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हिन्दू धर्म : क्या और कितने-1

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

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हिन्दू सनातन धर्म के धर्मग्रंथ वेद और इतिहास ग्रंथ पुराण में उल्लेखित महत्वपूर्ण बातों के बारे में संक्षिप्त में अंकों के माध्यम से बताए जा सकने वाले प्रमुख क्रम की जानकारी, जिसे जानकर हो सकता है कि आपका भ्रम दूर हो। हमने यहां पर ज्यादा से ज्यादा अंकों को लेकर जानकारी एकत्रित की है।

अंक 1-
एक ईश्वर : ईश्वर एक ही है कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। उसे ही ब्रह्म, परब्रह्म, परमात्मा और परमेश्वर कहा जाता है। वह निराकार, निर्गुण और अजन्मा है। उसकी कोई मूर्ति नहीं बनायी जा सकती। वेद अनुसार उसे छोड़कर और किसी की पूजा और प्रार्थना करने वाला उसके लोक में न जाकर जन्म-जन्मांतर तक भटकता रहता है। उसको जो याद करता रहता है उसके सभी दुख मिट जाते हैं। देवता, दानव, भगवान पितर आदि सभी उसी ईश्वर के अधिन है। वे सब भी उसी की प्रार्थना करते हैं।

अंक 2-
दो शक्ति : देवता (सकारात्मक) और दानव (नकारात्मक)
दो पक्ष : कृष्ण और शुक्ल।
दो अयन : उत्तरायण और ‍दक्षिणायन।
दो गति : उर्ध्व और अधो।

अंक 3-
तीन प्रमुख देव (त्रिदेव) : ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव)।
तीन प्रमुख देवी (त्रिदेवी) : सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती (दुर्गा)।
तीन प्रमुख भगवान : राम, कृष्ण और बुद्ध।
त्रैलोक्य (तीन प्रमुख लोक) : भू, भुव और स्वर्ग।
तीन प्रमुख कल्प : ब्रह्म, वराह और पद्य।
तीन गुण : सत्व, रज और तम।
तीन कर्म संग्रह : कर्ता, करण और क्रिया।
तीन कर्म प्रेरणा : ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय।

अंक 4-
चार वेदज्ञ ऋषि : अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। जिन्होंने सर्वप्रथम वेद सुने। बाद में इनकी वाणी को बहुत से ऋषियों ने रचा और विस्तार दिया। मूलत: इन्हीं चार को हिन्दू धर्म का संस्थापक माना जा सकता है।

चार वेद : ऋग, यजु, साम और अथर्व।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास।
चार धाम : जगन्नाथ (पूर्व-अथर्व), द्वारिका (पश्चिम-साम), बद्रीनाथ (उत्तर-यजु) और रामेश्वरम (दक्षिण-ऋग)।
चार पीठ : ज्योर्तिपीठ, गोवर्धनपीठ, शारदापीठ और श्रृंगेरीपीठ।
चार मास : सौरमास, चंद्रमास, नक्षत्रमास और सावनमान (अधिमास या मलमास)
चार प्रकृति : सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती और सावित्री।
चार पद : ब्रह्मपद, रुद्रपद, विष्णुपद और परमपद (सिद्धपद)
चार नीतिज्ञ : मनु, अंगिरा, विदुर, चाणक्य।
चार सम्प्रदाय : वैष्णव, शैव, शाक्त और स्मृति-संत।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
चार शत्रु : काम, क्रोध, मोह और लोभ।
चार प्रलय : नित्य, नैमित्तिक, द्विपारार्ध और प्राकृत।
चार जीव : अण्डज, स्वेदज, जरायुज और उद्विज
चार नीति : साम, दाम, दंड और भेद।
चार अन्न : भक्ष्य (चबाकर), भोज्य (निगलकर), लेह्म (चाटकर) और चोष्य (चुसकर)।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग।

अंक 5-
पंच देव : ब्रह्मा, विष्णु, महेष, गणेश और सूर्य।
पांच प्रतीक : ॐ, स्वस्तिक, दीपक, माला, कमल।
पांच अमृत (पंचामृत) : दूध, दही, घी, शहद और शक्कर।
पांच कुमार : सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार और स्वायंभुव।
पांच कर्मेंद्रियां : वाक्, पणि, पाद, पायु और उपास्थ।
पांच ज्ञानेंद्रियां : चक्षु, रसना, घ्राण, त्वक् और श्रोत।
पांच चित्तावस्था : क्षिप्त, मूढ़, ‍विक्षिप्त, एकाग्र, निरुद्ध।
पंच क्लेश : अविद्या, अस्मिता, राग, द्वैष, अभिनिवेश।
वर्ष के पांच भेद : संवत्सर, परिवत्सर, इद्वत्सर, अनुवत्सर, युगवत्सर।
कामदेव के पांच बाण : मारण, स्तम्भन, जृम्भन, शोषण, उम्मादन (मन्मन्थ)
पंच महाभूत : पृथ्‍वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। मन, बुद्धि और अहंकार को भी महाभूत कहा गया है।
पांच काल : प्रात:काल, संगवकाल, मध्यान्हकाल, अपरान्हकाल, सायंकाल। एक काल में तीन मूहर्त होते हैं। क्रमश:

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