हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।
इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इनसभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।
पुरुषों का भूत : हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया गया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। सभी को यम के अधीन रहना होता है। आर्यमा नामक देवता को पितरों का अधिपति कहा गया है, जो चंद्रमंडल में रहते हैं। उक्त सभी के उपभाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है, तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है।
प्रेत योनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं, लेकिन बलवान नहीं होते। यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है। बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं।
पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है। गरूड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।
स्त्री का भूत:- हालांकि स्त्री और पुरुष एक शरीरिक विभाजन है तथा आत्मिक तौर पर कोई स्त्री और पुरुष नहीं होता। लेकिन जिसके चित्त की दशा जैसी होती है उसे वैसी योनि प्राप्त होती है। यदि कोई आत्मा स्त्री बनकर रही है तो वह खुद को अनंतकाल तक स्त्री ही महसूस करते हुए अन्य योनियां धारण करेगी। खैर...!
जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसूता स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंआरी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी कहते हैं। इन सभी की उत्पत्ति अपने पापों, व्यभिचार, अकाल मृत्यु या श्राद्ध न होने से होती है।
प्रेतबाधा : भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जाती है। अलग-अलग स्वभाव में परिवर्तन के अनुसार जाना जाता है कि व्यक्ति कौन से भूत से पीड़ित है।
भूत पीड़ा : यदि किसी व्यक्ति को भूत लग गया है, तो वह पागल की तरह बात करने लगता है। मूढ़ होने पर भी वह किसी बुद्धिमान पुरुष जैसा व्यवहार भी करता है। गुस्सा आने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में सदा कंपन बना रहता है।
पिशाच पीड़ा : पिशाच प्रभावित व्यक्ति सदा खराब कर्म करना है, जैसे नग्न हो जाना, नाली का पानी पीना, दूषित भोजन करना, कटु वचन कहना आदि। वह सदा गंदा रहता है और उसकी देह से बदबू आती है। वह एकांत चाहता है। इससे वह कमजोर होता जाता है।
प्रेत पीड़ा : प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चिल्लाता और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहना नहीं सुनता। वह हर समय बुरा बोलता रहता है। वह खाता-पीता नही हैं और जोर-जोर से श्वास लेता रहता है।
शाकिनी पीड़ा : शाकिनी से ज्यादातर महिलाएं ही पीड़ित रहती हैं। ऐसी महिला को पूरे बदन में दर्द बना रहता है और उसकी आंखों में भी दर्द रहता है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाती है। कांपते रहना, रोना और चिल्लाना उसकी आदत बन जाती है।
चुड़ैल पीड़ा : चुड़ैल भी ज्यादातर किसी महिला को ही लगती है। ऐसी महिला यदि शाकाहारी भी है तो मांस खाने लग जाएगी। वह कम बोलती, लेकिन मुस्कुराती रहती है। ऐसी महिला कब क्या कर देगी? कोई भरोसा नहीं।
यक्ष पीड़ा : यक्ष से पीड़ित व्यक्ति लाल रंग में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है। वह ज्यादातर आंखों से इशारे करता रहता है। इसकी आंखें तांबे जैसी और गोल दिखने लगती हैं।
ब्रह्मराक्षस पीड़ा : जब किसी व्यक्ति को ब्रह्मराक्षस लग जाता है, तो ऐसा व्यक्ति बहुत ही शक्तिशाली बन जाता है। वह हमेशा खामोश रहकर अनुशासन में जीवन-यापन करता है। इसे ही 'जिन्न' कहते हैं। ये बहुत सारा खाना खाते हैं और घंटों तक एक जैसी ही अवस्था में बैठे या खड़े रहते हैं। जिन्न से ग्रस्त व्यक्ति का जीवन सामान्य होता है। ये घर के किसी सदस्य को परेशान भी नहीं करते हैं, बस अपनी ही मस्ती में मस्त रहते हैं। जिन्नों को किसी के शरीर से निकालना अत्यंत ही कठिन होता है।
इस तरह से और भी कई तरह के भूत होते हैं जिनके अलग-अलग लक्षण और लक्ष्य होते हैं। उपरोक्त जानकारी शास्त्रों के आधार है।