीति की आवश्यकता ही नहीं रह गई। भेद, शब्द केवल सुर-ताल के भेद के लिए ही कामों में आता है।
वनों में वृक्ष सदा फूलते और फलते हैं। हाथी और सिंह (वैर भूलकर) एक साथ रहते हैं। पक्षी और पशु सभी ने स्वाभाविक वैर भुलाकर आपस में प्रेम बढ़ा लिया है। पक्षी कूजते (मीठी बोली बोलते) हैं, भाँति-भाँति के पशुओं के समूह वन में निर्भय विचरते और आनंद करते हैं। शीतल, मन्द, सुगंधित पवन चलता रहता है। भौंरे पुष्पों का रस लेकर चलते हुए गुंजार करते जाते हैं।
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।। त्रीणि राजाना विदथें परि विश्वानि भूषथ: ।।-ऋग्वेद मं-3 सू-38-6
भावार्थ : ईश्वर उपदेश करता है कि राजा और प्रजा के पुरुष मिल के सुख प्राप्ति और विज्ञानवृद्धि कारक राज्य के संबंध रूप व्यवहार में तीन सभा अर्थात- विद्यार्य्यसभा, धर्मार्य्यसभा, राजार्य्यसभा नियत करके बहुत प्रकार के समग्र प्रजा संबंधी मनुष्यादि प्राणियों को सब ओर से विद्या, स्वतंत्रता, धर्म, सुशिक्षा और धनादि से अलंकृत करें।
।। तं सभा च समितिश्च सेना च ।1।- अथर्व-कां-15 अनु-2,9, मं-2
भावार्थ : उस राज धर्म को तीनों सभा संग्रामादि की व्यवस्था और सेना मिलकर पालन करें।
सब सेना और सेनापतियों के ऊपर राज्याधिकार, दंड देने की व्यवस्था के सब कार्यो का अधिपत्य और सब के उपर वर्तमान सर्वाधिकार इन चारों अधिकारों में संपूर्ण वेद शास्त्रों में प्रवीण विद्यावाले धर्मात्मा, जितेन्द्रिय, सुशील जनों को स्थापित करना चाहिए अर्थात मुख्य सेनापति, मुख्य राज्याधिकारी, मुख्य न्यायाधीश, प्रधान और राज्य ये चार सब विद्याओं में पूर्ण विद्वान होने चाहिए।।1।।- मनुस्मृति
1.सभा : धर्म संघ की धर्मसभा, शिक्षा संघ की विद्या सभा और राज्यों की राज्य सभा।
2.समिति : समिति जन साधरण की संस्था है। सभा गुरुजनों की संस्था अर्थात गुणिजनों की संस्था।
3.प्रशासन : न्याय, सैन्य, वित्त आदि ये प्रशासनिक, पदाधिकारियों, के विभागों के नाम है। जो राजा या सम्राट के अधिन है।
राजा : राजा की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए ही सभा ओर समिति है जो राजा को पदस्थ और अपदस्थ कर सकती है। वैदिक काल में राजा पद पैतृक था किंतु कभी-कभी संघ द्वारा उसे हटाकर दूसरे का निर्वाचन भी किया जाता था। जो राजा निरंकुश होते थे वे अवैदिक तथा संघ के अधिन नहीं रहने वाले थे। ऐसे राजा के लिए दंड का प्रावधान होता है। राजा ही आज का प्रधान है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि वेद ही सर्वोच्च है। वही कानून श्रुति अर्थात वेद है। महर्षि वेद व्यास ने भी कहा है कि जहां कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहां वेद की बात मान्य होगी। वेद और पुराण के मतभेदों को समझते हुए हम हिंदू व्यवस्था के उस संपूर्ण पक्ष को लेंगे जिसमें उन सभी विचारधाराओं का सम्मान हो, जिनसे वेद प्रकाशित होते हैं।
व्यवस्था हमारे स्व-अनुशासन और समाज के संगठन-अनुशासन के लिए आवश्यक है। व्यवस्था से ही मानव समाज को नैतिक बल मिलता है। जब तक व्यवस्था न थी तो मानव समाज पशुवत जीवन यापन करता था। वह ज्यादा हिंसक और व्यभिचारी था।
क्या कहता है भारत का संविधान..अगले पन्ने पर...
धर्म की आजादी का अधिकार : अनुच्छेद 25-28 के अनुसार भारत मे धर्म की आजादी का अधिकार है। इसके तहत पेशा एवं धर्म प्रचार की आजादी (अनुच्छेद 25) सभी व्यक्ति चेतना की आजादी का लाभ उठाते हैं। उन्हें किसी भी धर्म में विश्वास करने, आचरण करने, उसका प्रचार करने का अधिकार है। जबरन धर्म परिवर्तन का तरीका निषिध है। कोई भी किसी खास धर्म को मानने एवं छोड़ने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है।
धार्मिक कार्यों की व्यवस्था करने की आजादी (अनुच्छेद 26) प्रत्येक धर्म को धार्मिक प्रतिष्ठान स्थापित करने और रख-रखाव का अधिकार है। व्यवस्था करना उसका अपना काम है। चल और अचल संपत्ति को प्राप्त करने और उसको बढ़ाने तथा संपत्ति का कानून सम्मत उत्तराधिकारी का अधिकार है।
अनुच्छेद 29 और 30 के तहत भाषा, लिपि और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार (अनुच्छेद 29) नागरिकों के किसी वर्ग की अपनी एक सुवक्त भाषा, लिपि होती है। उसी तरह उसको संरक्षण का अधिकार होता है। शैक्षिक संस्थान की स्थापना और अधिकारी का अधिकार (अनुच्छेद 30) सभी अल्पसंख्यकों को, जो धर्म या भाषा पर आधारिक है, उन्हें शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और अधिकारी का अधिकार है।
मौलिक अधिकार : भारतीय संविधान ने भारत की जनता को बहुत सारे मौलिक अधिकार दे रखें हैं। इसका प्रयोग राज्य की एकता और सुरक्षा के हित और किसी भी दृष्टिकोण से सामाजिक व्यवस्था, जनस्वास्थ्य और नैतिकता के विरोध के बिना होना है। भेदभाव रहित व्यवस्था में नागरिकों को अपने तरीके से जीने का अधिकार संविधान देता है। जातिवाद, अपराध, आतंकवाद आदि से बचाव और सुरक्षा का अधिकार भी मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है।
मोदी के राज में होगा 'राम राज्य' या 'हिन्दू राज्य'...
भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता नरेंद्र मोदी से हर बार इंटरव्यू में यह सवाल पूछा गया कि क्या देश आरएसएस की सोच से चलेगा? मोदी ने इसका जवाब दिया कि देश संविधान से चलता है किसी संगठन की सोच से नहीं।नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह देश के अन्य नागरिकों की तरह ही मुस्लिम भाइयों तक भी अपनी पहुंच बनाएंगे और साथ ही स्पष्ट किया कि राम मंदिर और समान नागरिक संहिता जैसे विवादास्पद मुद्दों पर संवैधानिक रूपरेखा के तहत ही ध्यान दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि वह सभी भारतीयों को एक समान मानते हैं और समाज के सभी वर्गों से जुड़ना उनकी जिम्मेदारी है, जिसमें मुस्लिम भी शामिल हैं।मोदी के सामने राम मंदिर और समान नागरिक संहिता के मुद्दे भी रखे गए जो भाजपा तथा मुस्लिमों के बीच दूरी की बड़ी वजह माने जाते रहे हैं। उनसे पूछा गया कि क्या वह अपनी तेजतर्रार छवि के चलते इन्हें पूरा कर पाएंगे। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार ने स्पष्ट किया कि इन विषयों पर वह संविधान का पालन करेंगे।उन्होंने कहा, 'देश तेजतर्रारी से नहीं चलता है। देश संविधान से चलता है, देश संवैधानिक मर्यादाओं से चलता है और देश आगे भी संविधान की मर्यादा से ही चलने वाला है। तेजतर्रार तो चुनावों के लिए होता है, देश चलाने के लिए नहीं होता।'मोदी से यह भी पूछा गया कि क्या प्रधानमंत्री के तौर पर उनके कामकाज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छाप दिखाई देगी क्योंकि बचपन से उनका जुड़ाव इस संगठन से रहा है।जवाब में गुजरात के मुख्यमंत्री ने कहा, 'पहली बात है मुझे सरकार चलानी है। सरकार संविधान के तहत चलती है और मैं मानता हूं कि सरकार का एक ही धर्म होता है-इंडिया फर्स्ट। सरकार की एक ही पवित्र पुस्तक होती है-हमारा संविधान। सरकार की एक ही भक्ति होती है-भारत भक्ति और सरकार की एक ही कार्यशैली होती है-सबका साथ, सबका विकास।'-
अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'