Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

जानिए हिन्दू धर्म को-4

Advertiesment
हमें फॉलो करें हिन्दू सनातन धर्म
FILE

ब्रह्म ही सत्य है-

माना जाता है कि हिन्दू धर्म एकेश्वरवादी नहीं बल्कि बहुदेववादी या सर्वेश्वरवादी धर्म है, यह धारणा गलत है। हिन्दू धर्म ग्रंथ वेद उस एक परमतत्व के गुणगान से भरे पड़े हैं। जैसे इस्लाम में उसे अल्लाह, ईसाई में गॉड, यहूदी में याहेव कहा जाता है, उसी तरह हिन्दू धर्म में उस परम तत्व को 'ब्रह्म' कहा जाता है। ब्रह्म को ही दार्शनिक लोग अपनी-अपनी परिभाषा में गढ़कर परब्रह्म-अपरब्रह्म या सगुण ईश्वर-निर्गुण ईश्वर के रूप में बांटते हैं, जोकि उनकी बुद्धि का जाल मात्र है

ब्रह्म या परमेश्वर न तो भगवान है और न ही देवी और देवता। ब्रह्म के बाद हिन्दू धर्म में त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) को सबसे बड़ा दर्जा प्राप्त है। त्रिमूर्ति सभी देवताओं (फरिश्तों) के उपर है। त्रिदेव के बाद भगवानों को सर्वोच्च पद प्राप्त है। भगवानों के बाद ही अन्न देवी और देवताओं को माना जाता है। देवी और देवताओं के बाद पूर्वजों का नंबर आता है। पर्वजों के बाद गुरु, माता और पिता को सम्माननीय, प्रार्थनीय माना जाता है।

ब्रह्म को ही ईश्वर, परमपिता, परमात्मा, परमेश्वर और प्रणव कहा जाता है। मूलत: ईश्वर एक, और केवल एक है। वो विश्वव्यापी और विश्वातीत दोनों है। वह स्वयंभू और विश्व का कारण (सृष्टा) है। पूर्ण, अनन्त, सनातन, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है।

ऋग्वेद के अनुसार, 'एकं सत विप्रा बहुधा वदन्ति', अर्थात एक ही परमसत्य को विद्वान कई नामों से बुलाते हैं। जो जन्मा है वह ब्रह्म या ईश्वर नहीं हो सकता और न है। परमेश्वर कभी जन्म नहीं लेता और न ही वह अवतरित होता है।

मध्यकाल के ही हिंदुओं को पुन: वेदों तथा एकेश्वरवाद की ओर मोड़ने के अथक प्रयास हुए, लेकिन सभी निष्फल रहे। आधुनिक युग में ब्रह्म समाज, आर्य समाज जैसे संगठनों ने हिंदुओं को मूर्ति पूजा, कर्मकांड और तरह तरह देवताओं को पूजने से दूर रखने के अथक प्रयास किए लेकिन वे सब भी असफल ही सिद्ध हुए। कई साधु-संत हुए जिन्होंने कहा कि सबका मालिक एक ही है, लेकिन हिंदू अब रास्ते से भटक गया है।

आत्मा : प्रत्येक शरीर में आत्मा होती है। ब्रह्मांड में आत्माएं असंख्य है। पेड़, पौधों, जल, अग्नि आदि समस्त दिखाई देने वाला जगत ही भीतर से न दिखाई देने वाला आत्मा के द्वारा ही चलायमान है। हिन्दू धर्म के अनुसार हर चेतन प्राणी में एक अभौतिक आत्मा होती है, जो सनातन, अव्यक्त, अप्रमेय और विकार रहित है। हिन्दू धर्म के मुताबिक मनुष्य में ही नहीं, बल्कि हर पशु और पेड़-पौधे, यानि कि हर जीव में आत्मा होती है। आत्मा ही ब्रह्म में लीन होकर देवता या भगवान कहलाती है।

आत्मा को ब्रह्म रूप इसलिए माना जाता है कि 'यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न तो मरता ही है तथा न ही यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य सनातन, पुरातन है; शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।-गीता

शरीर के जन्म-मरण का चक्र : किसी भी जन्म में अपनी आजादी से किए गए कर्मों के मुताबिक आत्मा अगला शरीर धारण करती है। जन्म-मरण के चक्र में आत्मा स्वयं निर्लिप्त रहते हुए अगला शरीर धारण करती है। अच्छे कर्मफल के प्रभाव से मनुष्य कुलीन घर अथवा योनि में जन्म ले सकता है जबकि बुरे कर्म करने पर निकृष्ट योनि में जन्म लेना पड़ता है। जन्म-मरण का सांसारिक चक्र तभी खत्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है।

हिंदू धर्म के ग्रंथ : हिंदू धर्म के पवित्र ग्रन्थों को दो भागों में बाँटा गया है- श्रुति और स्मृति। श्रुति हिन्दू धर्म के सर्वोच्च ग्रन्थ हैं, जो पूर्णत: अपरिवर्तनीय हैं, अर्थात् किसी भी युग में इनमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। स्मृति ग्रन्थों में देश-कालानुसार बदलाव हो सकता है। श्रुति के अन्तर्गत चार वेद आते हैं- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। ब्रह्म सूत्र और उपनिषद् वेद का ही हिस्सा हैं।

वेद श्रुति इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि हिन्दुओं का मानना है कि इन वेदों को परमात्मा ने चार ऋषियों को उस वक्त सुनाया था, जब वे गहरे ध्यान में थे। बाद में उक्त ज्ञान को श्रवण परम्परा के अनुसार गुरु द्वारा शिष्यों मुखाग्र याद करके दिया जाता रहा।

श्रुति को छोड़कर अन्य सभी हिन्दू धर्म ग्रंथ स्मृति कहे जाते हैं, क्योंकि इनमें वो कहानियाँ हैं जिनको लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया और बाद में लिखा। प्रमुख स्मृति ग्रन्थ हैं:- इतिहास ग्रंथ में रामायण, महाभारत और 18 पुराणों का महत्व है। भगवद गीता महाभारत का एक हिस्सा है। मनुस्मृति, धर्मशास्त्र, धर्मसूत्र और आगम शास्त्र चारों वेदों की व्यवस्था पर आधारित शास्त्र हैं। वेदों के दर्शन को 6 प्रमुख भागों में बांटकर ऋषियों ने समझाया है- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदान्त।

अगर श्रुति और स्मृति में कोई विवाद होता है तो श्रुति ही मान्य होगी।

मूर्तिपूजा और मंदिर : वेद कहते हैं उस परमेश्वर की मूर्ति नहीं बनाई जा सकती, क्योंकि वह निराकार, अजन्मा, अनित्य, निर्विकार है। प्राचीन हिंदू किसी भी देवी और देवता की मूर्ति बनाकर उन्हें नहीं पूजते थे। प्राचीन हिंदू मंदिर भी नहीं बनाते थे। प्राचीन काल में वैदिक मंत्रों और यज्ञ से कई देवताओं की स्तुति की जाती थी।

आजकल ज्यादातर हिन्दू देवी-देवताओं और भगवानों की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा-आरती करते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि हिन्दू धर्म मे मूर्ति पूजा का प्रचलन गौतम बुद्ध और महावीर के समय प्रारम्भ हुआ। बौद्ध काल में जैन और बौद्ध का अनुसरण करते हुए हिंदुओं ने मंदिर बनाकर उसमें मूर्तियों को स्थापित करना शुरू किया। प्रारंभ में विष्णु और शिव के मंदिर ही बनें। बाद में दुर्गा, नाग, भैरव, राम और कृष्ण आदि की मूर्तियां बनाकर उन्हें पूजने लगे। हिंदुओं ने अपने प्रमुख और प्राचीन धार्मिक स्थानों को धीरे-धीरे मंदिर और मूर्ति में बदल दिया। प्राचीन मन्दिर मध्ययुगीन भारतीय कला के श्रेष्ठतम प्रतीक रहे हैं।

आजकल विष्णु, शिव, राम और कृ‍ष्ण के मंदिर उपेक्षित पड़े हैं। अब हिंदुओं का झुकाव हनुमान, शनि, भैरव, दुर्गा और साई बाबा की ओर ज्यादा हो चला है। पहले के हिंदू प्रार्थना, ध्यान और यज्ञ करते थे और आजकल के हिंदू मनमानी पूजा और आरती करके प्रसाद वितरण करते हैं- जो कि वेद और धर्म विरूद्ध है।

हिंदूओं के धर्मगुरु : लगभग बारह सौ वर्ष पहले आदिगुरु शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में स्थित चार धाम के पास चार पीठ (मठ) स्थापित किए उत्तर में बदरीनाथ के निकट ज्योतिपीठ, दक्षिण में रामेश्वरम् के निकट श्रृंगेरी पीठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ और पश्चिम में द्वारिकापीठ। उक्त चार मठ में उन्होंने चार शंकराचार्य नियुक्ति किए। उक्त चार को ही हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं।

व्रत, तीर्थ एवं पर्व : तीर्थों में चार धाम, ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ और भगवान राम, कृष्ण की जन्मभूमि को ही प्रमुख माना जाता है। हिन्दू धर्म में सूर्योपासनाके लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ और संक्रांति। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है, किन्तु काल क्रम मे अब यह कुछ प्रदेश वासियों का ही पर्व बनकर रह गया है। इसके बाद हिन्दू नववर्ष को मनाने का महत्व है। बाद इसके रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, नवरात्री, शिवरात्री आदि त्योहार मनाते हैं। मूलत: सूर्य जब उत्तरायण होता है तब तीर्थ और उत्सव का समय होता है और जब यह ‍दक्षिणायन होता है तब व्रत और पूजा का समय शुरू होता है।

हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा महत्व कुंभ को मनाने का है। प्रत्येक 12 वर्ष में आने वाले कुंभ को महाकुंभ और छ वर्ष पश्चात आने वाले कुंभ को अर्धकुंभ कहते हैं।

शाकाहार : हिंदू धर्म शाकाहार का पक्षधर है। शुद्ध शाकाहारी को सात्विक, आवश्यकता से अधिक तला भुना खाने वाले को राजसिक और मांसाहारी को तामसिक व्यक्ति कहा जाता है। वैदिक काल में पशुओं का मांस खाने की अनुमति नहीं थी।

वर्ण व्यवस्था : प्राचीन हिंदू व्यवस्था में वर्ण व्यवस्था विशेष महत्व था लेकिन इसका आधार जाति नहीं था। किसी भी जाती का व्यक्ति कोई भी वर्ण धारण कर सकता है। चार प्रमुख वर्ण थे- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। पहले यह व्यवस्था कर्म प्रधान थी। अगर कोई सेना में काम करता था तो वह क्षत्रिय कहलाता था फिर वही किसी भी जाति, समाज, प्रांत का हो। लेकिन आज वर्ण को जाति समझने की भूल की जाती है। -क्रमश:

- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi