वेद, उपनिषद, गीता, योग और सूत्र ग्रंथों के तत्व ज्ञान को जानने और समझने के बाद उसका सार और निचोड़ यह कि सभी तरह की विचारधारा, ज्ञान, व्यवस्था, देश, काल और समय से महत्वपूर्ण है स्वयं की खोज। स्वयं का अस्तित्व कायम करना। स्वयं सिद्ध होना। क्यों?
आस्तिकों के लिए ईश्वर महत्वपूर्ण है जिसे अप्रत्यक्ष ज्ञान माना गया है अर्थात वह हमें दिखाई और सुनाई नहीं देता और न ही हम उसे महसूस कर सकते हैं अत: उसके होने या नहीं होने की कोई पुष्टि नहीं। धर्मग्रंथों में उसके होने की लिखी बातें किसी मनुष्य ने ही लिखी हैं। यह मानना कि यह किसी देवता या फरिश्ते का ज्ञान है, यह भी अप्रत्यक्ष ज्ञान ही है।
नास्तिकों के लिए ईश्वर महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि वे प्रत्यक्ष ज्ञान में भरोसा रखते हैं और उसी को आधार मानकर कभी-कभी अनुमान भी ज्ञान होता है, इसको स्वीकार कर लेते हैं। नास्तिकों के अनुसार धर्म एक अफीम के नशे की तरह है, जो देता कुछ भी नहीं है बल्कि ले सब कुछ लेता है। यह मनुष्य को कभी भी सभ्य नहीं बनने देगा। हालांकि नास्तिकों के और भी हजारों तर्क हैं।
इन दोनों से अलग एक तीसरा व्यक्ति होता है जिसे अस्तित्ववादी कह सकते हैं। उसके लिए ईश्वर का होना या नहीं होना कोई महत्व नहीं रखता। वह जानता है कि यह अस्तित्व है। यह दिखाई देने वाला संसार परिवर्तनशील है, लेकिन नश्वर नहीं। इस परिवर्तनशील संसार में मेरा अस्तित्व कहां है? अनंत ब्रह्मांड में मेरा अस्तित्व कायम रहने वाला है या नहीं या कि धर्म, समाजवादी, दार्शनिकों, बाबा, ज्योतिष आदि की बातों में आकर मैं खुद को खोकर जीवन नष्ट कर दूं। अंत में पता चले कि अब मौत नजदीक है। कमाया क्या?
आधुनिक शहरी जीवन में व्यक्ति ने खुद को खोकर सब कुछ पाया होगा। 50 की उम्र के बाद तो जीवन एक धक्कागाड़ी बन जाती है। खा-खा कर तोंद निकल आई है। नहीं भी निकली तो भी कई तरह की बीमारियों ने जकड़ना शुरू कर दिया है। डॉक्टर कहता है कि अब पलंग पर लेट जाओ। तुमको ब्लड प्रेशर, शुगर, पथरी, अस्थमा आदि ने जकड़ लिया है।
सभी लोगों की सोच यह है कि धर्म और योग तो बुजुर्ग लोगों का काम है। जवान व्यक्ति को धर्म और योग में नहीं पड़ना चाहिए, उसे तो अपने करियर की चिंता करनी चाहिए। करियर की चिंता में भले ही वह मौत को गले लगा ले। उसे तो नौकरी की चिंता करनी चाहिए। नौकरी कर-करके भले ही वह कई तरह की बीमारियों का शिकार हो जाए।
हम आपके लिए लाए हैं धर्म और योग के तत्व ज्ञान का ऐसा सार, जो आपके होश उड़ा देगा। आप जिंदगी में कुछ करें या न करें, कुछ पाएं या न पाएं, सफल हो या न हो, लेकिन अपने अस्तित्व को कायम करने के लिए इन 5 बातों के बारे में शोध जरूर करें। सारा ज्ञान एक तरफ और ये 5 बातें दूसरी तरफ-
अगले पन्ने पर पहला रहस्यमयी ज्ञान...
1. आपकी स्मृति : हमारी यादें हमारे अस्तित्व और व्यक्तित्व का एक प्रमुख अंग हैं। हम क्या याद रखते हैं और क्या भूल जाते हैं, यह हम भी नहीं जानते। स्मृति ही प्रमुख बौद्धिक क्षमता है। हम जो देखते और सुनते हैं वे हमारी स्मृति का हिस्सा बन जाते हैं फिर हम चाहे स्वप्न में ही वह देख या सुन रहे हों। हम किसी व्यक्ति, स्थान, घटना और स्थितियों-परिस्थितियों को भी याद करते रहते हैं। ऐसे में ये भी हमारी स्मृति के अंग बन जाते हैं। हम सोते-जागते जो कल्पनाएं करते रहते हैं वे भी हमारी स्मृति का हिस्सा बन जाती हैं। हमारे मस्तिष्क में जो कुछ भी अनुभव, सूचना और ज्ञान के रूप में संग्रहीत है वह सभी स्मृति के ही विविध रूपों में व्यवस्थित रहता है।
मस्तिष्क नहीं हैं आप : हमारे शरीर के मस्तिष्क की क्षमता अनंत है, लेकिन उपनिषद कहते हैं कि हम न तो मस्तिष्क हैं और न ही स्मृति। यदि हमसे स्मृतियां छीन ली जाएं तो हम खुद को भूल जाएंगे, माता पिता को पहचानेंगे नहीं। स्मृतियों के बगैर हम उस बच्चे की तरह होंगे, जो अभी-अभी जन्मा है।
स्मृति का बदलाव : वैज्ञानिक कहते हैं कि आपके स्मृति कोष को निकालकर किसी दूसरे के मस्तिष्क में फिट कर दिया जाए और किसी दूसरे का स्मृति कोष निकालकर आपके मस्तिष्क में फिट कर दिया जाए तो आप खुद को दूसरा और दूसरा खुद को आप समझने लगेगा। आप समझे कि नहीं? यह एक बहुत बड़ी घटना है।
परिणाम : उपरोक्त लिखी गईं बातों का सिर्फ इतना मतलब है कि आप स्मृति या याददाश्त नहीं हैं। खुद के अस्तित्व को कायम करना है तो खुद को इससे अलग रखकर देखने की जरूरत है। योग में ऐसी कई विधियां हैं, जो आपको यह सिखाती हैं। चित्त वृत्तियों का निरोध कर खुद को स्मृतियों से अलग देखने और समझने की जरूरत है।
सलाह : यदि आपके दिमाग में बुरी घटनाओं, आदतों, विचारों आदि की स्मृतियां ज्यादा हैं, तो वर्तमान और भविष्य भी बुरा ही होगा। स्मृतियों के बॉयोलॉजिकल नॉलेज को अधिक से अधिक जानने का प्रयास करें। कैसे बुरी स्मृतियां हटाकर अच्छी स्मृतियों को मजबूत और क्रमबद्ध किया जा सके, इसके बारे में अध्ययन करें। जैसे आप अपने कम्प्यूटर से फालतू का डाटा हटा देते हैं तो कम्प्यूटर हल्का चलने लगता हैं, तो शिफ्ट डिलीट मारिए या क्लीनर चलाइए। ध्यान और योग कीजिए।
अगले पन्ने पर दूसरा रहस्यमयी ज्ञान...
2. आपकी शक्ति : शारीरिक और मानसिक शक्ति है तो आप हैं? आंखों में ताकत है तब तक देख रहे हैं, कानों में ताकत है तब तक सुन रहे हैं जिस दिन यह ताकत चली जाएगी आप भी चले जाएंगे। जो फिट है, वही हिट है। शारीरिक और मानसिक ताकत का होना जरूरी है और यह ताकत आती है उत्तम अन्न और शुद्ध जल से। शक्ति रहेगी तभी आप धर्म और योग को साध सकते हैं। शक्तिहीन मनुष्य मृतात्मा समान होता है।
उपनिषदों में कहा गया है कि अन्न ही ब्रह्म है, क्योंकि उसी के भक्षण से सभी को शक्ति मिलती है, लेकिन धरती पर कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो सूर्य की शक्ति के बल पर जिंदा हैं। वे अन्न और जल ग्रहण नहीं करते। सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य की शक्ति से आजकल बिजली का भी उत्पादन हो रहा है। इसका मतलब यह है कि शक्ति ऊर्जा से प्राप्त होती है। अन्न भी तो ऊर्जा ही पैदा करता है।
परिणाम : उपरोक्त बातों का सार यह कि यदि आप में शक्ति है तो ही आप अपना जीवन अच्छे से जी रहे हैं। प्रतिदिन आपकी ऊर्जा का क्षय होता रहता है। इस शक्ति को बढ़ाने के बारे में कभी कोई नहीं सोचता? जिस दिन यह शक्ति खत्म हो जाती है, उस दिन व्यक्ति मरणासन्न हो जाता है।
सलाह : शारीरिक और मानसिक शक्ति को बढ़ाने की आप सोच भी लें तो यह आपकी आत्मिक शक्ति को बढ़ाने में लाभदायक सिद्ध होगी। आत्मिक शक्ति सबसे बड़ी शक्ति है जिसके दम पर शारीरिक और मानसिक शक्ति कायम है। लेकिन शुरू करें शरीर से ही इसलिए योगासन करें। फिर मानसिक शक्ति के लिए प्राणायाम करें और अंत में आत्मिक शक्ति बढ़ाने के लिए ध्यान करें।
अगले पन्ने पर तीसरा रहस्यमयी ज्ञान...
3. आपकी इच्छा : अनावश्यक इच्छाएं तो मन में बहुत होती हैं, लेकिन कभी आपने सोचा कि मेरी महत्वपूर्ण इच्छा क्या होना चाहिए? अधिकतर लोग इंद्रिय सुखों के बारे में इच्छा करते हैं, जैसे कि मीना बाजार चलकर गोलगप्पे खाना है। चौपाटी पर जाकर पीना है और पीआर जाकर मूवी देखना है। रास्तेभर कान में लगा रहेगा ईयरफोन। हालांकि जिंदगी के लिए ये भी जरूरी हैं, लेकिन कुछ लोग इसी में जिंदगी खो रहे हैं।
सचमुच आपकी इच्छाएं इंद्रियों से उपजी इच्छाएं हैं। क्या विचार से उपजी कोई इच्छा है? कुछ अच्छा ज्ञान प्राप्त करने कोई इच्छा उपजी है? बहुत सोच-समझने के बाद आप क्या इच्छा करना चाहेंगे? धन की कमी है तो धनवान बनना, मकान नहीं है तो मकान लेना, शादी नहीं हुई तो शादी करना। बेटी या बेटे की शादी नहीं हुई तो उनकी शादी करना। कोई यह इच्छा नहीं करता कि मैं मरना कैसे सीखूं, पैदा होना कैसे सीखूं? क्या ध्यान से यह संभव है? इच्छाओं के बारे में आपने ययाति की कहानी पढ़ी होगी। नहीं पढ़ी तो नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें।
परिणाम : इच्छाएं तो अनंत होती हैं। भोग-विलास की इच्छाओं से न तो शरीर तृप्त होता है और न ही मन तृप्त होता है। इच्छाओं को समझें और इंद्रियों का सदुपयोग करें।
सलाह : अपनी प्राथमिक इच्छाएं तय करें। फालतू की इच्छाओं से किनारा कर लें। इंद्रियों को भी उतना ही सुख दें जितनी से वे सेहतमंद बनी रहें। इच्छाओं के मामले में थोड़ा प्रैक्टिकल बनें।
अगले पन्ने पर चौथा रहस्यमयी ज्ञान...
4. आपका होश : आपका होश या जाग्रत अवस्था ही आपके अस्तित्व को कायम रखने में सक्षम है। जैसा कि हमने पहले बताया था कि व्यक्ति स्मृति के अलावा खुद को कुछ नहीं समझता। यह स्मृति 3 अवस्थाओं में निर्मित होती है- जाग्रत, स्वप्न और सुषिप्त।
'भीतर से जाग जाना ध्यान है। सदा निर्विचार की दशा में रहना ही ध्यान है।' -ओशो
आप जाग्रत रहते हो तब भी बेहोशीभरा जीवन ही जीते रहते हो जिसे कि यंत्रवत जीवन कहते हैं। इसको गंभीरता से समझना जरूरी है। 24 घंटे में चलने वाले लगभग 60 हजार विचारों में कहीं अपने खुद को खो तो नहीं दिया?
योग का आठवां अंग ध्यान अति महत्वपूर्ण है। एकमात्र ध्यान ही ऐसा तत्व है, जो आपको जागी हुई नींद से झकझोरकर उठा देगा। चलते-फिरते, बोलते-सुनते, कल्पना-विचार करते और सुख-दुख आदि सभी अवस्थाओं में होशपूर्ण जीवन जीना सबसे महत्वपूर्ण है। होशपूर्ण का मतलब अयंत्रवत जीवनशैली को छोड़कर खुद की प्रत्येक क्रिया और प्रतिक्रिया को साक्षीभाव से देखते हुए करना।
परिणाम : आपका होश ही आपको हर तरह की चीजों के प्रति सजग कर देगा। अच्छे और बुरे परिणामों के बारे में आप पहले से ही जान लेंगे। आप किसी भी अवस्था में न सुखी होंगे और न दुखी, आप आनंदित रहकर खुद को शरीर और मन के बगैर देखना और महसूस करना सीख जाएंगे।
सलाह : कभी किसी एक जगह पर रास्ते पर चलती भीड़ में लोगों को गौर से देखें। उन्हें देखकर लगेगा कि वे कितने विचारों और खयालों में खोकर यंत्रवत जीवन जी रहे हैं। बेचैनीवश भागे जा रहे हैं। खुद से ही बातें करते जा रहे हैं। आपको लगेगा कि ये कितने बेहोशी में हैं और यंत्रवत जीवन जी रहे हैं। उन सभी से खुद को अलग करके जीने का प्रयास करें।
अगले पन्ने पर पांचवां रहस्यमयी ज्ञान...
5. आपकी योजना : आपने कभी अपनी जिंदगी की प्लानिंग की होगी। शायद मरने की भी कर ली होगी। किसी भी कार्य की सबसे पहले योजना बनाना सबसे जरूरी है। योजना सबसे पहले दिमाग में बनती है। फिर उसे कागज पर उतारना न भूलें जिससे वह और मजबूत हो जाएगी। उसमें कुछ रद्दोबदल करना हो तो करते रहें और उसे अपडेट भी करते रहें।
एक पूरा दिन बैठकर सोचें कि मैंने जिंदगी में अब तक क्या किया? कैसे जीवन जिया? उसमें से कितना व्यर्थ था और कितना अर्थपूर्ण था? कहां-कहां असफल हुआ और कहां सफल? क्या मैंने कभी इसकी योजना बनाई कि मुझे 70 या 100 साल के जीवन में कितना सोना और कितना काम करना है? कई ऐसे लोग हैं, जो कम काम करके भी 70 साल तक सोने का इंतजाम कर लेते हैं और कई लोग ऐसे हैं, जो जिंदगीभर काम ही करते रहते हैं तो फिर योग और धर्म के बारे में क्या खाक सोचेंगे?
परिणाम : योजना बनाने से जीवन में व्यवस्था आती है। योजना पर अमल करने से जीवन में सुधार होता है और योजना के सफल होने से जीवन धन्य हो जाता है। ऐसा उपनिषदों में लिखा है।
सलाह : योजना को कागज पर जरूर लिखें। भले ही उसे छुपाकर रखें, लेकिन लिखें जरूर। लिखने से ही वह एक्टिव होगी। मन ही मन योजना ही न बनाते रहें। योजना को अमल में लाने के बारे में तेजी से सोचें और समय-पूर्व ही काम शुरू कर दें। योजना का समय से गहरा संबंध रहता है।