दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश विज्ञान के लिए बेहद चुनौतीभरा काम रहा है और हो सकता है कि यही काम दूसरे ग्रहों के वैज्ञानिक भी करते हों। ऐसे में वे अपने किसी यान द्वारा धरती पर आ जाते हों तो कोई आश्चर्य नहीं। हम भी तो चंद्र ग्रह, मंगल ग्रह पर पहुंच गए हैं। हमने शनि पर भी एक यान भेज दिया है। अब किसी न किसी दिन मानव भी उन यानों में बैठकर जाने की हिम्मत करेंगे।
वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कोई ऐसे भी इंसान हैं, जो बगैर किसी ग्रह के जीवन जी रहे हों और वे इसी तरह अपना संपूर्ण जीवन यान में ही गुजार देते हों?
जो भी हो, दुनियाभर के वैज्ञानिकों में इस वक्त दूसरे ग्रह के प्राणियों का धरती पर आने को लेकर शोध बढ़ गया है। हर देश का वैज्ञानिक इस खोज में लगा हुआ है कि क्या सचमुच अपने देश भी एलियंस आए थे और क्या किसी ने इसे देखा है? लोग इसे मानें या न मानें, लेकिन यह सच है कि धरती पर दूसरे ग्रह के लोग आकर चले गए हैं और वे आते रहते हैं और यह भी कि वे धरती पर किसी अनजानी जगह पर रहते भी हैं। वैज्ञानिक यही सब कुछ खोज रहे हैं।
इस खोज के चलते ही भारत में ऐसे कई स्थानों की खोज की गई है, लेकिन यहां प्रस्तुत है सिर्फ 7 स्थानों की जानकारी। अब सवाल यह भी है कि इसका सनातन धर्म से क्या संबंध है। कहना होगा कि इसका हर धर्म से संबंध है। यह अगले पन्ने पर पता चलेगा।
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हिमालय में रहते हैं एलियंस? विश्वभर के वैज्ञानिक मानते हैं कि धरती पर कुछ जगहों पर छुपकर रहते हैं दूसरे ग्रह के लोग। उन जगहों में से एक हिमालय है। भारतीय सेना और वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार नहीं करते लेकिन वे अस्वीकार भी नहीं करते हैं। हिस्ट्री चैनल्स की एक सीरिज में इसका खुलासा किया गया।
भारतीय सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की यूनिटों ने सन् 2010 में जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में उड़ने वाली अनजान वस्तुओं (यूएफओ) के देखे जाने की खबर दी थी, लेकिन बाद में इस खबर को दबा दिया गया। लेकिन सोशल मीडिया पर इस खबर की खासी चर्चा रही।
पहली घटना : 20 अक्टूबर 2011, सुबह 4.15 बजे, रात की ड्यूटी कर रहे भारतीय सेना के एक जवान ने तश्तरी के आकार वाला चमकती रोशनी से आच्छादित एक अंतरिक्ष यान सीमा रेखा के नजदीक एक सीमांत बस्ती में उतरते देखा। दो प्रकाश उत्सर्जक करीब 3 फुट ऊंचे जीव, जिनमें प्रत्येक के 6 पैर और 4 आंखें थीं। यान के किनारे से एक ट्यूब से उभरे वो जवान के पास पहुंचे और अंग्रेजी के भारी-भरकम उच्चारण के साथ जोर्ग ग्रह का रास्ता पूछा। हालांकि इस घटना में कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता।
दूसरी घटना : एक अन्य सूचित घटना में 15 फरवरी दोपहर तकरीबन 2.18 पर भारत-चीन सीमा से करीब 0.25 किलोमीटर दूर एक छोटे से क्षेत्र में मैदान से करीब 500 मीटर ऊपर चमकदार सफेद रोशनी नजर आई और आठ भारतीय कमांडो, एक कुत्ते, तीन पहाड़ी बकरियों और एक बर्फीले तेंदुए को भारी बादलों में ले जाने से पहले वह गायब हो गई। हालांकि कुछ मानते हैं कि वह ले जाने में कामयाब नहीं हो पाई। कहा जाता है कि बाद में छह कमांडो को गोवा के एक स्वीमिंग पूल से बचाया गया। दो लापता हैं। बचे हुए लोगों को यह घटना याद नहीं। इस घटना का गवाह एक स्थानीय किसान बना, जो सीमा रेखा के नजदीक भेड़ चरा रहा था।
तीसरी घटना : 22 जून को शाम 5.42 बजे एक बड़ा अंडाकार अंतरिक्ष यान उच्च हिमालय में गायब होने से पहले अस्थायी रूप से चीन की तरफ एक सैन्य पड़ाव के ऊपर मंडराता नजर आया, ऐसा कई प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा। रिपोर्टों में उद्धृत किया गया कि वो करीब एक बड़े वायुयान के माप का था, जो चमकते चक्रों और पीछे घसीटते कपड़ों से आच्छादित था।
आईटीबीपी की धुंधली तस्वीरों के अध्ययन के बाद भारतीय सैन्य अधिकारियों का मानना है कि ये गोले न तो मानवरहित हवाई उपकरण (यूएवी) हैं और न ही ड्रोन या कोई छोटे उपग्रह हैं। ड्रोन पहचान में आ जाता है और इनका अलग रिकॉर्ड रखा जाता है। यह वह नहीं था। सेना ने 2011 जनवरी से अगस्त के बीच 99 चीनी ड्रोन देखे जाने की रिपोर्ट दी है। इनमें 62 पूर्वी सेक्टर के लद्दाख में देखे गए थे और 37 पूर्वी सेक्टर के अरुणाचल प्रदेश में। इनमें से तीन ड्रोन लद्दाख में चीन से लगी 365 किमी लंबी भारतीय सीमा में प्रवेश कर गए थे, जहां आईटीबीपी की तैनाती है।
पहले भी लद्दाख में ऐसे प्रकाश पुंज देखे गए हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और चीन अधिकृत अक्साई चिन के बीच 86,000 वर्ग किमी में फैले लद्दाख में सेना की भारी तैनाती है। इस साल लगातार आईटीबीपी के ऐसे प्रकाश पुंज देखे जाने की खबर से सेना की लेह स्थित 14वीं कोर में हलचल मच गई थी।
जो प्रकाश पुंज आंखों से देखे जा सकते थे, वे रडार की जद में नहीं आ सके। इससे यह साबित हुआ कि इन पुंजों में धातु नहीं है। स्पेक्ट्रम एनालाइजर भी इससे निकलने वाली किसी तरंग को नहीं पकड़ सका। इस उड़ती हुई वस्तु की दिशा में सेना ने एक ड्रोन भी छोड़ा, लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। इसे पहचानने में कोई मदद नहीं मिली। ड्रोन अपनी अधिकतम ऊंचाई तक तो पहुंच गया लेकिन उड़ते हुए प्रकाश पुंज का पता नहीं लगा सका।
भारतीय वायुसेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) पीवी नाइक कहते हैं कि हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमें पता लगाना होगा कि उन्होंने कौन-सी नई तकनीक अपनाई है।
भारतीय वायुसेना ने 2010 में सेना के ऐसी वस्तुओं के देखे जाने के बाद जांच में इन्हें ‘चीनी लालटेन’ करार दिया था। पिछले एक दशक के दौरान लद्दाख में यूएफओ का दिखना बढ़ा है। 2003 के अंत में 14वीं कोर ने इस बारे में सेना मुख्यालय को विस्तृत रिपोर्ट भेजी थी। सियाचिन पर तैनात सैन्य टुकड़ियों ने भी चीन की तरफ तैरते हुए प्रकाश पुंज देखे हैं, लेकिन ऐसी चीजों के बारे में रिपोर्ट करने पर हंसी उड़ने का खतरा रहता है।-FB
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ओडिशा में उतरे थे एलियन : इस बात का पता एक ताड़पत्र की खुदाई से चला है। वर्ष 1947 में भारत के आजाद होने से कुछ माह पहले ही एक यूएफओ को ओडिशा के नयागढ़ जिला में उतरते देखे जाने की बात कही गई थी।
एक स्थानीय कलाकार पचानन मोहरना ने इस घटना को ताड़पत्र पर खुदाई कर दर्ज किया था। पचानन ने उन एलियन व उनके विमान के रेखाचित्र भी बनाए थे। यह यूएफओ 31 मई 1947 को पहाड़ी इलाके नयागढ़ में उतरे थे। इस घटना के एक माह बाद ही न्यू मैक्सिको के पास एक संदिग्ध दुर्घटना हुई थी।
इसके बाद अमेरिकी वायुसेना ने दुर्घटनास्थल से एक उडनतश्तरी को बरामद करने का दावा किया था। हालांकि इस घटना को बाद में अमेरिका और भारत ने छिपाने का प्रयास किया।
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नर्मदा की सैर करने आते थे एलियन : 1300 किलोमीटर का सफर तय करके अमरकंटक से निकलकर नर्मदा विंध्य और सतपुड़ा के बीच से होकर भडूच (भरुच) के पास खंभात की खाड़ी में अरब सागर से जा मिलती है। नर्मदा घाटी को विश्व की सबसे प्राचीन घाटियों में गिना जाता है। यहां भीमबैठका, भेड़ाघाट, नेमावर, हरदा, ओंकारेश्वर, महेश्वर, होशंगाबाद, बावनगजा, अंगारेश्वर, शुलपाणी आदि नर्मदा तट के प्राचीन स्थान हैं। नर्मदा घाटी में डायनासोर के अंडे भी पाए गए हैं और यहां कई विशालकाय प्रजातियों के कंकाल भी मिले हैं।
यहां प्रागैतिहासिक शैलचित्रों के शोध में जुटी एक संस्था ने रायसेन के करीब 70 किलोमीटिर दूर घने जंगलों के शैलचित्रों के आधार पर अनुमान जताया है कि प्रदेश के इस हिस्से में दूसरे ग्रहों के प्राणी 'एलियन' आए होंगे। संस्था का मानना है कि यहां आदिमानव ने इन शैलचित्रों में उड़नतश्तरी की तस्वीर भी उकेरी है। पत्थर पर दर्ज आकृति नर्मदा घाटी में नए प्रागैतिहासिक स्थलों की खोज में जुटी सिड्रा आर्कियोलॉजिकल एन्वॉयरन्मेंट रिसर्च, ट्राइब वेलफेयर सोसाइटी के पुरातत्वविदों के अनुसार ये शैलचित्र रायसेन जिले के भरतीपुर, घना के आदिवासी गांव के आसपास की पहाड़ियों में मिले हैं। इनमें से एक शैलचित्र में उड़नतस्तरी (यूएफओ) का चित्र देखा जा सकता है। इसके पास ही एक आकृति दिखाई देती है जिसका सिर एलियन जैसा है। यह आकृति खड़ी है। जैसा देखा, वैसा बनाया।
संस्था के अनुसार प्रागैतिहासिक मानव अपने आस-पास नजर आने वाली चीजों को ही पहाड़ों की गुफाओं, कंदराओं में पत्थरों पर उकेरते थे। ऐसे में संभव है कि उन्होंने एलियन और उड़नतश्तरी को देखा हो। देखने के बाद ही उन्होंने इनके चित्र बनाए होंगे, क्योंकि उन्होंने उड़ने वाली जिस चीज का चित्र बनाया है ऐसा तो आज का मानव ही बना सकता है। रायसेन के पास मिले शैलचित्र आदिमानव के तत्कालीन जीवनशैली से भी मेल नहीं खाते हैं। खान के अनुसार कुछ इसी तरह के चित्र भीमबैठका और रायसेन के फुलतरी गांव की घाटी में भी मिले हैं। माना जाता है कि भीमबैठका के शैलचित्र करीब 35 हजार वर्ष पुराने हैं।
इन शैलचित्रों ने शोध की नई और व्यापक संभावनाओं को जन्म दिया है। इनका मिलान विश्व के अनेक स्थानों पर मिले शैलचित्रों से भी किया जा रहा है। अनुमान है कि दूसरे ग्रहों के प्राणियों का नर्मदा घाटी के प्रागैतिहासिक मानव से कुछ न कुछ संबंध जरूर रहा है। यह संबंध किस प्रकार का था इस पर शोध जारी है। पुरासंपदा का खजाना कुछ दशक पूर्व जियोलॉजिस्ट डॉ. अरुण सोनकिया ने नर्मदा घाटी के हथनौरा गांव से अतिप्राचीन मानव कपाल खोजा था। उसकी कार्बन आयु वैज्ञानिकों ने साढ़े तीन लाख वर्ष बताई है। नर्मदा घाटी का क्षेत्र कई पुरासंपदाओं का खजाना माना जाता है।
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बस्तर : छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में एक गुफा में 10 हजार वर्ष पुराने शैलचित्र मिले हैं। नासा और भारतीय आर्कियोलॉजिकल की इस खोज ने भारत में एलियंस के रहने की बात पुख्ता कर दी है।
यहां मिले शैलचित्रों में स्पष्ट रूप से एक उड़नतश्तरी बनी हुई है। साथ ही इस तश्तरी से निकलने वाले एलियंस का चित्र भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो आम मानव को एक अजीब छड़ी द्वारा निर्देश दे रहा है। इस एलियंस ने अपने सिर पर हेलमेट जैसा भी कुछ पहन रखा है जिस पर कुछ एंटीना लगे हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि 10 हजार वर्ष पूर्व बनाए गए ये चित्र स्पष्ट करते हैं कि यहां एलियन आए थे, जो तकनीकी मामले में हमसे कम से कम 10 हजार वर्ष आगे हैं ही।
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अजंता-एलोरा : माना जाता है कि एलोरा की गुफाओं के अंदर नीचे एलियंस का एक सीक्रेट शहर है। यह हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म का प्रमुख स्थल है। यहां की जांच-पड़ताल करने के बाद पता चलता है कि यहां पर एलियंस के रहने के लिए एक अंडरग्राउंड स्थान बनाया गया था।
आर्कियोलॉजिकल और जियोलॉजिस्ट की रिसर्च से यह पता चला कि ये कोई सामान्य गुफाएं नहीं हैं। इन गुफाओं को कोई आम इंसान या आज की आधुनिक तकनीक नहीं बना सकती। यहां एक ऐसी सुरंग है, जो इसे अंडरग्राउंड शहर में ले जाती है।
अजंता के कैलाश मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह एलियंस के सहयोग से बनाया गया था। आर्कियोलॉजिस्टों के अनुसार इसे कम से कम 4 हजार वर्ष पूर्व बनाया गया था। 40 लाख टन की चट्टानों से बनाए गए इस मंदिर को किस तकनीक से बनाया गया होगा? यह आज की आधुनिक इंजीनियरिंग के बस की बात नहीं है।
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महाबलीपुरम : केरल का महाबलीपुरम शहर बहुत ही प्राचीन शहर है। यहां के अब तक ज्ञात सबसे प्राचीन राजा बलि थे। बलि के कारण ही विष्णु को वामन अवतार लेना पड़ा था।
यहां पर एक प्राचीन गणेश मंदिर बना है जिसके शिखर को स्पष्ट रूप से रॉकेट की आकृति का बनाया गया है। इस मंदिर की जांच करने के बाद यहां रेडियो एक्टिविटी मटेरियल्स मिला है। यहां पर एक बहुत ही फरफेक्स होल्स बना है। माना जाता है कि यहीं से रॉकेट लांच किया जाता था।
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द्वारिका : एलियंस के अवशेषों की खोज करने वाले वैज्ञानिक कहते हैं कि द्वारिका का निर्माण एलियंस ने किया था। इस नगर पर एलियंसों ने ही हमला करके इस नष्ट कर दिया था। माना जाता है कि श्रीकृष्ण के यहां आने के पूर्व इसे कुश स्थली कहते थे। यह नगर पहले से ही जल में डूबा हुआ था।
गुजरात के तट पर भगवान श्रीकृष्ण की बसाई हुई नगरी यानी द्वारिका। इस जगह का धार्मिक महत्व तो है ही, रहस्य भी कम नहीं है। कहा जाता है कि कृष्ण की मृत्यु के साथ उनकी बसाई हुई यह नगरी समुद्र में डूब गई। आज भी यहां उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं, लेकिन प्रमाण आज तक नहीं मिल सका कि यह क्या है? विज्ञान इसे महाभारतकालीन निर्माण नहीं मानता।
काफी समय से जाने-माने शोधकर्ताओं ने यहां पुराणों में वर्णित द्वारिका के रहस्य का पता लगाने का प्रयास किया, लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित कोई भी अध्ययन कार्य अभी तक पूरा नहीं किया गया है। 2005 में द्वारिका के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान में भारतीय नौसेना ने भी मदद की।
अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छंटे पत्थर मिले और यहां से लगभग 200 अन्य नमूने भी एकत्र किए, लेकिन आज तक यह तय नहीं हो पाया कि यह वही नगरी है अथवा नहीं जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था। आज भी यहां वैज्ञानिक स्कूबा डायविंग के जरिए समंदर की गहराइयों में कैद इस रहस्य को सुलझाने में लगे हैं।
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रहस्यों से भरे मंदिर : ऐसे कई मंदिर हैं, जहां तहखानों में लाखों टन खजाना दबा हुआ है। उदाहरणार्थ केरल के श्रीपद्मनाभम मंदिर के 7 तहखानों में लाखों टन सोना दबा हुआ है। उसके 6 तहखानों में से करीब 1 लाख करोड़ का खजाना तो निकाल लिया गया है, लेकिन 7वें तहखाने को खोलने पर राजपरिवार ने सुप्रीम कोर्ट से आदेश लेकर रोक लगा रखी है। आखिर ऐसा क्या है उस तहखाने में कि जिसे खोलने से वहां तबाही आने की आशंका जाहिर की जा रही है? कहते हैं उस तहखाने का दरवाजा किसी विशेष मंत्र से बंद है और वह मंत्र से ही खुलेगा।
वृंदावन का एक मंदिर अपने आप ही खुलता और बंद हो जाता है। कहते हैं कि निधिवन परिसर में स्थापित रंगमहल में भगवान कृष्ण रात में शयन करते हैं। रंगमहल में आज भी प्रसाद के तौर पर माखन-मिश्री रोजाना रखा जाता है। सोने के लिए पलंग भी लगाया जाता है। सुबह जब आप इन बिस्तरों को देखें, तो साफ पता चलेगा कि रात में यहां जरूर कोई सोया था और प्रसाद भी ग्रहण कर चुका है। इतना ही नहीं, अंधेरा होते ही इस मंदिर के दरवाजे अपने आप बंद हो जाते हैं इसलिए मंदिर के पुजारी अंधेरा होने से पहले ही मंदिर में पलंग और प्रसाद की व्यवस्था कर देते हैं।
मान्यता के अनुसार, यहां रात के समय कोई नहीं रहता है। इंसान छोड़िए, पशु-पक्षी भी नहीं। ऐसा बरसों से लोग देखते आए हैं, लेकिन रहस्य के पीछे का सच धार्मिक मान्यताओं के सामने छुप-सा गया है। यहां के लोगों का मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस परिसर में रात में रुक जाता है तो वह तमाम सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
कैलाश पर्वत का रहस्य जानिए...
कैलाश पर्वत : इसे दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत माना जाता है। यहां अच्छी आत्माएं ही रह सकती हैं। इसे अप्राकृतिक शक्तियों का केंद्र माना जाता है।
यह पर्वत पिरामिडनुमा आकार का है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह धरती का केंद्र है। यह एक ऐसा भी केंद्र है जिसे एक्सिस मुंडी (Axis Mundi) कहा जाता है। 'एक्सिस मुंडी' अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहां दसों दिशाएं मिल जाती हैं।
रशिया के वैज्ञानिकों अनुसार एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं।
कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के चार दिक् बिंदुओं के समान है और एकांत स्थान पर स्थित है, जहां कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है। कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध है, पर 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढ़ाई की थी। रशिया के वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट 'यूएनस्पेशियल' मैग्जीन के 2004 के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई थी।
कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्रोतों से घिरा है- सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलुज और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर इसके आधार हैं। पहला, मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार सूर्य के समान है तथा राक्षस झील जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के समान है। ये दोनों झीलें सौर और चन्द्र बल को प्रदर्शित करती हैं जिसका संबंध सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से है। जब दक्षिण से देखते हैं तो एक स्वस्तिक चिह्न वास्तव में देखा जा सकता है।
कैलाश पर्वत और उसके आसपास के वातावरण पर अध्ययन कर चुके रशिया के वैज्ञानिकों ने जब तिब्बत के मंदिरों में धर्मगुरुओं से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है जिसमें तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथिक संपर्क करते हैं। यह पर्वत मानव निर्मित एक विशालकाय पिरामिड है, जो एक सौ छोटे पिरामिडों का केंद्र है। रामायण में भी इसके पिरामिडनुमा होने का उल्लेख मिलता है।
यति यानी हिम मानव को देखे जाने की चर्चाएं होती रहती हैं। इनका वास हिमालय में होता है। लोगों का कहना है कि हिमालय पर यति के साथ भूत और योगियों को देखा गया है, जो लोगों को मारकर खा जाते हैं।
रूपकुंड झील का रहस्य जानिए...
रूपकुंड झील : यह नदी हिमालय पर्वतों में स्थित है। इस तट पर मानव कंकाल पाए गए हैं। पिछले कई वर्षों से भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के विभिन्न समूहों ने इस रहस्य को सुलझाने के कई प्रयास किए, पर वे नाकाम रहे।
भारत के उत्तरी क्षेत्र में खुदाई के समय नेशनल जिओग्राफिक (भारतीय प्रभाग) को 22 फुट का विशाल नरकंकाल मिला है। उत्तर के रेगिस्तानी इलाके में एम्प्टी क्षेत्र के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र सेना के नियंत्रण में है। यह वही इलाका है, जहां से कभी प्राचीनकाल में सरस्वती नदी बहती थी।
इस कंकाल को वर्ष 2007 में नेशनल जिओग्राफिक की टीम ने भारतीय सेना की सहायता से उत्तर भारत के इस इलाके में खोजा। 8 सितंबर 2007 को इस आशय की खबर कुछ समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुई थी। हालांकि इस तरह की खबरों की सत्यता की कोई पुष्टि नहीं हुई है। इस मामले में जब तक कोई अधिकृत बयान नहीं जारी होता, यह असत्य ही मानी जा रही है।
बताया जाता है कि कद-काठी के हिसाब से यह कंकाल महाभारत के भीम पुत्र घटोत्कच के विवरण से मिलता-जुलता है। हालांकि इसकी तुलना अमेरिका में पाए जाने वाले बिगफुट से भी की जा रही है जिनकी औसत हाइट अनुमानत: 8 फुट की है। इसकी तुलना हिमालय में पाए जाने वाले यति से भी की जा रही है, जो बिगफुट के समान ही है।
माना जा रहा है कि इस तरह के विशालकाय मानव 5 लाख वर्ष पूर्व से 1 करोड़ 20 लाख वर्ष पूर्व के बीच में धरती पर रहा करते थे जिनका वजन लगभग 550 किलो हुआ करता था।
यह कंकाल देखकर पता चलता है कि किसी जमाने में भारत में ऐसे विशालकाय मानव भी रहा करते थे। माना जा रहा है कि भारत सरकार द्वारा अभी इस खोजबीन को गुप्त रखा जा रहा है।
खास बात यह है कि इतने बड़े मनुष्य के होने का कहीं कोई प्रमाण अभी तक प्राप्त नहीं हो सका था। क्या सचमुच इतने बड़े आकार के मानव होते थे? यह पहला प्रमाण है जिससे कि यह सिद्ध होता है कि उस काल में कितने ऊंचे मानव होते थे।
भारत की गुफाओं का रहस्य जानिए...
भारत की गुफाएं : भारत में बहुत सारी प्राचीन गुफाएं हैं, जैसे बाघ की गुफाएं, अजंता- एलोरा की गुफाएं, एलीफेंटा की गुफाएं और भीम बेटका की गुफाएं। ये सभी गुफाएं किसने और कब बनाईं? इसका रहस्य अभी सुलझा नहीं है। अखंड भारत की बात करें तो अफगानिस्तान के बामियान की गुफाओं को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैलचित्र बने हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को कुछ इतिहासकार 35 हजार वर्ष पुराना मानते हैं, तो कुछ 12,000 साल पुरानी।
मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित पुरापाषाणिक भीमबेटका की गुफाएं भोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। ये विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुई हैं। भीमबेटका मध्यभारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है। पूर्व पाषाणकाल से मध्य पाषाणकाल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा।
अतं में जानिए यमराज का द्वार...
तिब्बत का यमद्वार : प्राचीन काल में तिब्बत को त्रिविष्टप कहते थे। यह अखंड भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। तिब्बत को चीन ने अपने कब्जे में ले रखा है। तिब्बत में दारचेन से 30 मिनट की दूरी पर है यह यम का द्वार।
यम का द्वार पवित्र कैलाश पर्वत के रास्ते में पड़ता है। हिंदू मान्यता अनुसार, इसे मृत्यु के देवता यमराज के घर का प्रवेश द्वार माना जाता है। यह कैलाश पर्वत की परिक्रमा यात्रा के शुरुआती प्वाइंट पर है। तिब्बती लोग इसे चोरटेन कांग नग्यी के नाम से जानते हैं, जिसका मतलब होता है दो पैर वाले स्तूप।
ऐसा कहा जाता है कि यहां रात में रुकने वाला जीवित नहीं रह पाता। ऐसी कई घटनाएं हो भी चुकी हैं, लेकिन इसके पीछे के कारणों का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। साथ ही यह मंदिरनुमा द्वार किसने और कब बनाया, इसका कोई प्रमाण नहीं है। ढेरों शोध हुए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका।
संकलन : शतायु