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ये 10 चमत्कारिक वस्तुएं यदि मिल जाएं तो?

हमें फॉलो करें ये 10 चमत्कारिक वस्तुएं यदि मिल जाएं तो?
दुनिया के सभी धार्मिक ग्रंथों और प्राचीन किताबों में हजारों तरह की ऐतिहासिक आश्चर्यजनक, चमत्कारिक और रहस्यमय बातों का उल्लेख मिलता है। हम यहां बात कर रहे हैं भारतीय धार्मिक ग्रंथों से खोजी गई वस्तुओं के बारे में।
ऐसी कई बातें हैं जिन पर सहज ही विश्वास करना कठिन होता है, तो कई पर अभी भी शोध जारी है। इस बार ऐसी 10 चमत्कारिक वस्तुओं का संकलन किया गया है जो यदि मिल जाए तो आपके वारे-न्यारे हो जाएं। हम यहां अलाउद्दीन का चिराग या किसी जादुई छड़ी की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि ऐसी वस्तुओं के बारे में बताना चाहते हैं जो कि ढूंढने पर संभवत: मिल भी जाए।
 
अगले पन्ने पर पहली चमत्कारिक वस्तु...
 

सोमरस : सोमरस एक ऐसा पदार्थ है, जो संजीवनी की तरह कार्य करता है। यह जहां व्यक्ति की जवानी बरकरार रखता है वहीं यह पूर्ण सात्विक, अत्यंत बलवर्धक, आयुवर्धक व भोजन-विष के प्रभाव को नष्ट करने वाली औषधि है। कण्व ऋषियों ने मानवों पर सोम का प्रभाव इस प्रकार बतलाया है- 'यह शरीर की रक्षा करता है, दुर्घटना से बचाता है, रोग दूर करता है, विपत्तियों को भगाता है, आनंद और आराम देता है, आयु बढ़ाता है और संपत्ति का संवर्द्धन करता है। इसके अलावा यह विद्वेषों से बचाता है, शत्रुओं के क्रोध और द्वेष से रक्षा करता है, उल्लासपूर्ण विचार उत्पन्न करता है, पाप करने वाले को समृद्धि का अनुभव कराता है, देवताओं के क्रोध को शांत करता है और अमर बनाता है'।
 
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सोम विप्रत्व और ऋषित्व का सहायक है। सोम अद्भुत स्फूर्तिदायक, ओजवर्द्धक तथा घावों को पलक झपकते ही भरने की क्षमता वाला है, साथ ही अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति कराने वाला है।
 
।।स्वादुष्किलायं मधुमां उतायम्, तीव्र: किलायं रसवां उतायम।
उतोन्वस्य पपिवांसमिन्द्रम, न कश्चन सहत आहवेषु।।- ऋग्वेद (6-47-1) 
अर्थात : सोम बड़ी स्वादिष्ट है, मधुर है, रसीली है। इसका पान करने वाला बलशाली हो जाता है। वह अपराजेय बन जाता है।
 
ऋग्वेद में शराब की घोर निंदा करते हुए कहा गया है-
।।हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।।
अर्थात : सुरापान करने या नशीले पदार्थों को पीने वाले अक्सर युद्ध, मार-पिटाई या उत्पात मचाया करते हैं। हालांकि वेदों में शराब को बुराइयों की जड़ कहा गया है, ऐसे में वे देवताओं को कैसे शराब चढ़ा सकते हैं।
 
यह निचोड़ा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस, सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इंद्र देव को प्राप्त हो।। (ऋग्वेद-1/5/5).. हे वायुदेव यह निचोड़ा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिश्रित करके तैयार किया गया है। आइए और इसका पान कीजिए।। (ऋग्वेद-1/23/1)... ।।शतं वा य: शुचीनां सहस्रं वा समाशिराम्। एदुनिम्नं न रीयते।। (ऋग्वेद-1/30/2)
 
अर्थात : नीचे की ओर बहते हुए जल के समान प्रवाहित होते सैकड़ों घड़े सोमरस में मिले हुए हजारों घड़े दुग्ध मिल करके इंद्रदेव को प्राप्त हों।
 
इन सभी मंत्रों में सोम में दही और दूध को मिलाने की बात कही गई है, जबकि यह सभी जानते हैं कि शराब में दूध और दही नहीं मिलाया जा सकता। भांग में दूध तो मिलाया जा सकता है लेकिन दही नहीं, लेकिन यहां यह एक ऐसे पदार्थ का वर्णन किया जा रहा है जिसमें दही भी मिलाया जा सकता है। अत: यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सोमरस जो भी हो लेकिन वह शराब या भांग तो कतई नहीं थी और जिससे नशा भी नहीं होता था अर्थात वह हानिकारक वस्तु तो नहीं थी। 
 
देवताओं के लिए समर्पण का यह मुख्य पदार्थ था और अनेक यज्ञों में इसका बहुविधि उपयोग होता था। सबसे अधिक सोमरस पीने वाले इंद्र और वायु हैं। पूषा आदि को भी यदा-कदा सोम अर्पित किया जाता है।
 
सोम लताएं पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जाती हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेन्द्र गिरी, विंध्याचल, मलय आदि अनेक पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाए जाने के जिक्र है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह बिना पत्तियों का गहरे बादामी रंग का पौधा है।
 
अध्ययनों से पता चलता है कि वैदिक काल के बाद यानी ईसा के काफी पहले ही इस वनस्पति की पहचान मुश्किल होती गई। ऐसा भी कहा जाता है कि सोम (होम) अनुष्ठान करने वाले लोगों ने इसकी जानकारी आम लोगों को नहीं दी, उसे अपने तक ही सीमित रखा और कालांतर में ऐसे अनुष्ठानी लोगों की पीढ़ी/परंपरा के लुप्त होने के साथ ही सोम की पहचान भी मुश्किल होती गई।
 
'संजीवनी बूटी' : कुछ विद्वान इसे ही 'संजीवनी बूटी' कहते हैं। सोम को न पहचान पाने की विवशता का वर्णन रामायण में मिलता है। हनुमान दो बार हिमालय जाते हैं, एक बार राम और लक्ष्मण दोनों की मूर्छा पर और एक बार केवल लक्ष्मण की मूर्छा पर, मगर 'सोम' की पहचान न होने पर पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं। दोनों बार लंका के वैद्य सुषेण ही असली सोम की पहचान कर पाते हैं।
 
यदि हम ऋग्वेद के नौवें 'सोम मंडल' में वर्णित सोम के गुणों को पढ़ें तो यह संजीवनी बूटी के गुणों से मिलते हैं इससे यह सिद्ध होता है कि सोम ही संजीवनी बूटी रही होगी। 
 
ऋग्वेद में सोमरस के बारे में कई जगह वर्णन है। एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि इंसानों के साथ-साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाए और पिलाए जाने की बात कही गई है।
 
इफेड्रा : कुछ वर्ष पहले ईरान में इफेड्रा नामक पौधे की पहचान कुछ लोग सोम से करते थे। इफेड्रा की छोटी-छोटी टहनियां बर्तनों में दक्षिण-पूर्वी तुर्कमेनिस्तान में तोगोलोक-21 नामक मंदिर परिसर में पाई गई हैं। इन बर्तनों का व्यवहार सोमपान के अनुष्ठान में होता था। यद्यपि इस निर्णायक साक्ष्य के लिए खोज जारी है। हलांकि लोग इसका इस्तेमाल यौन वर्धक दवाई के रूप में करते हैं।
 
ईरान और आर्यावर्त : माना जाता है कि सोमपान की प्रथा केवल ईरान और भारत के वह इलाके जिन्हें अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है यहीं के लोगों में ही प्रचलित थी। इसका मतलब पारसी और वैदिक लोगों में ही इसके रसपान करने का प्रचलन था। इस समूचे इलाके में वैदिक धर्म का पालन करने वाले लोग ही रहते थे।
 
कुछ वर्ष पहले ईरान में इंफेड्रा नामक पौधे की पहचान कुछ लोग सोम से करते थे। इफेड्रा की छोटी-छोटी टहनियां बर्तनों में दक्षिण-पूर्वी तुर्कमेनिस्तान में तोगोलोक-21 नामक मंदिर परिसर में पाई गई हैं। इन बर्तनों का व्यवहार सोमपान के अनुष्ठान में होता था। यद्यपि इस निर्णायक साक्ष्य के लिए खोज जारी है।
 
सोमवल्ली : प्राचीन ग्रंथों एवं वेदों में सोमवल्ली के महत्व एवं उपयोगिता का व्यापक उल्लेख मिलता है। अनादिकाल से देवी-देवताओं एवं मुनियों को चिरायु बनाने और उन्हें बल प्रदान करने वाला पौधा है सोमवल्ली। बताया जाता है कि रीवा जिले के घने जंगलों में यह पौधा आज भी पाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम Sarcostemma acidum बताया जाता है। इसकी कई तरह की प्रजातियां होती हैं।
 
अगले पन्ने पर दूसरी चमत्कारिक वस्तु... 
 

पारसमणि : कहते हैं कि पारसमणि आज भी हिमालय से लगे राज्यों में पाई जाती है। जैसे जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम, असम, अरुणाचल आदि।
 
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पारस मणि का जिक्र पौराणिक और लोक कथाओं में खूब मिलता है। इसके हजारों किस्से और कहानियां समाज में प्रचलित हैं। कई लोग यह दावा भी करते हैं कि हमने पारस मणि देखी है। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में जहां हीरे की खदान है, वहां से 70 किलोमीटर दूर दनवारा गांव के एक कुएं में रात को रोशनी दिखाई देती है। लोगों का मानना है कि कुएं में पारस मणि है।
 
पारस मणि की प्रसिद्धि और लोगों में इसके होने को लेकर इतना विश्‍वास है कि भारत में कई ऐसे स्थान हैं, जो पारस के नाम से जाने जाते हैं। कुछ लोगों के आज भी पारस नाम होते हैं।
 
पारस मणि की खासियत : पारस मणि से लोहे की किसी भी चीज को छुआ देने से वह सोने की बन जाती थी। इससे लोहा काटा भी जा सकता है। कहते हैं कि कौवों को इसकी पहचान होती है और यह हिमालय के आस-पास ही पाई जाती है। हिमालय के साधु-संत ही जानते हैं कि पारस मणि को कैसे ढूंढा जाए, क्योंकि वे यह जानते हैं कि कैसे कौवे को ढूंढने के लिए मजबूर किया जाए। हालांकि इन बातों में कितनी सचाई है यह हम नहीं जानते।
 
अगले पन्ने पर तीसरी चमत्कारिक वस्तु...
 

अक्षय पात्र : अक्सर यह चमत्कारिक अक्षय पात्र प्राचीन ऋषि-मुनियों के पास हुआ करता था। अक्षय का अर्थ जिसका कभी क्षय या नाश न हो। दरअसल, एक ऐसा पात्र जिसमें से कभी भी अन्न और जल समाप्त नहीं होता। जब भी उसमें हाथ डालो तो खाने की मनचाही वस्तु निकाली जा सकती है। अक्षय पात्र संबंधित एक स्त्रोत भी है। 
 
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महाभारत में अक्षय पात्र संबंधित एक कथा है। जब पांचों पांडव द्रौपदी के साथ 12 वर्षों के लिए जंगल में रहने चले गए थे, तब उनकी मुलाकात कई तरह के साधु-संतों से होती है। कुटिया बनाकर रहने के बाद उनके यहां भ्रमणशील साधु-संतों के जत्थे के जत्थे उनसे मिलने के लिए या कुटिया में प्रवास करने के लिए आते थे।
 
अब पांचों पांडवों सहित द्रौपदी के समक्ष यही प्रश्न होता था कि वे 6 प्राणी अकेले भोजन कैसे करें और उन सैकड़ों-हजारों के लिए भोजन कहां से आए?
 
तब पुरोहित धौम्य उन्हें सूर्य की 108 नामों के साथ आराधना करने के लिए कहते हैं। युधिष्ठिर इन नामों का बड़ी आस्था के साथ जाप करते हैं। अंत में भगवान सूर्य प्रसन्न होकर युधिष्ठिर के पास प्रकट होकर पूछते हैं कि इस पूजा-अर्चना का आशय क्या है?
 
युधिष्ठिर कहते हैं कि हे प्रभु! मैं हजारों लोगों को भोजन कराने में असमर्थ हूं। मैं आपसे अन्न की अपेक्षा रखता हूं। किस युक्ति से हजारों लोगों को खिलाया जाए, ऐसा कोई साधन मांगता हूं।
 
तब सूर्यदेव एक ताम्बे का पात्र देकर उन्हें कहते हैं- 'युधिष्ठिर! तुम्हारी कामना पूर्ण हो। मैं 12 वर्ष तक तुम्हें अन्नदान करूंगा। यह ताम्बे का बर्तन मैं तुम्हें देता हूं। तुम्हारे पास फल, फूल, शाक आदि  4 प्रकार की भोजन सामग्रियां तब तक अक्षय रहेंगी, जब तक कि द्रौपदी परोसती रहेगी।' ताम्बे का वह अक्षय पात्र लेकर युधिष्ठिर प्रसन्न हो जाते हैं। 
 
कथा के अनुसार द्रौपदी हजारों लोगों को परोसकर ही भोजन ग्रहण करती थी, जब तक वह भोजन ग्रहण नहीं करती, पात्र से भोजन समाप्त नहीं होता था। जनश्रुति के अनुसार इसी तरह का अक्षय पात्र आज भी हिमालय के साधुओं के पास है। यह पात्र सूर्य की साधना से ही प्राप्त होता है।
 
अगले पन्ने पर चौथी चमत्कारिक वस्तु.... 
 

स्वर्ण बूटी : आयुर्वेद और अथर्ववेद में उल्लेख है कि इस तरह की जड़ी-बूटियां होती हैं जिसके प्रयोग से स्वर्ण बनाया जा सकता है। सोने के निर्माण में तेलिया कंद-जड़ी बूटी का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है। ऐसी भी औषधियां होती हैं, जो व्यक्ति को फिर से जवान बना देती हैं। औषधियों के बल पर व्यक्ति 500 वर्षों तक निरोगी रहकर जिंदा रह सकता है।
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माना जाता है कि जड़ी-बूटियों के बल पर जहां सभी तरह के दुख-दर्द दूर किए जा सकते हैं, वहीं धनवान भी बना जा सकता है। जड़ी-बूटियों से 'सम्मोहन टीका' भी बनाया जाता है। जड़ी-बूटियों के माध्यम से धन, यश, कीर्ति, सम्मान आदि सभी कुछ पाया जा सकता है।
 
कहते हैं कि प्राचीन भारत के लोग स्वर्ण बनाने की विधि (gold making process) जानते थे। वे पारद आदि को किसी विशेष मिश्रण में मिलाकर स्वर्ण बना लेते थे, लेकिन क्या यह सच है? यह आज भी एक रहस्य है। कहा तो यह भी जाता है कि हिमालय में पारस नाम का एक सफेद पत्थर पाया जाता है जिसे यदि लोहे से छुआ दो तो वह लोहा स्वर्ण में बदल जाता था। पारे, जड़ी- वनस्पतियों और रसायनों से सोने का निर्माण करने की विधि के बारे में कई ग्रंथों में उल्लेख मिलता है।
 
अगले पन्ने पर पांचवीं चमत्कारिक वस्तु...
 

नागमणि और नीलमणि : असली नीलमणि जिसके भी पास होती है उसे जीवन में भूमि, भवन, वाहन और राजपद का सुख होता है। शनि का रत्न नीलम और नीलमणि में फर्क है। संस्कृत में नीलम को इन्द्रनील, तृषाग्रही नीलमणि भी कहा जाता है। नीलम के प्रकार- 1. जलनील, 2. इन्द्रनील।
 
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असली नीलमणि या नीलम से नीली या बैंगनी रोशनी निकली है, जो दूर तक फैल जाती है। विश्व का सबसे बड़ा नीलम 888 कैरेट का श्रीलंका में है जिसकी कीमत करीब 14 करोड़ आंकी गई है।
 
भारत में नीलमणि पर्वत भी है। भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में नीलम पाया जाता है। कश्मीर में पहले नागवंशियों का राज था। नीलम विशुद्ध रंग मोर की गर्दन के रंग का होता है। कहते हैं कि नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में असली 'नीलमणि' रखी हुई है। 
 
नागमणि : नागमणि को भगवान शेषनाग धारण करते हैं। भारतीय पौराणिक और लोक कथाओं में नागमणि के किस्से आम लोगों के बीच प्रचलित हैं। नागमणि सिर्फ नागों के पास ही होती है। नाग इसे अपने पास इसलिए रखते हैं ताकि उसकी रोशनी के आसपास इकट्ठे हो गए कीड़े-मकोड़ों को वह खाता रहे। हालांकि इसके अलावा भी नागों द्वारा मणि को रखने के और भी कारण हैं।
 
नागमणि का रहस्य आज भी अनसुलझा हुआ है। आम जनता में यह बात प्रचलित है कि कई लोगों ने ऐसे नाग देखे हैं जिसके सिर पर मणि थी। हालांकि पुराणों में मणिधर नाग के कई किस्से हैं। भगवान कृष्ण का भी इसी तरह के एक नाग से सामना हुआ था।
 
छत्तीसगढ़ी साहित्य और लोककथाओं में नाग, नागमणि और नागकन्या की कथाएं मिलती हैं। मनुज नागमणि के माध्यम से जल में उतरते हैं। नागमणि की यह विशेषता है कि जल उसे मार्ग देता है। इसके बाद साहसी मनुज महल में प्रस्थित होकर नाग को परास्त कर नागकन्या प्राप्त करता है।
 
नागमणि के चमत्कार : नागमणि के बारे में कहा जाता है कि यह जिसके भी पास होती है उसकी किस्मत बदल जाती है। कहते हैं कि नागमणि में अलौकिक शक्तियां होती हैं। उसकी चमक के आगे हीरा भी फीका पड़ जाता है। मान्यता अनुसार नागमणि जिसके भी पास होती है उसमें भी अलौकिक शक्तियां आ जाती हैं और वह आदमी भी दौलतमंद हो जाता है। मणि का होना उसी तरह है जिस तरह की अलादीन के चिराग का होना। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है, यह कोई नहीं जानता।
 
अगले पन्ने पर छठी चमत्कारिक वस्तु...
 
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कहां मिलेगा कल्पवृक्ष : कल्पवृक्ष वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है। कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष है। पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा का भंडार होता है। यह वृक्ष समुद्र मंथन से निकला था।
 
समुद्र मंथन से प्राप्त यह वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी स्थापना 'सुरकानन वन' (हिमालय के उत्तर में) में कर दी थी।
 
अगले पन्ने पर सातवीं चमत्कारिक वस्तु...
 
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संजीवनी बूटी : क्या संजीवनी बूटी होती है? कहते हैं ‍कि हिमालय में एक ऐसी बूटी पाई जाती है जिसके बल पर मृत व्यक्ति को भी जिंदा किया जा सकता है। वाल्मिकी रामायण अनुसार मूर्च्छित लक्ष्मण के लिए हनुमानजी यह बूटी लेकर आए थे। इस बूटी के दम पर ही शुक्राचार्य ने देवासुर संग्राम में असुरों को जीवित कर दिया था।
 
आजकल वैज्ञानिक पारे, गंधक और आयुर्वेद में उल्लेखित कई प्रकार की जड़ी-बूटियों पर शोध कर रहे हैं और इसके चमत्कारिक परिणाम भी निकले हैं। हालांकि जहां तक सवाल संजीवनी बूटी का है तो यह शोध और खोज का विषय है।
 
अगले पन्ने पर आठवीं चमत्कारिक वस्तु...
 

अदृश्य बूटी : आप सबके बीच खड़े हों और आपको कोई देख न पाए। आप कहेंगे या तो ये फिल्मी बात है या फिर किसी जादूगर का दावा। अमर होने से ज्यादा लोगों में गायब होने की तमन्ना है। जिसने भी 'मिस्टर इंडिया' फिल्म देखी होगी वह जानता है कि इसके ऐसे भी फायदे हो सकते हैं। गायब या अदृश्य होना मनुष्य की प्राचीन अभिलाषा रही है जिसके लिए समय-समय पर तरह-तरह के प्रयोग होते रहे हैं। इसके लिए कई सिद्धांत गढ़े गए हैं।
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वेद, महाभारत और पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं जिसमें कहा गया है कि देवता अचानक प्रकट हुए और फिर अंतर्ध्यान हो गए अर्थात गायब हो गए। हनुमानजी के बाद भगवान कृष्ण के पास यह विद्या थी।
 
हालांकि आयुर्वेद में भी गायब होने की जड़ियों के संबंध में लिखा है। एक ऐसी बूटी बनाई जाती है जिसको खाने से जब तक उसका असर रहता है, तब तक व्यक्ति गायब रहता है। भारत के हिमालयीन राज्यों में ऐसी धारणा है कि जड़ी-बूटियों के माध्यम से एक ऐसी गोली बनती है कि जिसको मुंह में रखने से व्यक्ति तब तक के लिए अदृश्य हो जाता है है, जब तक कि उस गोली का असर रहता है।
 
हालांकि अभी अदृश्य होने का कोई पुख्ता फॉर्मूला विकसित नहीं हुआ है लेकिन अमेरिका सहित दुनियाभर के वैज्ञानिक इस पर रिसर्च में लगे हुए हैं ताकि हजारों अदृश्य मानवों से जासूसी करवाई जा सके और दूसरों देशों में अशांति फैलाई जा सके। हो सकता है कि आने वाले समय में नैनो टेक्नोलॉजी से यह संभव हो। 
 
अगले पन्ने पर नौवीं चमत्कारिक वस्तु...
 

सफेद पलाश का पौधा : पलाश अक्सर पीला और सिंदूरी होता है, लेकिन सफेद पलाश बहुत ही दुर्लभ माना गया है। लोगों का मानना है कि यह फूल चमत्कारी होता है। लोग इसे श्रद्घा और विश्वास के साथ घर लाकर पूजन कक्ष में स्थापित करते हैं। तंत्र शास्त्र में इस वृक्ष के फूल से यंत्र बनाने का प्रयोग बताया गया है, जो धन लक्ष्मी के लिए कारगर बताया गया है।
 
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जिस किसी के भी घर में सफेद पलाश और लक्षमणा का पौधा होता है वहां धनवर्षा होना शुरू हो जाती है। जिंदगीभर किसी भी प्रकार से धन, दौलत आदि की कमी नहीं रहती है। दोनों ही पौधों के आयुर्वेद और तंत्रशास्त्र में कई और भी चमत्कारिक प्रयोग बताए गए हैं।
 
पलाश के फूल को टेसू का फूल कहा जाता है। इसे ढाक भी कहा जाता है। यह बसंत ऋ‍तु में खिलता है। पलाश 3 प्रकार का होता है- एक वह जिसमें सफेद फूल उगते हैं और दूसरा वह जिसमें पीले फूल लगते हैं और तीसरा वह जिसमें लाल-नारंगी फूल लगते हैं। माना जाता है कि सफेद पलाश के फूल की एक गूटिका बनती है जिसे मुंह में रखने के बाद आदमी तब तक गायब रहता है जब तक की गूटिका पूर्णत: गल नहीं जाए।
 
अगले पन्ने पर दसवीं चमत्कारिक वस्तु...
 

जेवहरातों से भरा चांदी का घड़ा : ऐसे भी किस्से देखे हैं कि किसी ने पुराना मकान खरीदा और उसे बनवाना शुरू किया। भाग्य कहें या परिश्रम वह अपने व्यवसाय में अमीर हो गया तो लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि खुदाई में उनको खजाना मिला होगा। ऐसे भी किस्से सुनने को मिले हैं कि लोगों को उनके घरों में सोने या चांदी का घड़ा मिला जिसमें गिन्नियां थीं।
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आज भी अफ्रीका के जंगलों में लोग सोने और खजाने की खोज में जाते हैं। आज भी धरती के दबी पड़ी हैं कई प्राचीन सभ्यताएं और उनके खजाने। आज भी धरती के विभिन्न इलाकों में बेशुमार धन और दौलत दबी पड़ी है‍ जिसे ढूंढने के लिए लोग न मालूम क्या-क्या उपाय कर रहे हैं। रातोरात करोड़पति बनने के लिए कुछ लोग इसी रास्ते को अपनाते हैं। 
 
कहते हैं कि बंजारा या आदिवासी समाज अपने धन को जमीन में गाड़ने के बाद उस जमीन के आस-पास तंत्र-मंत्र द्वारा 'नाग की चौकी' या 'भूत की चौकी' बिठा देते थे जिससे कि कोई भी उक्त धन को खोदकर प्राप्त नहीं कर पाता था। और जिस किसी को उनके खजाने का पता चल जाता और वह उसे चोरी करने का प्रयास करता तो उसके सामना नाग या भूत से होता था।

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