हमारे देश में सेहत को लेकर कम ही लोग सजग रहते हैं। सभी दवा खाने के लिए तत्पर रहते हैं लेकिन कोई भी योगासन करने या सावधानी बरतने के लिए वैसे तत्पर नहीं रहते हैं। सेहत को लेकर भारत सबसे सुस्त देश है। अधिकतर लोगों की तोंद निकल गई है जो कि रोग की कोठी होती है। खैर...आओ जानते हैं ब्रह्मवैवर्त पुराण सेहत के बारे में क्या कहता है।
पुराण ही नहीं आयुर्वेदानुसार भी यदि कोई व्यक्ति भोजन करने के बाद तुरंत नहा लेता है तो इससे कफ बढ़ता है। दूसरी ओर लोग यह सोचते हैं कि भोजन के बाद थोड़ा टहलना चाहिए लेकिन इससे वात रोग बढ़ता है। भोजन के तुरंत बाद पैदल चलना, दौड़ना, आग तापना आदि से भी वात रोग बढ़ते हैं। वात रोग से शरीर कमजोर होता है और वृद्धावस्था जल्दी आती है।
इस पुराण के अनुसार 64 प्रकार रोग के होते हैं, जिनसे आपको वक्त के पहले ही बुढ़ापा आ जाता है या शरीर रोगग्रस्त हो जाता है। वात, पित्त और कफ ये रोगों के तीन प्रकार हैं। इनके अतिरिक्त एक और ज्वर भी बताया गया है, वह है त्रिदोषज। ये रोगों के मुख्य भेद हैं। इनके प्रभेद इस प्रकार है:- कुष्ठ, घेंघा, खांसी, फोड़ा, मूत्र संबंधी रोग, रक्त विकार, कब्ज, गोद, हैजा, अतिसार, ज्वर आदि। इन सभी भेदों और प्रभेदों को मिलाकर कुल 64 प्रकार के रोग बताए गए हैं।
कुल 64 प्रकार के रोग बताए गए हैं और ये सभी रोग मृत्युकन्या के पुत्र हैं। इसका सीधा अर्थ यह है कि इन रोगों से इंसान की मृत्यु तक हो सकती है। मृत्युकन्या की एक पुत्री भी है, जिसे जरा कहा जाता है। जरा यानी बुढ़ापा।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार दारुण नामक ज्वर ही सभी रोगों को उत्पन्न करता है। दारुण ज्वर यानी बहुत ज्यादा पीड़ा। ऐसी पीड़ा जो शरीर के साथ ही मन को भी तोड़ देती है। दारुण ज्वर यानी ऐसी बीमारी जिससे इंसान की मृत्यु भी हो सकती है, इंसान लाचार हो सकता है, इंसान कुछ भी कर सकने में असमर्थ हो सकता है।
इसीलिए कहा जाता है कि नीम, करेला, गिलोय, पपीता या तुलसी का रस पीते रहना चाहिए। यदि आप समय समय पर इन रसों का सेवन करते रहते हैं तो इस ज्वर से बचे रहेंगे। कई बार ऐसा होता है कि आपको संपूर्ण शरीर में धीमा दर्द बना रहता है लेकिन आपको इस बात का अहसास इसलिए नहीं होता क्योंकि आप बहुत व्यस्त हैं। आपके पास खुद के शरीर की बातें सुनने की फुर्सत नहीं है। आप अपनी कार या बाइक की बराबर सर्विसिंग कराते रहते हैं लेकिन आपको आपके शरीर की जरा भी चिंता नहीं है।