Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

6 कहानी आदर्श दाम्पत्य जीवन की

हमें फॉलो करें 6 कहानी आदर्श दाम्पत्य जीवन की
वर्तमान युग में भारतीय रुढ़ियों की आलोचना करना, लीव इन रिलेशनशिप को बढ़ावा देना, देर रात को शराब-सिगरेट पीकर घर लौटना, अन्य पुरुषों या स्त्रियों से संबंध रखना, समलैंगिक संबंधों की वकालत करना और तमाम तरह की तथाकथित पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करना अब प्रचलन में है।
अब पत्नियां अपने पति के कंगाल होने या अपंग होने पर तुरंत ही उसका साथ छोड़कर जाने के लिए तैयार हैं। पुरुष ने भी तुरंत ही एक्शन पर रिएक्शन लेने के लिए कमर कस रखी है। भारतीय टीवी चैनलों के सीरियल और रियलिटी शो देखकर आपको क्या लगता है?
 
निश्चत ही हम आधुनिक होने के विरोधी नहीं, लेकिन आधुनिक होने के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता को बाजारवाद के माध्यम से लादे जाने के विरोधी है। इस तथाकथित आधुनिकता के चलते भारत के अधिकतर परिवारों में दरार पड़ गई है। तलाक के मामले में बढ़ गए हैं। विवाह करने की उम्र अब 40 के पार जा रही है। बच्चे अब माता-पिता के होते हुए भी खुद को अनाथ महसूस कर रहे हैं। यही नहीं इसका व्यापक मनोविश्लेषण करने पर पता चलेगा कि इस तरह की आधुनिकता ने महिलाओं के जीवन स्तर और खुशियों में इजाफा नहीं किया है बल्कि उनकी जिंदगी को बहुत ही सभ्य तरीके से बर्बाद करके रख दिया है।
 
चिंता की बात है कि ऐसे लड़के-लड़कियां ढूंढना अब मुश्किल होता जा रहा है जिनकी नजरों में विवाह पूर्व-पश्चात दूसरों से यौन संबंध बनाना अनैतिक और संस्कृति के खिलाफ है। पाश्चात्य सोच का परिणाम भविष्य में इस देश और धर्म को तोड़ेगा ही नहीं बल्कि इसे एक अराजक हिन्दुस्तान बनाकर छोड़ देगा।
 
पति तो अब शराब या अहंकार के नशे में धुत्त है, तो स्त्री का पतिव्रता होना भी अब दुर्लभ हो चला है। पाश्चात्य संस्कृति ने भारतीय स्त्रियों के दिमाग में यह बात डालने में सफलता हासिल कर ली है कि तुम गुलाम हो, तुम्हारा धर्म स्त्री स्वतंत्रता के खिलाफ है तो दूसरी ओर भारतीय युवा अब 'बीयर पार्टी संस्कृति' को ही अपने जीवन का अंग समझने लगा है। अभी भारत की महिला और पुरुषों को और अच्छे तरीके से बर्बाद होने या करने के सभ्य तरीके इजाद होने वाले हैं। इस बीच हम जान लेते हैं भारत के उन प्राचीन आदर्श दाम्पत्य जीवन के बारे में जो आज भी याद किए जाते हैं...
 
अगले पन्ने पर पहले दंपति...
 
 

पार्वती और शिव : क्या शिवजी ने कभी पार्वती को कहा कि तुम मेरे अधीन हो? पहले जन्म में पर्वती ही राजा दक्ष की पुत्री के रूप में सती नाम से जब थीं, तो शिवजी से प्रेम विवाह किया था। पति के अपमान के चलते सती ने आग में कुदकर आत्मदाह कर लिया था। उनकी जली हुई लाश को शिव अपने कंधे पर लेकर कई वर्षों तक रुदन करते रहे।
 
webdunia
दक्ष के बाद सती ने हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के यहां जन्म लिया तो उन्होंने पुन: शिव को प्राप्त करने के लिए कठित तप किया और पार्वती के रूप में विख्‍यात हुई और एक आदर्श पत्नी की भूमिका निभाई। पर्वती के अलावा माता लक्ष्मी और सरस्वती का नाम भी उल्लेखनीय है।
 
अगले पन्ने पर दूसरे दंपति...
 

अत्रि-अनुसूया : पतिव्रता देवियों में अनुसूया का स्थान सबसे ऊंचा है। वे अत्रि-ऋषि की पत्‍‌नी थीं। एक बार सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती में यह विवाद छिड़ा कि सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता कौन है? अंत में तय यही तय हुआ कि अत्रि पत्‍‌नी अनुसूया ही सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता हैं।
 
webdunia
इस बात की परीक्षा लेने के लिए अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनुसूया के आश्रम में ब्राह्मण के भेष में भिक्षा मांगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे। तब अनुसूया ने अपने सतीत्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रता का उपदेश दिया था।
 
अगले पनने पर तीसरे दंपति....
 

राम-सीता : कौन कहता है कि सीता को अग्नि परीक्षा देना पड़ी थी? वाल्मीकि रामायण में उत्तरकांड को बौद्धकाल में जोड़ा गया था और बाद में इसी कांड को साहित्यकारों और तुलसीदास ने इतना विस्तार दिया की प्रभु श्रीराम बदनाम हो गए और आज तक बदनाम हैं। एक बात और...ढोर, गवारशुद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी।...मित्रों ये पंक्ति श्रीराम ने नहीं लिखी लेकिन वे बदनाम हो गए।
 
webdunia
राम और सीता की कहानी पति और पत्नी के अगाथ प्रेम की कहानी है। लंका में सीता के चरित्र को पहचानकर उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हुए हनुमानजी ने कहा था:- 'दुष्करं कृतवान् रामो हीनो यदनया प्रभुः धारयत्यात्मनो देहं न शोकेनावसीदति। यदि नामः समुद्रान्तां मेदिनीं परिवर्तयेत् अस्थाः कृते जगच्चापि युक्त मित्येव मे मतिः।।
 
अर्थात : ऐसी सीता के बिना जीवित रहकर राम ने सचमुच ही बड़ा दुष्कर कार्य किया है। इनके लिए यदि राम समुद्रपर्यंत पृथ्वी को पलट दें तो भी मेरी समझ में उचित ही होगा, त्रैलौक्य का राज्य सीता की एक कला के बराबर भी नहीं है।
 
अगले पन्ने पर चौथे आदर्श दंपति...
 

सत्यवान और सावि‍त्री : पति से प्रेम करने वाली भारतीय आदर्श महिलाओं में सती के बाद सावित्री को सबसे ऊपर रखा जाता है। महाभारत अनुसार सावित्री राजर्षि अश्वपति की पुत्री थी। उनके पति का नाम सत्यवान था, जो वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे। सावित्री के पति सत्यवान की मृत्यु के बाद, सावित्री ने अपनी तपस्या के बल पर सत्यवान को पुनर्जीवित कर लिया था। 
webdunia
इनके नाम से वट सावित्री नामक व्रत प्रचलित है, जो महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। यह व्रत गृहस्थ जीवन के मुख्य आधार पति-पत्नी को दीर्घायु, पुत्र, सौभाग्य, धन-समृद्धि से भरता है।
 
अगले पन्ने पर पांचवें आदर्श दंपति...
 

नल-दमयंती : विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयंती और निषध (एक आदिवासी जाति) के राजा वीरसेन के पुत्र नल दोनों ही अति सुंदर थे। दोनों ही एक दूसरे की प्रशंसा सुनकर बिना देखे ही एक-दूसरे से प्रेम करने लगे थे। दमयंती के स्वयंवर का आयोजन हुआ तो इन्द्र, वरुण, अग्नि तथा यम भी उसे प्राप्त करने के इच्छुक हो गए। वे चारों भी स्वयंवर में नल का ही रूप धारण आए नल के समान रूपवाले पांच पुरुषों को देख दमयंती घबरा गई। लेकिन उसके प्रेम में इतन आस्था थी कि उसने देवाताओं से शक्ति मांगकर राजा नल को पहचान लिया और दोनों का विवाह हो गया।
 
webdunia
नल-दमयंती का मिलन तो होता है पर, कुछ समय बाद वियोग भी हो जाता है। दोनों बिछुड़ जाते हैं। नल अपने भाई पुष्कर से जुए में अपना सब कुछ हार जाता है। दोनों बिछुड़ जाते हैं। दमयंती किसी राज घराने में शरण लेती है, बाद में अपने परिवार में पहुंच जाती है। उसके पिता नल को ढूंढने के बहाने दमयंती के स्वयंवर की घोषणा करते हैं।
 
दमयंती से बिछुड़ने के बाद नल को कर्कोटक नामक सांप डस लेता है, जिस कारण उसका रंग काला पड़ गया था। उसे कोई पहचान नहीं सकता था। वह बाहुक नाम से सारथी बनकर विदर्भ पहुंचा। अपने प्रेम को पहचानना दमयंती के लिए मुश्किल न था। उसने अपने नल को पहचान लिया। पुष्कर से पुनः जुआ खेलकर नल ने अपनी हारी हुई बाजी उसने जीत ली।
 
दमयंती न केवल रूपसी युवती थी, बल्कि जिससे प्रेम किया, उसे ही पाने की प्रबल जिजीविषा लिए थी। उसे देवाताओं का रुप-वैभव भी विचलित न कर सका, न ही पति कर विरूप हुआ चेहरा उसके प्यार को कम कर पाया।

अगले पन्ने पर .छठे दंपति...

श्रीकृष्ण और रुक्मिणी : संसार की भलाई के लिए श्रीकृष्ण ने बहुत सारी अबला नारियों को पत्नी रूप में स्वीकार किया परंतु उनका प्रथम विवाह रुक्मिणीजी के साथ हुआ था। उन्होंने रुक्मिणीजी को ही अंत तक अपनी पत्नी स्वीकार किया। वे साक्षात लक्ष्मी थीं। प्रद्युम्न उन्हीं के गर्भ से उत्पन्न हुए थे, जो कामदेव के अवतार थे।
 
विद्वानों अनुसार राधा और कृष्ण की प्रेम कथा की उपज मध्यकाल के भक्त कवियों ने की थी। श्रीकृष्ण का राधा से कोई संबंध नहीं था। लेकिन आज रुक्मिणी को छोड़कर श्रीकृष्ण को राधा से जोड़कर देखा जाना दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi