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हिंदू धर्म : मंगल प्रतीक

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अनिरुद्ध जोशी

हिंदू धर्म में मंगल प्रतीकों का खासा महत्व ह। इनके घर में होने से किसी भी कार्य में बाधा उत्पन्न नहीं होती। सभी कार्य मंगलमय तरीके से संपन्न होते हैं। जानते हैं कि वो मंगल प्रतीक कौन कौन से हैं

ॐ है सर्वोपरि मंगल प्रतीक : यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। बहुत-सी आकाश गंगाएँ इसी तरह फैली हुई है। ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है। ओम का घर में होना जरूरी है। यह मंगलकर्ता ओम ब्रह्म और गणेश का साक्षात् प्रतीक माना गया है।

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स्वस्तिक : स्वस्तिक को शक्ति, सौभाग्य, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना जाता है। हर मंगल कार्य में इसको बनाया जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान 'गं' बीजमंत्र होता है। इसमें, जो चार बिन्दियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनन्त देवताओं का वास होता है।

इस मंगल-प्रतीक का गणेश की उपासना, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ, बहीखाते की पूजा की परम्परा आदि में विशेष स्थान है। इसकी चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं, अग्नि, इन्द्र, वरुण एवं सोम की पूजा हेतु एवं सप्तऋषियों के आशीर्वाद को प्राप्त करने में प्रयोग किया जाता है।

मंगल कलश : सुख और समृद्धि के प्रतीक कलश का शाब्दिक अर्थ है- घड़ा। यह मंगल-कलश समुद्र मंथन का भी प्रतीक है। ईशान भूमि पर रोली, कुंकुम से अष्टदल कमल की आकृति बनाकर उस पर यह मंगल कलश रखा जाता है। एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकल उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर, उसके गले पर मौली (नाड़ा) बांधी जाती है।

शंख : शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्री की संज्ञा दी गई है। शंख समुद्र मथंन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों में से एक है। लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है। यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है।

शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है। तीर्थाटन से जो लाभ मिलता है, वही लाभ शंख के दर्शन और पूजन से मिलता है।

रंगोली : रंगोली या मांडना हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की समृद्धि के प्रतीक हैं, इसलिए 'चौंसठ कलाओं' में मांडना को भी स्थान प्राप्त है। इससे घर परिवार में मंगल रहता है। उत्सव-पर्व तथा अनेकानेक मांगलिक अवसरों पर रंगोली से घर-आंगन को खूबसूरती के साथ अलंकृत किया जाता है।

 
दीपक : सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले दीपक समृद्धि के साथ ही अग्नि और ज्योति का प्रतीक है। पारंपरिक दीपक मिट्टी का ही होता है। इसमें पांच तत्व हैं मिट्टी, आकाश, जल, अग्नि और वायु। हिंदू अनुष्ठान में पंचतत्वों की उपस्थिति अनिवार्य होती है।

हाथी : विष्‍णु तथा लक्ष्‍मी को हाथी प्रिय रहा है। शक्‍ति, समृद्धि और सत्ता के प्रतीक हाथी को भगवाण गणेश का रूप माना जाता है। समुद्र मंथन में प्राप्‍त हुआ था ऐरावत हाथी, जो सफेद था। घर में ठोस चांदी या सोने का हाथ रखना चाहिए। इसके होने से घर में शांति रहती है।

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मंगल सूत्र : हिंदू विवाहित नारी गले में मंगल सूत्र पहनती है। इसकी तुलना किसी अन्य आभूषण से नहीं की जाती। यह पति द्वारा पत्नी को विवाह के समय पहनाता है। यह मंगल सूत्र पति की कुशलता से जुड़ी मंगल कामना का प्रतीक है। इसका खोना या टूटना अपशकुन माना गया है।

जहां मंगल सूत्र का काला धागा और काला मोती स्त्री को बुरी नजर से बचाता है वहीं उसमें लगे सोने के पेंडिल से स्त्री में तेज और ऊर्जा का संचार बना रहता है।

गरुढ़ घंटी : जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती है। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वारा खुलते हैं।
-anirudh joshi

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