वर्षों के वैज्ञानिक शोध से यह पता चला कि 10 हजार ई.पू. धरती पर एलियंस उतरे और उन्होंने पहले इंसानी कबीले के सरदारों को ज्ञान दिया और फिर बाद में उन्होंने राजाओं को अपना संदेश वाहक बनाया । ऐसा हिस्ट्री टीवी चैनल की एलियंस पर बनाई गई एक सीरिज से पता चला।
वे अलग-अलग काल में अलग-अलग परंपरा-समाज की रचना कर धरती के देवता या कहें कि फरिश्ते बन बैठे। सचमुच इंसान उन्हें अपना देवता या फरिश्ता मानता है, क्योंकि वे आकाश से उतरे थे और उन्हें सर्वप्रथम आकाशदेव कहा गया लेकिन सच्चाई सिर्फ यही नहीं है। कुछ इंसान थे, जो उन्हें धरती को बिगाड़ने का दोषी मानते थे।
आकाश से उतरे इन देवदूतों (धर्मग्रंथों और सभ्यताओं के टैक्स अनुसार वे स्वर्गदूत थे) ने जब यहां की स्त्रियों के प्रति आकर्षित होकर उनके साथ संभोग करना शुरू किया तो उन्हें स्वर्ग से बहिष्कृत स्वर्गदूत कहा जाने लगा। लेकिन वे लोग जो उन्हें 'धरती को बिगाड़ने का दोषी' मानते थे उन्होंने उन्हें राक्षस कहना शुरू कर दिया।
बाद में लंबे काल तक इस बात को लेकर इंसानों में झगड़े चलते रहे। दो गुट बने- पहले वे जो 'एलियंस' (आकाशदेव, स्वर्गदूत या ईशदूत) के साथ थे और दूसरे वे जो उन्हें महज दूसरे ग्रह का वासी मानते थे, लेकिन आज सब कुछ बदल गया। वे लोग हार गए, जो उन्हें 'एलियंस' मानकर उनके खिलाफ लड़ाई करते थे। अब सवाल यह उठता है कि वे 'हारे' हुए लोग कहां है? और जो जीत गए क्या उन्होंने रक्त की शुद्धता बनाए रखी या एलियंस ने उनकी जातियां भी नष्ट कर दीं और अब हम सभी इंसान 'एलियंस' की संतानें हैं?
इजिप्ट, मेसोपोटामिया, सुमेरियन, इंका, बेबीलोनिया, सिंधु घाटी, माया, मोहनजोदड़ो और दुनिया की तमाम सभ्यताओं के टैक्स में लिखा है कि जल्दी ही लौट आएंगे हमारे 'आकाशदेव' और फिर से वे धरती के मुखिया होंगे।
इजिप्ट और माया सभ्यता के लोग मानते थे कि अंतरिक्ष से हमारे जन्मदाता एक निश्चित समय पर पुन: लौट आएंगे। ओसाइशिरा (मिश्र का देवता) जल्द ही हमें लेने के लिए लौट आएगा। तो क्या हम 'स्टार प्रॉडक्ट' हैं? और क्या इसीलिए गिजावासी मरने के बाद खुद का ममीकरण इसलिए करते थे कि उनका 'आकाशदेव' उन्हें अंतरिक्ष में ले जाकर उन्हें फिर से जीवित कर देगा?
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वैज्ञानिकों ने कई सालों की रिसर्च के बाद यह पता लगाया कि 'ओरायन' एक ऐसा नक्षत्र है जिसका हमारी धरती से कोई गहरा संबंध है। भारतीय, मिस्र, मेसोपोटामिया, माया, ग्रीक और इंका आदि सभ्यताओं की पौराणिक कथाओं और तराशे गए पत्थरों पर अंकित चित्रों में इस 'नक्षत्र' संबंधी जो जानकारी है वह आश्चर्यजनक ढंग से एक समान है। वैज्ञानिक मानते हैं कि हमारे पूर्वज या कहें कि हमें दिशा-निर्देश देने वाले लोग 'ओरायन' नक्षत्र से आए थे।अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी ने हबल दूरबीन के द्वारा इस ओरायन तारामंडल के सटीक चित्र खींचे और बाद में वे दुनियाभर में प्रचारित किए।क्या है ओरायन कॉन्स्टलेशन (orian constellation) : भारत में 'ओरायन' नक्षत्र को 'मृगशिरा' कहा जाता है। हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष माह और मृगशिरा नक्षत्र बहुत पवित्र माना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष के नवम माह का नाम मार्गशीर्ष है। इस माह को अगहन भी कहा जाता है। सतयुग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष प्रारंभ किया। हमारे आकाश को वैज्ञानिकों ने 88 तारामंडलों में बांटा है। भारतीय ज्योतिष ने 27 नक्षत्रों में बांटा है। मृगशिरा नक्षत्र आकाश मंडल में पांचवां नक्षत्र है। मृगशिरा का शाब्दिक अर्थ है मृग का शिर अर्थात हिरण का सिर। मृगशिरा तारामंडल में हमारी पृथ्वी जैसी हजारों पृथ्वियों के होने का अनुमान है।ओरायन के तारे : हमारी धरती से 1500 प्रकाशवर्ष दूर 'ओरायन' तारामंडल में वैसे तो दर्जनों तारे हैं लेकिन प्रमुख 7 तारे हैं। इस तारामंडल में तीन तेजी से चमकने वाले तारे एक सीधी लकीर में हैं, जिसे 'शिकारी का कमरबंद' (ओरायन की बेल्ट) कहा जाता है। सात मुख्य तारे इस प्रकार हैं- आद्रा (बीटलजूस), राजन्य (राइजॅल), बॅलाट्रिक्स, मिन्ताक, ऍप्सिलन ओरायोनिस, जेटा ओरायोनिस, कापा ओरायोनिस। इसमें आद्रा तारा, राजन्य तारा और बॅलाट्रिक्स तारा सबसे कांतिमय और विशालकाय है, जो धरती से स्पष्ट दिखाई देते हैं।भारतीय मान्यता अनुसार : मृगशिरा नक्षत्र आकाश में काफी फैला हुआ है। इसके तीन चमकीले छोटे तारे एक सीधी रेखा में हैं और बड़े खूबसूरत हैं। उन्हें त्रिकांड कहते हैं। उनके कारण मृग को पहचानना बहुत सरल है। त्रिकांड के चारों ओर आयताकार चार तारे हैं और नीचे की ओर तीन छोटे-छोटे तारे हैं। त्रिकांड की बाईं ओर व्याध तथा दाईं ओर रोहिणी का बड़ा तारा है और ये पांच एक सीधी रेखा में हैं। व्याध से थोड़ा ऊपर पुनर्वसु नक्षत्र के चार चमकीले तारे हैं। पुनर्वसु, रोहिणी व आर्द्रा, नक्षत्रों की पहचान भी कर सकते हैं।
धरती पर कब दिखाई देता है ओरायन और एलियंस ने कहां बनाए 'एयरपोर्ट', अगले पन्ने पर...
इस समय देखें यह ग्रह-नक्षत्र : आजकल मृगशिरा या ओरायन नक्षत्र सूर्यास्त के बाद से ही पूर्व-दक्षिण क्षितिज में देखा जा सकता है। धीरे-धीरे ऊपर आकर दूसरे दिन भोर में दक्षिण-पश्चिम दिशा में इसके एक-एक तारे ढलने लगते हैं। उनसे दोस्ती बढ़ानी है तो रात में अलग-अलग समय उठकर देखते चलो कि ये आकाश में कहां-कहां कैसे भ्रमण करते हैं।एलियंस के एयरपोर्ट : इस तारामंडल के अनुसार ही धरती पर भारत, चीन, इजिप्ट, ग्रीस, मैक्सिको, उत्तर अमेरिका आदि जगहों पर शहर बने हैं और आश्चर्यजनक रूप से हैलीपैड और एयरपोर्ट भी। ऐसे हैलीपैड जिस पर शोध करते वक्त वैज्ञानिक हैरान रह गए कि आखिर इन्हें कौन-सी टेक्नोलॉजी से बनाया गया होगा, क्योंकि यह तो बस आज की आधुनिक टेक्नोलॉजी से ही संभव हो सकता है।
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इन्हें कैसे बनाया गया? यह विज्ञान के लिए आज भी एक अबूझ पहेली है, क्योंकि कोई ऐसी तकनीक नहीं थी, जो उस जमाने में इस 'एयरपोर्ट' को बना सकती थी। आज की आधुनिक टेकनोलॉजी को भी इसे बनाने में भारी मशक्कत करना पड़ेगी, तब उस काल के मानव के लिए यह बनाना असंभव था। इसे कोई एलियंस ही बना सकता है और वह भी रातोरात?इंका सभ्यता के राजा से जब यह पूछा गया कि यह विशालकाय और इतनी सुंदर तरीके से तराशी गई चट्टानें कहां से आईं और इन्हें स्मारक जैसा रूप किसने दिया तो राजा ने कहा कि यह मैंने नहीं बनवाई। आकाश से कोई आया था जिसने ये बनाए और हमारे लिए छोड़कर चले गए।रातोरात पूरी सभ्यता कैसे खड़ी की जा सकती है? दक्षिण अमेरिका के इस गुमनाम शहर का नाम है- 'पुम्मा पुंकु'। इस शहर को 'एलियंस' ने बसाया और इसके पास महज 7 मील की दूरी पर उन्होंने एक 'एयरपोर्ट' भी बनाया और वह भी रातोरात।रातोरात खड़े किए गए इस विशालकाय ढांचे का एक-एक पत्थर 26 फीट ऊंचा और 100 टन वजनी है। ग्रेनाइट पत्थर से बने यह एच (H) शैप के पत्थर 13 हजार फीट की ऊंचाई पर आखिर कैसे ले जाए गए। एक या दो पत्थर नहीं, बल्कि सैकड़ों एच ब्लॉक। वैज्ञानिकों ने जब इन पत्थरों पर शोध किया तो पाया कि इतनी सफाई से बने ये पत्थर के ब्लॉक हाथों से तो कतई नहीं बनाए जा सकते। यह तो भौतिकी का बेहतर उदाहरण है। उनके होल्स और इनके किनारे बिल्कुल सटीक बने हैं। यह किसी मशीनी टूल्स, डायमंड टूल्स या लेजर से ही बन सकते हैं।खोजकर्ताओं ने इसके कार्बन टेस्ट से पाया कि ये पत्थर करीब 27 हजार वर्ष पुराने हैं। इन एच ब्लॉक के पत्थरों का ग्राफ बनाकर उसका डाटा कंप्यूटर में फिट किया गया और फिर से कंप्यूटर पर उसी तरह जोड़ा गया जबकि उन्हें उस काल में जोड़ा गया था तो एक विशाल प्लेटफॉर्म या कहें एयर ट्रैक बनता है, जो विशालकाय जायंट एयरशटल के उतरने के लिए था। लेकिन 1100 ई. पूर्व यह इलाका पूरी तरह से तबाह हो गया। कैसे? बाढ़ से, युद्ध से, उल्का से या फिर अन्य किसी कारण से।सबसे खास बात जो शोध से पता चली कि इन्हें सात मील दूर बनाकर यहां असेम्बल किया गया। कई शोधकर्ता इसे मानते हैं कि इसे सुपर टेक्नोलॉजी के जरिए यहां लाया गया और ऐसा तो कोई एलियंस ही कर सकते हैं, इंका सभ्यता के लोग या वहां के आदिवासी नहीं।आखिर उन्हें रातोरात बनाने की जरूरत क्यों हुई? दरअसल उनकी उड़नतश्तरी को उन्हें कहीं सुरक्षित लैंड करना था और लैंड करने के बाद फिर से उन्हें वहां से निकलना था। इसलिए उन्होंने एक लांच पैड के साथ ही अपने लोगों के रहने के लिए एक स्थान (तिहूनाको) भी बनाया। अंत में वे उन्हें ऐसा का ऐसा ही छोड़कर चले गए।जब उन्होंने एक छोटा गांव (तिहूनाको) बनाया तो उन्होंने उसकी दीवारों पर अपने लोगों के चित्र भी बनाए और उनके बारे में भी लिखा। तिहूनाको में काफी तादाद में जो पत्थरों की दीवारें हैं उनमें अलग-अलग तरह के मात्र गर्दन तक के सिर-मुंह बने हैं। ये सिर या स्टेचू स्थानीय निवासियों ने नहीं हैं।तिहूनाको के आदिवासी पुमा पुंकु में घटी असाधरण घटना की याद में आज भी गीत गाते हैं। पुमा पुंका में आकाश से देवता उतरे थे।1549
में इंका सभ्यता के खंडहर पाए गए। पुमा पुंकु से आधा किलोमीटर दूर एक नई सभ्यता मिली जिसे तिहूनाको (Tiwanaku, Bolivia) कहा गया। तिहूनाको को जिन्होंने बसाया उन्होंने ही पुमा पुंकु को बनाया।सुमेरियन सभ्यता के टैक्स में भी इस जगह का जिक्र है, जबकि सुमेरियन सभ्यता यहां से 13 हजार किलोमीटर दूर है। सुमेरियन भी मानते हैं कि 'अनुनाकी' नाम का एक देवता धरती पर उतरा था। यह अनुनाकी एलियंस 'ग्रे एलियंस' की श्रेणी का एलियंस था।
कैसे थे 'एलियंस' और उन्होंने यहां की औरतों के साथ क्या किया...अगले पन्ने पर
यह सही है कि आज का आधुनिक विज्ञान उन्हें एलियंस ही माने, लेकिन बाइबल में इन्हें 'नेफिलीम' कहा गया है जिन्हें स्वर्ग से बाहर कर दिया गया था और जो धरती के नहीं थे। ये स्वर्गदूतों के बच्चे थे। उनमें से एक शैतान था। परमेश्वर ने स्वर्गदूतों को स्वर्ग में रहने के लिए बनाया था, न कि धरती पर लेकिन वे सब धरती पर आ गए।धरती पर वे इंसानों की औरतों की ओर आकर्षित होने लगे और फिर वे अपनी मनपसंद औरतों के साथ रहने लगे। फिर उनके भी बच्चे हुए और धीरे-धीरे उन्होंने धरती पर अपना साम्राज्य फैलाना शुरू किया। सामान्य मानव उन्हें या तो देवदूत कहता या राक्षस। इस तरह धरती पर एक नए तरह का युग शुरू हुआ और नए तरह का संघर्ष भी बढ़ने लगा और सभी तरफ एलियंस का ही साम्राज्य हो गया। लोग रक्त शुद्धता पर जोर देने लगे। भारतीय, मिस्र, ग्रीस, मैक्सिको, सुमेरू, बेबीलोनिया और माया सभ्यता अनुसार वे कई प्रकार के थे जैसे आधे मानव और आधे जानवर। इंसानी रूप में वे लंबे-पतले थे, उनका सिर पीछे से लंबा था। वे 8 से 10 फीट के थे। अर्धमानव रूप में वे सर्प, गरूढ़ और वानर जैसे थे। आपने विष्णु का वाहन का चित्र देखा होगा। नागदेवता को कौन नहीं जानता?दूसरे वे थे जो राक्षस थे, जो बहुत ही खतरनाक और लंबे और चौड़े थे। कुछ तो उनमें से पक्षी जैसे दिखते थे और कुछ वानर जैसे। उनमें से कुछ उड़ सकते थे और समुद्र में भीतर तल पर चल सकते थे। जब वे समुद्र के भीतर चलते थे तो उनके सिर समुद्र के ऊपर दिखाई देते थे। उनमें ऐसी शक्तियां थीं, जो आम इंसानों में नहीं थी। जैसे पानी पर चलना, उड़ना, गायब हो जाना आदि।शोधकर्ता मानते हैं कि उनमें से बचे कुछ 'एलियंस' आज भी धरती पर मौजूद हैं। वे हमें इसलिए दिखाई नहीं देते है, क्योंकि या तो में हिमालय की अनजान जगहों पर रहते हैं या पाताल की गुप्त सुरंगों में। हमने कई लोगों को यह कहते सुना है कि 'बिगफुट' देखा गया।हालांकि शोधकर्ता यह भी मानते हैं कि अंतरिक्ष से आए 'एलियंस' ने प्राचीन मानवों और खुद के जीन को मिलाकर कई हाईब्रिड नस्लें बनाईं। उन्होंने इंसान ही नहीं, धरती के जानवरों पर भी ये प्रयोग किए और अजीब-अजीब किस्म के जानवर बनाए। आधे इंसान और आधे जानवर। आधे जानवर और आधे दूसरे जानवर। 'एलियंस' यहां पर मिश्रित प्रजातियों को जन्म देकर पुन: अपने ग्रह चले गए और फिर समय-समय पर पुन: आकर यह देखते रहे कि आखिर हमारी बनाई गई रचना का क्या हुआ।भारत में सर्पमानव, वानरमानव, पक्षीमानव और इसी तरह के अन्य मानवों की कथाएं मिलती हैं। चीन में पवित्र ड्रेगन को स्वर्गदूत माना जाता हैं, जो चार हैं और ये चारों ही समुद्र के बीचोबीच भूमि के अंदर रहते हैं।
एलियंस ने धरती पर कहां-कहां बनाए पिरामिड और अपने रहने के स्थान...अगले पन्ने पर
इजिप्ट के पिरामिडों के टैक्स से पता चला कि ओरायन से आए थे देवता और उन्होंने ही धरती पर जीवों की रचना की। इजिप्ट के लोग उन्हें अपना पूर्वज मानते थे। तो क्या इंसान 'प्राचीन एलियंस' का वंशज है? इजिप्शियंस मानते हैं कि 'ओरायन' ही हमारे अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब-किताब रखते हैं और एक दिन हमें उन्हीं के पास जाना है। इजिप्शियंस ने अपने उन 'आकाशदेव' को नाम दिया है ओसाइशिरा जिसे साइरस भी कहा जाता था। उनके अनुसार एक दिन वे वापस लौट आएंगे, क्योंकि वही हमारे जन्मदाता हैं। इजिप्शियंस मानते हैं कि मानव जाति का जन्म तारों से हुआ है। इजिप्ट के टैक्स से पता चला कि बादशाह हुनस सचमुच ही अंतरिक्ष में गए थे और लौट आए थे। बादशाह 'ओरायन' के नक्षत्रों के तारों में किसी से मिलने जाते थे।गीजा के तीन पिरामिड 'ओरायन' नक्षत्र के तीन तारों के ठीक नीचे बने हैं और कुल प्रमुख सात पिरामिड हैं। उस पूरे क्षेत्र की रचना इस प्रकार है जैसी कि आकाश में उन तारों की आपसी दूरी दिखाई देती है। पिरामिड के रिसर्च से पता चला कि ओरायन नक्षत्र की ओर इंगित करते ये तीन पिरामिड आश्चर्यजनक रूप से ओरायन से जुड़े हैं। अंतरिक्ष से देखने पर लगता है कि यह ओरायन नक्षत्र है। इसी तरह के धरती पर और भी कई स्थान हैं, जो ओरायन से अलायमेंट हैं।डिस्कवरी और हिस्ट्री चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक 'चैरियोट्स ऑफ गॉड्स' के मशहूर लेखक एरिक वोन डेनीकेन का मानना है कि प्राचीन मिस्र के निवासियों के पास गीजा के पिरामिडों को बनाने की कोई तकनीक नहीं थी। मिस्र के निवासियों के पास गीजा में पिरामिड बनाने के लिए न तो औजार थे, न ही इन्हें बनाने का ज्ञान था। इस तरह इन्हें अवश्य ही एलियंस ने बनाया होगा।मध्य अमेरिका के माया पिरामिड और पेरू के नाजका मरुस्थल में बनी चित्रकारी के बारे में भी इसी तरह के दावे किए गए हैं। गीजा से हजारों किलोमीटर उत्तर अमेरिका के नाफ्टा के स्टोन्स। यहां रेगिस्तान में तीन पत्थरों के आसपास पांच और हैं, जो ओरायन को इंगित करते हुए बनाए गए हैं। 1974
में इस स्थान की खोज की गई जिसे डेजर्स का मिनिस्टोन कहा जाता है। उनकी बनावटों से पता चलता है कि उन्हें फिजिस्स-एस्ट्रोलॉजी की जबरदस्त जानकारी थी। यहां तीन स्टोन में से सर्कल स्टोन के पास के पत्थर को केंडल सर्कर स्टोन कहा जाता है दूसरे को ब्लैक मिसा।ये करीब 7 हजार ईसा पूर्व बनाए गए थे, लेकिन क्यों? पहले यहां लोग रहते थे। बाद में कुछ कारणवश वे लोग यहां से 100 किलोमीटर दूर जाकर बस गए। इन लोगों को 'स्टार पीपल' कहा जाता है, जो ओरायन के आदेशों अनुसार धरती पर अपने रहने की जगह बनाते थे। उनके अनुसार अंतरिक्ष से जब वे आते थे तो धरती पर दूर से ही उन्हें वह स्थान दिखाई दे जाता था, जहां उन्हें उतरना है और एक दिन वे अपने यान के साथ पुन: लौटकर देखेंगे की उनकी संतानों का क्या हुआ।एरिजोना के 15 लाख एकड़ में फैले डेजर्ट में हजारों ऐसे गाव हैं, जो 'ओरायन' तारों की ओर इंगित करते हैं। इसी में से एक होपी लैंड है, जहां ओरायन के तीन तारों को इंगित करती तीन चट्टानें हैं। उन तीन के आसपास चार और हैं, सेंटर में तीन। होपी रेड इंडियन लोग अपने देवता को मसाऊ कहते थे यह उनकी ही याद में बने हैं या इसे उनके (मसाऊ) इशारों पर ही बनाया गया।रेगिस्तान में उनका देवता मसाऊ उन्हें जगह बताता था कि कहां गांव बनाने हैं और इस तरह धरती पर 'ओरायन' तारों का एक पूरा बेल्ट बना लिया गया। इनकी दूरियों को आपस में जोड़ने पर 'शिकारी तारामंडल' बनता है। यह जमीनी नक्शा ओरायन के बेल्ट से मेल खाता है।
अंतिम पेज पर भारत में 'एलियंस'...
भारतीय पौराणिक शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि कई देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया था। क्यों? उनकी हरकतों के चलते उन्हें कोई न कोई ऋषि या भगवान श्राप दे देता था और फिर उन्हें धरती पर दिन गुजारने होते थे। ये देवता भी कई प्रकार के होते थे। कोई वानर रूप में, कोई सर्प रूप में तो कोई राक्षस रूप में।पौराणिक ग्रंथों में देव और दानवों की जो कथाएं मिलती हैं, वे स्वर्ग और धरती से जुड़ी हुई हैं। नारद नाम के एक देव दोनों लोक के संदेशवाहक थे। और भी कई संदेश वाहक थे, लेकिन वे सबसे प्रसिद्ध थे।विष्णु भगवान (जो एक एलियंस थे प्राचीन एस्ट्रॉनॉमी के अनुसार) ने अपने दोनों पार्षदों (जय और विजय) को वैकुंठ से निकाल दिया था। क्यों? क्योंकि उन्होंने सदा अंतरिक्ष में विचरण करने वाले चार कुमार को वैकुंठ में आने से रोक दिया था तो उन्हें चारों कुमारों का श्राप झेलना पड़ा और फिर उन्होंने धरती पर हिण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में जन्म लिया। भगवान् विष्णु का प्रथम अवतार चार कुमारों के रूप में हुआ- पहले कौमारसर्ग में सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार। ये चार कुमार शाश्वत मुक्तात्मा हैं, जो अंतरिक्ष में कहीं भी आ-जा सकते थे। इनकी आयु बहुत अधिक होने पर भी ये पांच वर्ष के बालकों जैसे ही लगते हैं और इन्हें देवताओं का पूर्वज माना जाता है। 'अवतार' शब्द भी अपने आप में किसी दूसरे लोक की ओर इशारा करता है।दूसरी ओर प्राचीन एस्ट्रोनॉमी के शोधकर्ता मानते हैं कि भारत के पौराणिक ग्रंथों में जिस यति का उल्लेख मिलता है वह 'एलियंस' ही रहा होगा। वेदों में इंसानों के अलावा धरती पर देव, दानव, राक्षस, गंधर्व, किन्नर और यति रहते थे।शोधकर्ताओं ने पाया कि भारत में 'विजय नगर साम्राज्य' सर्पदेव से संबंध रखने वाले लोगों ने बसाया था। भारत में जिस नागदेव की पूजा की जाती है, जो आधा मानव और आधा सर्प है निश्चय ही वह 'एलियंस' रहा होगा या ओरायन से आए एलियंसों ने अपने जीन से इस तरह के कई जीव-जंतु बनाए। हां, इसके कई सबूत हैं कि एलियंस ने आधे मानव और आधे जानवर जैसे जीव बनाए थे।माना जाता है कि गुरु और शुक्र ग्रह पर पहले लोग रहते थे। गुरु ग्रह के लोगों ने मंगल को अपनी सैन्य छावनी बनाया था तो शुक्र ग्रह के लोगों ने चंद्र को। चंद्र और मंगल ग्रह पर उनके अंतरिक्ष यानों की देखरेख और युद्ध की ट्रेनिंग होती थी। गुरु ग्रह के शासक ऋषि बृहस्पति थे और शुक्र ग्रह के शुक्राचार्य। आज देखा जाए तो कुछ धर्म ऐसे हैं जो शुक्र और चंद्र को अपने धर्म में महत्वपूर्ण स्थान देते हैं और कुछ में गुरु और मंगल का महत्वूर्ण स्थान है।महाभारत, रामायण और वेद में ऐसे कई लोगों का जिक्र है, जो हमारे ग्रह के नहीं थे।संदर्भ : हिस्ट्री चैनल, वेद, बाइबल और पुराण। इसी तरह के लेखों के लिए पढ़ते रहिए... वेबदुनिया.कॉम।