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हिन्दू धर्मग्रंथ गीता के बारे में आश्चर्यजनक 7 तथ्‍य...

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हिन्दू धर्म के एकमात्र धर्मग्रंथ है वेद। वेदों के चार भाग हैं- ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेदों के सार को वेदांत या उपनिषद कहते हैं और उपनिषदों का सार या निचोड़ गीता में हैं। उपनिषदों की संख्या 1000 से अधिक है उसमें भी 108 प्रमुख हैं।

वेदों के ज्ञान को नए तरीके से किसी ने व्यवस्थित किया है तो वह हैं भगवान श्रीकृष्ण। अत: वेदों का पॉकेट संस्करण है गीता जो हिन्दुओं का सर्वमान्य एकमात्र ग्रंथ है। पुराण, स्मृति, रामायण और महाभारत को धर्मग्रंथ की श्रेणी में नहीं रखा जाता है।
किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह वेद या उपनिषद पढ़ें उनके लिए गीता ही सबसे उत्तम धर्मग्रंथ है। गीता को अच्‍छे से समझने से ही आपकी समझ में बदलाव आ जाएगा। धर्म, कर्म, योग, सृष्टि, युद्ध, जीवन, संसार आदि की जानकारी हो जाएगी। सही और गलत की पहचान होने लगेगी। तब आपके दिमाग में स्पष्टता होगी द्वंद्व नहीं। जिसने गीता नहीं पढ़ी वह हिन्दू धर्म के बारे में हमेशा गफलत में ही रहेगा। आओ जानते हैं गीता ज्ञान की 7 खास बातें...

श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद : गीता के ज्ञान को भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कुरुक्षेत्र में खड़े होकर दिया था। यह श्रीकृष्‍ण-अर्जुन संवाद नाम से विख्‍यात है। वैसे तो गीता श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ एक संवाद है, लेकिन कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के माध्यम से उस कालरूप परम परमेश्वर ने गीता का ज्ञान विश्व को दिया। श्रीकृष्ण उस समय योगारूढ़ थे।
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गीता के चौथे अध्याय में कृष्णजी कहते हैं कि पूर्व काल में यह योग मैंने विवस्वान को बताया था। विवस्वान ने मनु से कहा। मनु ने इक्ष्वाकु को बताया। यूं पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा से प्राप्त इस ज्ञान को राजर्षियों ने जाना पर कालान्तर में यह योग लुप्त हो गया। और अब उस पुराने योग को ही तुम्हें पुन: बता रहा हूं। 
 
अंगिरस का ज्ञान : श्रीकृष्ण के गुरु घोर अंगिरस थे। घोर अंगिरस ने देवकी पुत्र कृष्ण को जो उपदेश दिया था वही उपदेश श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन को देते हैं। छांदोग्य उपनिषद में उल्लेख मिलता है कि देवकी पुत्र कृष्‍ण घोर अंगिरस के शिष्य हैं और वे गुरु से ऐसा ज्ञान अर्जित करते हैं जिससे फिर कुछ भी ज्ञातव्य नहीं रह जाता है।
 
यद्यपि गीता द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के समय रणभूमि में किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन को समझाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा कही गई थी, किंतु इस वचनामृत की प्रासंगिकता आज तक बनी हुई है।

गीता का परिचय : महाभारत के 18 अध्याय में से एक भीष्म पर्व का हिस्सा है गीता। गीता में भी कुल 18 अध्याय हैं। 10 अध्यायों की कुल श्लोक संख्या 700 है। 
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अध्याय 1 : अर्जुनविषादयोग नामक इस अध्याम में कुल 46 श्लोक है।
अध्याय 2 : सांख्ययोग नामक इस अध्याम में कुल 72 श्लोक है।
अध्याय 3 : कर्मयोग नामक इस अध्याम में कुल 43 श्लोक है।
अध्याय 4 : ज्ञानकर्मसंन्यासयोग नामक इस अध्याम में कुल 42 श्लोक है।
अध्याय 5 : कर्मसंन्यासयोग नामक इस अध्याम में कुल 29 श्लोक है।
अध्याय 6 : आत्मसंयमयोग नामक इस अध्याम में कुल 47 श्लोक है।
 अध्याय 7 : ज्ञानविज्ञानयोग नामक इस अध्याम में कुल 30 श्लोक है।
अध्याय 8 : अक्षरब्रह्मयोग नामक इस अध्याम में कुल 28 श्लोक है।
अध्याय 9 : राजविद्याराजगुह्ययोग नामक इस अध्याम में कुल 34 श्लोक है।
अध्याय 10 : विभूतियोग नामक इस अध्याम में कुल 42 श्लोक है।
अध्याय 11 : विश्वरूपदर्शनयोग नामक इस अध्याम में कुल 55 श्लोक है।
अध्याय 12 : भक्तियोग नामक इस अध्याम में कुल 20 श्लोक है।
अध्याय 13 : क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग नामक इस अध्याम में कुल 35 श्लोक है।
अध्याय 14 : गुणत्रयविभागयोग नामक इस अध्याम में कुल 27 श्लोक है।
अध्याय 15 : पुरुषोत्तमयोग नामक इस अध्याम में कुल 20 श्लोक है।
अध्याय 16 : दैवासुरसम्पद्विभागयोग नामक इस अध्याम में कुल 24 श्लोक है।
अध्याय 17 : श्रद्धात्रयविभागयोग नामक इस अध्याम में कुल 28 श्लोक है।
अध्याय 18 : मोक्षसंन्यासयोग नामक इस अध्याम में कुल 78 श्लोक है।

गीता में क्या है?
गीता में भक्ति, ज्ञान और कर्म मार्ग की चर्चा की गई है। उसमें यम-नियम और धर्म-कर्म के बारे में भी बताया गया है। गीता ही कहती है कि ब्रह्म (ईश्वर) एक ही है। गीता को बार-बार पढ़ेंगे तो आपके समक्ष इसके ज्ञान का रहस्य खुलता जाएगा। गीता के प्रत्येक शब्द पर एक अलग ग्रंथ लिखा जा सकता है। 
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गीता में सृष्टि उत्पत्ति, जीव विकासक्रम, हिन्दू संदेवाहक क्रम, मानव उत्पत्ति, योग, धर्म, कर्म, ईश्वर, भगवान, देवी, देवता, उपासना, प्रार्थना, यम, नियम, राजनीति, युद्ध, मोक्ष, अंतरिक्ष, आकाश, धरती, संस्कार, वंश, कुल, नीति, अर्थ, पूर्वजन्म, जीवन प्रबंधन, राष्ट्र निर्माण, आत्मा, कर्मसिद्धांत, त्रिगुण की संकल्पना, सभी प्राणियों में मैत्रीभाव आदि सभी की जानकारी है।
 
श्रीमद्भगवद्गीता योगेश्वर श्रीकृष्ण की वाणी है। इसके प्रत्येक श्लोक में ज्ञानरूपी प्रकाश है, जिसके प्रस्फुटित होते ही अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है। ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।

सबसे छोटी गीता : हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक ग्रंथ भगवदगीता के यूँ तो अब तक दुनिया में लाखों संस्करण निकल चुके हैं, लेकिन केरल के एक व्यक्ति द्वारा बनाई जा रही भगवदगीता अपने आप में अनोखी होगी। वे दुनिया की सबसे छोटे आकार की भगवदगीता तैयार कर रहे हैं। चांदी की आठ-आठ मिलीमीटर पट्टियों पर उकेरी जा रही गीता का कुल वजन मात्र छः ग्राम होगा।
 
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केरल के 40 वर्षीय जी विनोदकुमार चांदी की कटाई-छंटाई का काम करने वाले एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इससे पहले वे चांदी के अत्यंत छोटे पत्रों पर देवी-देवताओं, मंदिरों और जानवरों की आकर्षक और अनोखी आकृतियां उकेर चुके हैं।
 
कुमार का दावा है कि वे दुनिया की सबसे छोटी भगवदगीता तैयार कर रहे हैं। इस पर मलयालम भाषा में श्लोक उकेरे जा रहे हैं। कुमार कहते हैं कि पहले मैं चांदी पर छोटे-छोटे मंदिरों और देवी-देवताओं के चित्र बनाया करता था। एक दिन मैंने एक बहुत ही छोटी गीता देखी, तभी मेरे मन में विचार आया कि मैं चांदी के पत्रों पर दुनिया की सबसे छोटी गीता तैयार करूंगा और मैंने काम शुरू कर दिया। यह लगभग आधी तैयार हो चुकी है।
 
इसका आकार लंबाई-चौ़ड़ाई में आठ मिलीमीटर है। कुमार ने इसके लिए खुद एक विशेष तरह का पाइंटेड पेन तैयार किया है। साथ ही फाइन आर्ट्स हथौ़ड़ा, मैग्नीफाइंग ग्लास और अन्य उपकरण का भी उपयोग कर रहे हैं। हर दिन वे चार पेज तैयार कर लेते हैं। पिछले तीन महीने से लगातार वे यह काम कर रहे हैं। कुमार को विश्वास है कि वे दिसंबर अंत तक इसका काम पूरा कर लेंगे।
 
सबसे छोटी गीता पूरी हो जाने के बाद कुमार की गीता दुनिया की सबसे छोटी गीता होगी। इससे पहले सबसे छोटी गीता का खिताब 2.5 सेंटीमीटर गीता के नाम है, जो कागज पर छापी गई है। इसके बाद कुमार की योजना चांदी की छः मिलीमीटर शीट पर कुरान उकेरने की है। (नईदुनिया)

ब्रेल लिपि में गीता : अब हिंदू धर्म की पवित्र धार्मिक पुस्तक ‘श्रीमद भगवद गीता’ को पढ़ने के लिए दृष्टिहीनों के पास यह ग्रंथ ब्रेल लिपि में उपलब्ध होगा। चित्रकूट के रामानंदाचार्य तुलसी पीठ के पीठाधीश रामभद्राचार्य ने पिछले सप्ताह ही अपने द्वारा लिखी गई भगवत गीता के ब्रेल संस्करण का विमोचन किया। 
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वहीं, इस पुस्तक के प्रकाशक पंडित रामकुमार शर्मा के अनुसार हमने पहले भी कृष्णा चालीसा, दुर्गा चालीसा, हनुमान चालीसा, सुंदर कांड आदि अनेक पुस्तकों का ब्रेल संस्करण प्रकाशित किए हैं। इस ब्रेल गीता के पीछे रामभद्राचार्य का उद्देश्य दृष्टिहीनों को गीता उपलब्ध कराकर जहाँ एक ओर उन्हें धार्मिक संतुष्टि प्रदान करना है, वहीं दूसरी ओर उन्हें जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण के लिए प्रेरित करना है। (भाषा)

कब, कहां, क्यों : 3112 ईसा पूर्व हुए भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। कलियुग का आरंभ शक संवत से 3176 वर्ष पूर्व की चैत्र शुक्ल एकम (प्रतिपदा) को हुआ था। वर्तमान में 1939 शक संवत है। इस प्रकार कलियुग को आरंभ हुए 5115 वर्ष हो गए हैं।
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आर्यभट्‍ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईपू में हुआ। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है। उनकी मृत्यु एक बहेलिए का तीर लगने से हुई थी। तब उनकी तब उनकी उम्र 119 वर्ष थी। इसके मतलब की आर्यभट्टर के गणना अनुसार गीता का ज्ञान 5154 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था।
 
हरियाणा के कुरुक्षे‍त्र में जब यह ज्ञान दिया गया तब तिथि एकादशी थी। संभवत: उस दिन रविवार था। उन्होंने यह ज्ञान लगभग 45 मिनट तक दिया था। परंपरा से यह ज्ञान सबसे पहले विवस्वान् (सूर्य) को मिला था। जिसके पुत्र वैवस्वत मनु थे। गीता की गणना उपनिषदों में की जाती है। इसी‍लिये इसे गीतोपनिषद् भी कहा जाता है। दरअसल, यह महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है। महाभारत में ही कुछ स्थानों पर उसका हरिगीता नाम से उल्लेख हुआ है। (शान्ति पर्व अ. 346.10, अ. 348.8 व 53)। 
 
श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान अर्जुन को इसलिये दिया क्योंकि वह कर्त्तव्य पथ से भटकर संन्यासी और वैरागी जैसा आचरण करके युद्ध छोड़ने को आतुर हो गया था वह भी ऐसे समय जब की सेना मैदान में डटी थी। ऐसे में श्रीकृष्ण को उन्हें उनका कर्तव्य निभाने के लिए यह ज्ञान दिया।
 
गीता को अर्जुन के अलावा और संजय ने सुना और उन्होंने धृतराष्ट्र को सुनाया। गीता में श्रीकृष्ण ने- 574, अर्जुन ने- 85, संजय ने 40 और धृतराष्ट्र ने- 1 श्लोक कहा है। 

दुनिया में गीता पर सबसे ज्यादा भाष्य लिखे गए : गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिस पर दुनियाभर की भाषा में सबसे ज्यादा भाष्य, टीका, व्याख्या, टिप्पणी, निबंध, शोधग्रंथ आदि लिखे गए हैं। अठारहवीं शती में ब्रिटिश गवर्नर जनरल गीता से अत्यधिक प्रभावित था। उनकी प्रेरणा से चाल्र्स विल्किंस ने अंग्रेजी भाषा में गीता का अनुवाद प्रकाशित किया था। इस अनुवाद को पढ़कर जर्मनभाषी प्रश्या राज्य का मंत्री विल्हेमवान हम्बोल्ड भाव- विभोर हो गया था। उसने जर्मन विद्वानों को संस्कृत वाङ्मय के रत्नों को बटोरने की प्रेरणा दी थी।
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आदि शंकराचार्य, रामानुज, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्क, भास्कर, वल्लभ, श्रीधर स्वामी, आनन्द गिरि,  मधुसूदन सरस्वती, संत ज्ञानेश्वर, बालगंगाधर तिलक, परमहंस योगानंद, महात्मा गांधी, सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन, महर्षि अरविन्द घोष, एनी बेसेन्ट, गुरुदत्त, विनोबा भावे, स्वामी चिन्मयानन्द, चैतन्य महाप्रभु, स्वामी नारायण, जयदयाल गोयन्दका, ओशो रजनीश, स्वामी क्रियानन्द, स्वामी रामसुखदास, श्रीराम शर्मा आचार्य आदि सैंकड़ों विद्वानों ने गीता पर भाष्य लिखे या प्रवचन दिये हैं। लेकिन कहते हैं कि ओशो रजनीश ने जो गीता पर प्रवचन दिये हैं वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ प्रवचन हैं। 
 
किस समय, किसने गीता को महाभारत से अलग कर एक स्वतंत्र ग्रंथ का रूप दिया इसका कोई प्रमाण कहीं नहीं मिलता। आदि शंकराचार्य द्वारा भाष्य रचे जाने पर गीता जिस तरह प्रमाण ग्रंथ के रूप में पूजित हुई है, क्या वही स्थिति उसे इसके पूर्व भी प्राप्त थी, इसका निर्णय कर पाना कठिन है।

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