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रोमांच से भरे भारत के 12 रहस्यमय स्थान

हमें फॉलो करें रोमांच से भरे भारत के 12 रहस्यमय स्थान

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

, सोमवार, 26 जनवरी 2015 (07:02 IST)
ऋषि-मुनियों और अवतारों की भूमि 'भारत' एक रहस्यमय देश है। यदि धर्म कहीं है तो सिर्फ यहीं है। यदि संत कहीं हैं तो सिर्फ यहीं हैं। माना कि आजकल धर्म, अधर्म की राह पर चल पड़ा है। माना कि अब नकली संतों की भरमार है फिर भी यहां की भूमि ही धर्म और संत है।

भारत भूमि को देवभूमि कहा जाता है। हिन्दुकुश पर्वत माला से लेकर अरुणाचल तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भी भूमि को भारत कहा जाता है। भारत में ऐसे बहुत सारे रहस्यमय स्थान हैं, जहां जाकर आपको अजीब ही महसूस होगा।

आओ जानते हैं हम भारत के वे प्रमुख रहस्यमय स्थान जिनका ऐतिहासिक और प्राचीन महत्व है ही साथ ही जहां जाकर आप महसूस करेंगे कि कुछ अलग जगह पर आ गए हैं। रहस्य और रोमांच से भरे ऐसे हमने 12 स्थान ढूंढे हैं। इन स्थानों का धार्मिक महत्व से कहीं ज्यादा ऐतिहासिक महत्व है। इन स्थानों पर अभी और भी शोध किए जाने की आवश्यकता है। इन स्थानों पर जाने से आपको इन स्थानों से जुड़े रहस्यों का पता चलेगा। यह ऐसे स्थान हैं जिनके आसपास कई प्राचीन और रहस्यमय स्थान मौजूद हैं। यदि आप यहां जाना चाहते हैं तो इन स्थानों की अच्छे से स्टडी करके जाएं।

अगले पन्ने पर पहला रहस्यमय स्थान...

हिमालय : हिमालय की वादियों में रहने वालों को कभी दमा, टीबी, गठिया, संधिवात, कुष्ठ, चर्मरोग, आमवात, अस्थिरोग और नेत्र रोग जैसी बीमारी नहीं होती। हिमालय क्षेत्र के राज्य जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, हिमाचल, उत्तराखंड, असम, अरुणाचल आदि क्षेत्रों के लोगों का स्वास्थ्य अन्य प्रांतों के लोगों की अपेक्षा बेहतर होता है। इसे ध्यान और योग के माध्यम से और बेहतर करके यहां की औसत आयु सीमा बढ़ाई जा सकती है। तिब्बत के लोग निरोगी रहकर कम से कम 100 वर्ष तो जीवित रहते ही हैं।

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देव आत्मस्थान : उत्तराखंड में एक ऐसा रहस्यमय स्थान है जिसे देवस्थान कहते हैं। मुण्डकोपनिषद के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। इनका केंद्र हिमालय की वादियों में उत्तराखंड में स्थित है। इसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है। इन दुर्गम क्षेत्रों में स्थूल-शरीरधारी व्यक्ति सामान्यतया नहीं पहुंच पाते हैं।

अपने श्रेष्ठ कर्मों के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माएं यहां प्रवेश कर जाती हैं। जब भी पृथ्वी पर संकट आता है, नेक और श्रेष्ठ व्यक्तियों की सहायता करने के लिए वे पृथ्वी पर भी आती हैं। देवताओं, यक्षों, गंधर्वों, सिद्ध पुरुषों का निवास इसी क्षेत्र में पाया जाता रहा है।

देवस्थान : प्राचीनकाल में हिमालय में ही देवता रहते थे। यहीं पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्थान था और यहीं पर नंदन कानन वन में इंद्र का राज्य था। इंद्र के राज्य के पास ही गंधर्वों और यक्षों का भी राज्य था। स्वर्ग की स्थिति दो जगह बताई गई है- पहली हिमालय में और दूसरी कैलाश पर्वत के कई योजन ऊपर। यहीं पर मानसरोवर है और इसी हिमालय में अमरनाथ की गुफाएं हैं।

अन्य रहस्यमय बातें : हिमालय में ही यति जैसे कई रहस्यमय प्राणी रहते हैं। इसके अलावा यहां चमत्कारिक और दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी मिलती हैं। भारत और चीन की सेना ने हिमालय क्षेत्र में ही एलियन और यूएफओ को देखने का दावा किया है। हिमालय में ही एक रूपकुंड झील है। इसके तट पर मानव कंकाल पाए गए हैं। पिछले कई वर्षों से भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के विभिन्न समूहों ने इस रहस्य को सुलझाने के कई प्रयास किए, पर नाकाम रहे।

अगले पन्ने पर दूसरा रहस्यमय स्थान...

सुंदरवन का जंगल : जंगल तो भारत में बहुत सारे हैं लेकिन सुंदरवन का जंगल अपने भीतर कई तरह के रहस्यों को समेटे हुए हैं। सबसे सुंदर और भयानक जंगल होने के कारण यहां भारत के कई ऋषि-मुनियों ने घोर तप किया है। इस जंगल में घूमने से जो सुकून, शांति, रहस्य और रोमांच का अनुभव होता है, वह किसी अन्य जंगल में नहीं। कहते हैं कि इन जंगलों में बड़ी तादाद में भूत निवास करते हैं।

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सुंदरवन राष्ट्रीय अभयारण्य पश्चिम बंगाल (भारत) में खानपान जिले में स्थित है। इसकी सीमा बांग्लादेश के अंदर तक है। सुंदरवन भारत के 14 बायोस्फीयर रिजर्व में से एक बाघ संरक्षित क्षेत्र है। इस उद्यान को भी विश्‍व धरोहर में शामिल किया गया है।

कई दुर्लभ और प्रसिद्ध वनस्पतियों और बंगाल टाइगर सहित दुर्लभ प्राणियों के लिए प्रसिद्ध इस जंगल में पक्षियों की अनगिनत प्रजातियां निवास करती हैं।

अगले पन्ने पर तीसरा रहस्यमय स्थान...

अजंता-एलोरा की गुफाएं : गुफाएं तो भारत में बहुत हैं, लेकिन अजंता-एलोरा की गुफाओं के बारे में वैज्ञानिक कहते हैं कि ये किसी एलियंस के समूह ने बनाई हैं।

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यहां पर एक विशालकाय कैलाश मंदिर है। आर्कियोलॉजिस्टों के अनुसार इसे कम से कम 4 हजार वर्ष पूर्व बनाया गया था। 40 लाख टन की चट्टानों से बनाए गए इस मंदिर को किस तकनीक से बनाया गया होगा? यह आज की आधुनिक इंजीनियरिंग के बस की भी बात नहीं है।

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माना जाता है कि एलोरा की गुफाओं के अंदर नीचे एक सीक्रेट शहर है। आर्कियोलॉजिकल और जियोलॉजिस्ट की रिसर्च से यह पता चला कि ये कोई सामान्य गुफाएं नहीं हैं। इन गुफाओं को कोई आम इंसान या आज की आधुनिक तकनीक नहीं बना सकती। यहां एक ऐसी सुरंग है, जो इसे अंडरग्राउंड शहर में ले जाती है।

अगले पन्ने पर चौथा रहस्यमय स्थान...

पुष्कर, रेगिस्तान और सरस्वती नदी : राजस्थान का रेगिस्तान अपने आप में एक रहस्य है। राजस्थान के बीच में से ही सरस्वती नदी बहती थी और यहां पर ही दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता रहती थी। आज भी सरस्वती की सभ्यता खोजी जाना बाकी है। कहा जाता है कि सरस्वती नदी के तट पर ही बैठकर ऋषियों ने वेद और स्मृति ग्रंथ लिखे थे।

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पुष्कर राजस्थान के लगभग बीचोबीच स्थित है। पुष्कर में ब्रह्माजी के एकमात्र मंदिर है। तीर्थ तो बहुत हैं लेकिन पुष्कर एक तीर्थस्थल है इसलिए इसका जिक्र नहीं किया जा रहा। पुष्कर उस प्राचीन सभ्यता का केंद्र है, जो कभी 4,000 वर्ष पूर्व अर्थात महाभारतकाल तक अस्तित्व में थी।

भारत में झीलें बहुत हैं, जैसे महाराष्ट्र में लोणार की झील, जयपुर और उदयपुर की झीलें लेकिन पुष्कर में स्थित झील का महत्व कुछ और ही है। इस रहस्यमय झील और आसपास के क्षेत्र पर शोध किए जाने की आवश्यकता है। अजमेर से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है तीर्थस्थल पुष्कर।

अगले पन्ने पर पांचवां स्थान...

महाबलीपुरम : महाबलीपुरम एक ऐतिहासिक रहस्यमय नगर है। यहां का प्रथम राजा, राजा बली था इसीलिए इसका नाम महाबलीपुरम है। हालांकि यह नगर कई बार उजाड़ हो गया लेकिन मध्यकाल में इसे पल्लव राजाओं ने फिर से आबाद किया। वामन भगवान ने दैत्यराज बली को पृथ्वी का दान इसी स्थान पर दिया गया था। इससे इस नगर की प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है।

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यह नगर पूर्वोत्तर तमिलनाडु राज्य, दक्षिण भारत में स्थित है। प्राचीनकाल में महाबलीपुरम एक महानगर था। यहां पर विशालकाय और अद्भुत मंदिरों की एक श्रृंखला है जिसका एक भाग अब समुद्र में समा गया है। यहां सैकड़ों मंदिर और गुफाएं हैं, जो अपने आप में एक रहस्य हैं। दुनियाभर से लाखों पर्यटक इस शहर को देखने के लिए आते हैं। भारत के 7 आश्चर्यों में से एक महाबलीपुरम में दफन है प्राचीन भारत का रहस्यमय इतिहास।

यह नगर बंगाल की खाड़ी पर चेन्नई (भूतपूर्व मद्रास) से 60 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका एक अन्य प्राचीन नाम बाणपुर भी है। महाबलीपुरम तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में है। इस रहस्यमय नगर पर शोध किए जाने की आवश्यकता है।

अगले पन्ने पर छठा स्थान...

हम्पी और किष्किंधा : दक्षिण भारत के कर्नाटक का छोटा-सा गांव है हम्पी। यूनेस्को की विश्व विरासत की लिस्ट में शामिल हम्पी भारत का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। हम्पी कर्नाटक राज्य का हिस्सा है। हम्पी बेलगांव से 190 किलोमीटर दूर, बेंगलुरु से 350 किलोमीटर दूर और गोवा से 312 किलोमीटर दूर है। मंदिरों का यह प्राचीन शहर मध्यकाल में हिन्दू राज्य विजयनगर साम्राज्य की राजधानी था।

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हम्पी में बने दर्शनीय स्थलों में सम्मिलित हैं- विरुपाक्ष मंदिर, रघुनाथ मंदिर, नरसिम्हा मंदिर, सुग्रीव गुफा, विठाला मंदिर, कृष्ण मंदिर, हजारा राम मंदिर, कमल महल और महानवमी डिब्बा। हम्पी से 6 किलोमीटर दूर तुंगभद्रा बांध है।

हमने हम्पी को इसलिए लिया, क्योंकि यह कभी राम के काल में किष्किंधा क्षेत्र में हुआ करता था। यह किष्किंधा का केंद्र था। आजकल होसपेट स्टेशन से ढाई मील दूरी पर और बेल्लारी से 60 मील उत्तर की ओर स्थित एक पहाड़ी स्थान को किष्किंधा कहा जाता है। रामायण के अनुसार यह वानरों की राजधानी थी। यहां ऋष्यमूक पर्वत के आसपास तुंगभद्रा नदी बहती है। ऋष्यमूक पर्वत तथा तुंगभद्रा के घेरे को चक्रतीर्थ कहते हैं। रामायणकाल में किष्किंधा वानर राज बाली का राज्य था। कर्नाटक के दो जिले कोप्पल और बेल्लारी को मिलाकर किष्किंधा राज्य बनता है।

किष्किंधा में घूमने के लिए कई स्थान हैं। ब्रह्माजी का बनाया हुआ पम्पा सरोवर है। हनुमानजी की जन्मस्थली आंजनाद्रि पर्वत है। बाली की गुफा और सुग्रीव का निवास स्थान ऋषम्यूक पर्वत भी यहीं स्थित है। चिंतामणि मंदिर, जहां से राम ने बाली के ऊपर तीर चलाया था, वो भी इसी जगह के अंतर्गत आता है। ये सब किष्किंधा के कोप्पल जिले वाले भाग में आते हैं। बेल्लारी जिले के अंतर्गत आने वाले किष्किंधा के दूसरे भाग में भगवान राम ने जहां चार्तुमास किया था, वो माल्यवंत पर्वत और हनुमान आदि वानरों ने सीता का पता लगाकर लौटते वक्त जिस वन में फल खाए थे, वो मधुवन यहां पड़ता है। इसके अलावा भी कई छोटे-बड़े मंदिर और शिवलिंग यहां स्थित हैं।

अगले पन्ने पर सातवां स्थान...

कन्याकुमारी : कन्याकुमारी हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। कन्याकुमारी तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। कन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यह मध्यकाल में विजयानगरम् साम्राज्य का भी हिस्सा रहा है।

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पौराणिक महत्व : कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर वाणासुर को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीनकाल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को 8 पुत्री और 1 पुत्र था। भरत ने अपने साम्राज्य को 9 बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उनकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी शिव की भक्त थीं और भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। विवाह की तैयारियां होने लगीं लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि बाणासुरन का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया।

कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाने लगा और वाणासुर के वध के बाद कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाने लगा। यहां के समुद्री तट पर ही कुमारी देवी का मंदिर है, जहां देवी पार्वती के कन्या रूप को पूजा जाता है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को कमर से ऊपर के वस्त्र उतारने पड़ते हैं।

प्रचलित कथा के अनुसार देवी का विवाह संपन्न न हो पाने के कारण बच गए दाल-चावल बाद में कंकर बन गए। आश्चर्यजनक रूप से कन्याकुमारी के समुद्र तट की रेत में दाल और चावल के आकार और रंग-रूप के कंकर बड़ी मात्रा में देखे जा सकते हैं।

सूर्योदय और सूर्यास्त : कन्याकुमारी अपने सूर्योदय के दृश्य के लिए काफी प्रसिद्ध है। सुबह हर होटल की छत पर पर्यटकों की भारी भीड़ सूरज की अगवानी के लिए जमा हो जाती है। शाम को सागर में डूबते सूरज को देखना भी यादगार होता है। उत्तर की ओर करीब 2-3 किलोमीटर दूर एक सनसेट प्वॉइंट भी है।

अगले पन्ने पर आठवां स्थान...

द्वारिका नगर : मथुरा से निकलकर भगवान कृष्ण ने द्वारिका क्षेत्र में ही पहले से स्थापित खंडहर हो चुके नगर क्षेत्र में एक नए नगर की स्थापना की थी। कहना चाहिए कि भगवान कृष्ण ने अपने पूर्वजों की भूमि को फिर से रहने लायक बनाया था। प्राचीन इतिहास की खोज करने वाले इतिहासकारों के अनुसार द्वारिका विश्‍व का सबसे रहस्यमय शहर है। इस शहर पर अभी भी शोध जारी है।

कई द्वारों का शहर होने के कारण 'द्वारिका' इसका नाम पड़ा। इस शहर के चारों ओर बहुत ही लंबी दीवार थी जिसमें कई द्वार थे। वह दीवार आज भी समुद्र के तल में स्थित है। भारत के सबसे प्राचीन नगरों में से एक है द्वारिका। ये 7 नगर हैं- द्वारिका, मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांची और अयोध्या। द्वारिका को द्वारावती, कुशस्थली, आनर्तक, ओखा-मंडल, गोमती द्वारिका, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारिदुर्ग, उदधिमध्य स्थान भी कहा जाता है।

गुजरात राज्य के पश्चिमी सिरे पर समुद्र के किनारे स्थित 4 धामों में से 1 धाम और 7 पवित्र पुरियों में से एक पुरी है द्वारिका। द्वारिका 2 हैं- गोमती द्वारिका, बेट द्वारिका। गोमती द्वारिका धाम है, बेट द्वारिका पुरी है। बेट द्वारिका के लिए समुद्र मार्ग से जाना पड़ता है।

एक समय था, जब लोग कहते थे कि द्वारिका नगरी एक काल्‍पनिक नगर है, लेकिन इस कल्‍पना को सच साबित कर दिखाया ऑर्कियोलॉजिस्‍ट प्रो. एसआर राव ने। प्रो. राव ने मैसूर विश्‍वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद बड़ौदा में राज्‍य पुरातत्‍व विभाग ज्‍वॉइन कर लिया था। उसके बाद भारतीय पुरातत्‍व विभाग में काम किया। प्रो. राव और उनकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में 560 मीटर लंबी द्वारिका की दीवार की खोज की। साथ में उन्‍हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के हैं। इसके अलावा सिन्धु घाटी सभ्‍यता के भी कई अवशेष उन्‍होंने खोजे। उस जगह पर भी उन्‍होंने खुदाई में कई रहस्‍य खोले, जहां पर कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ था।

अगले पन्ने पर नौवां स्थान...

हड़प्पा और मोहनजोदडो : पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित 'माण्टगोमरी जिले' में रावी नदी के बाएं तट पर यह हड़प्पा नामक पुरास्थल है। पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत के 'लरकाना जिले' में सिन्धु नदी के दाहिने किनारे पर मोहनजोदड़ो नामक नगर करीब 5 किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां से खुदाई में प्राप्त अवशेषों और नगर से दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता का पता चला जिसे बाद में सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम दिया गया।

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हड़प्पा (पाकिस्तान), मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान), चन्हूदड़ों, लोथल, रोपड़, कालीबंगा, सूरकोटदा, आलमगीरपुर (मेरठ), बणावली (हरियाणा), धौलावीरा, अलीमुराद (सिन्ध प्रांत) आदि क्षेत्रों में सिन्धु घाटी सभ्यता के कई प्राचीन नगरों को ढूंढ निकाला गया है। अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस सभ्यता के लगभग 1,000 स्थानों का पता चला है।

अगले पन्ने पर दसवां स्थान...

काशी : वैसे तो अखंड भारत में कई प्राचीन शहर हैं, जैसे मथुरा, अयोध्या, द्वारिका, कांची, उज्जैन, रामेश्वरम, प्रयाग (इलाहाबाद), पुष्कर, नासिक, श्रावस्ती, पेशावर (पुरुषपुर), बामियान, सारनाथ, लुम्बिनी, राजगिर, कुशीनगर, त्रिपुरा, गोवा, महाबलीपुरम, कन्याकुमारी, श्रीनगर आदि, लेकिन काशी का स्थान इन सब में सबसे ऊंचा है। काशी को वाराणसी और बनारस भी कहा जाता है। हालांकि प्राचीन भारत में 16 जनपद थे जिनके नाम इस प्रकार हैं- अवंतिका, अश्मक, कम्बोज, अंग, काशी, कुरु, कौशल, गांधार, चे‍दि, वज्जि, वत्स, पांचाल, मगध, मत्स्य, मल्ल और सुरसेन।

काशी एक रहस्यमय शहर है। वेद और पुराणों में इसकी महिमा का वर्णन मिलता है। शहरों और नगरों में बसाहट के अब तक प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर एशिया का सबसे प्राचीन शहर वाराणसी को ही माना जाता है। इसमें लोगों के निवास के प्रमाण 3,000 साल से अधिक पुराने हैं। हालांकि कुछ विद्वान इसे करीब 5,000 साल पुराना मानते हैं, लेकिन हिन्दू धर्मग्रंथों में मिलने वाले उल्लेख के अनुसार यह और भी पुराना शहर है।

भारत के उत्तरप्रदेश में स्‍थित काशी नगर भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसा है। काशी संसार की सबसे पुरानी नगरी है। दो नदियों वरुणा और असि के मध्य बसा होने के कारण इसका नाम 'वाराणसी' पड़ा।

अगले पन्ने पर ग्यारहवां स्थान...

अबूझमाड़ : छत्तीसगढ़ का बस्तर अंचल में फैला हुआ अबूझमाड़ इलाका आज भी अबूझ है। मूल आदिवासी संस्कृति की संरक्षण स्थली कहा जाना वाला यह जंगल गोड़ों की एक महत्वपूर्ण जनजाति अबूझमाड़िया का निवास स्थान।  

कभी अबूझमाड़ भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का केंद्र था। यहां भारत के सबसे प्राचीन आदिवासी लोग निवास करते हैं। कभी इन जंगलों में भगवान राम भी रहा करते थे।

माड़िया जनजाति को मुख्यतः दो उपजातियों में बांटा गया है, अबूझ माड़िया और बाईसन होर्न माड़िया। अबुझ माड़िया अबूझमाड़ के पहाड़ी इलाकों में निवास करते हैं और बाईसन होर्न माड़िया इन्द्रावती नदी से लगे हुए मैदानी जंगलो में। दोनों ही जाति के लोगों को माओवादी और ईसाई मिशनरी अपने-अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।

अगले पन्ने पर बारहवां स्थान...

अमरकंटक : भारत के पर्यटन स्थलों में अमरकंटक प्रसिद्ध तीर्थ और नयनाभिराम पर्यटन स्थल है। विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमालाओं के बीच 1065 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह हरा-भरा होने के साथ-साथ अपने में कई रहस्य समेटे हुए हैं। आश्चर्य नहीं की यहां के बंदर भी आपको ध्यान करते हुए मिल जाएं।

भारत की प्रमुख सात नदियों में से अनुपम नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक है और यह मध्यप्रदेश के शहडोल जिले की पुष्पराजगढ़ तहसील के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित अमरकंटक पवित्र स्थलों में गिना जाता है। यहां एक प्राचीन कमंडल है जो हमेशा पानी से भरा रहता है।

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