कहते हैं कि जानकारी ही बचाव है। हम बहुत-सा ऐसा ज्ञान प्राप्त भी करते रहते हैं जिसकी जीवन में कोई उपयोगिता नहीं रहती है। व्यर्थ ही समय और पैसा कई अन्य बातों में खर्च करते रहते हैं। हम ऐसी भी बातें सुनते या देखते रहते हैं जिससे हमारे जीवन में नकारात्मकता का विकास होता है।
किताबी और प्रायोगिक ज्ञान को आप थ्योरी और प्रैक्टिकल नॉलेज समझे। जीवन में दोनों ही तरह का ज्ञान जरूरी है। किसी भी विषय या क्षेत्र में कार्य करने से पहले उसकी जानकारी हासिल करना जरूरी है, फिर उसके व्यावहारिक या प्रोयोगिक पक्ष को समझना भी जरूरी है। यदि आप जीवन में कोई-सा भी कार्य करने जा रहे हैं तो पहले उसकी अच्छे से जानकारी एकत्रित कर लें।
आप अपने जीवन को सुंदर और सुखद बनाना चाहते हैं तो यह समझना जरूरी है कि हमारे लिए कौन-सा ज्ञान महत्वपूर्ण है और कौन-सा व्यर्थ। हालांकि बहुत से लोगों को यह जानकारी होगी ही। यदि है तो अपनी इस जानकारी को अपडेट करते रहें। आओ जानते हैं कि ऐसे कौन-से 10 तरह के कार्य और जानकारी है जो आपके जीवन में काम आती है। हालांकि हमने यहां बहुत ही संक्षिप्त में बताया है...
धर्म और इतिहास की जानकारी : आप सोच रहे होंगे कि धर्म और इतिहास की जानकारी का संबंध जिंदगी या रोजमर्रा के जीवन से कैसे? दरअसल, यह जानकारी आपकी सोच को विस्तृत और सही बनाती है। साथ ही यह ज्ञान आपके जीवन में बहुत काम आता है। दुनियाभर की पढ़ाई कर लें लेकिन यदि उपरोक्त विषय की जानकारी नहीं है तो आप बहुत कंफ्यूज रहेंगे और हो सकता है कि आपकी सोच एक तरफा हो। यह ज्ञान आपके व्यावाहारिक जीवन में बहुत काम आता है।
आपको बचपन में हिन्दू, बौद्ध, ईसाई, मुस्लिम, वामपंथी संस्कार मिले होंगे। हो सकता है कि आपको शियाओं या ब्राह्मणों के प्रति नफरत सिखाई गई हो या आप खुद ही इनसे नफरत करना सीख गए हों। तब आप जिंदगी में यह कभी नहीं जान पाएंगे कि सत्य क्या है। हां, यदि आप अपना कोई राजनीतिक या धार्मिक हित साधना चाहते हैं तो निश्चित ही सोचते रहें किसी के भी खिलाफ। व्यवस्था और क्रांति के नाम पर आपको हांका जाएगा। आप यह सोचते हैं कि हम पढ़-लिखकर सोचने लगे हैं तो आप सचमुच ही व्यर्थ ही सोच रहे हैं।
सभी धर्मों की जानकारी और इतिहास की सभी दृष्टिकोण की जानकारी जरूरी है, तभी आपके मन और मस्तिष्क में सही सोच का विकास होगा। धर्म और इतिहास को यदि आपने वामपंथ की नजर से देखा है तो आप कभी सही नहीं समझ पाएंगे। सभी धर्मों का अध्ययन सीधे-सीधे करना चाहिए। जैसे गीता, उपनिषद, कुरआन, बाइबल, गुरुग्रंथ साहिब, धम्मपद, समयसार, जिनसूत्र आदि सभी को आप खुद पढ़ें और समझें। लगभग सभी प्रसिद्ध दार्शनिकों सहित वर्तमान में प्रचलित दार्शनिकों की किताबें पढ़ना चाहिए, लेकिन किसी से भी प्रभावित होने की जरूरत नहीं है।
देश और धर्म का इतिहास जानना भी जरूरी है। इतिहास में अधिकतर आपने राजाओं या राजनीतिज्ञों के ही बारे में पढ़ा होगा। स्कूलों में यही पढ़ाए जाते हैं, लेकिन आपको धर्मों के इतिहास का अध्ययन भी करना चाहिए।
मनोविज्ञान और स्वयं के बारे में जानकारी : अधिकतर लोगों को या तो दुनियाभर की जानकारी होती है या बिलकुल नहीं होती है, लेकिन बहुत कम लोग हैं, जिन्हें अपने बारे में जानकारी होती है कि मैं कैसा हूं और क्यों हूं। आप लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। क्या आपका व्यवहार और आपकी सोच किसी से प्रभावित है?
खुद के विचार और मन को समझना बहुत जरूरी है। हिन्दू धर्म यही सिखाता है। खुद को जानों। आपके मन और मस्तिष्क में 24 घंटे में लगभग 60 हजार विचार उत्पन्न होते हैं। उसमें से कितने विचार ऐसे हैं जो आपने खुद ने जनरेट किए हैं? कभी आपने सोचा है कि आप दिनभर क्या-क्या सोचते रहते हैं? हो सकता है कि उसमें से ज्यादातर बातें नकारात्मक ही होती होंगी?
मन और मस्तिष्क के समझने के विज्ञान को ही मनोविज्ञान कहते हैं। मनोविज्ञान के विषय को पढ़ना जरूरी है। इससे आपको आपकी और दूसरे के मनोविज्ञान की जानकारी होगी। यह ज्ञान आपके जीवन में बहुत काम आएगा। इसके लिए आपको फ्रायड या जुंग की किताबें पढ़ने की जरूरत नहीं, बल्कि योग और गीता को पढ़कर ही इसे जाना जा सकता है।
विचार हमारे शत्रु हैं, फिर वह चाहे कैसे भी विचार हों। हमारे मन में कई तरह की विचारधारा हो सकती है या सिर्फ एक तरह की ही विचारधारा हो सकती है। हम राष्ट्रवादी हैं, साम्प्रदायिक, पूंजीवादी या साम्यवादी, हम किसी बाबा के चेले हैं या किसी नेता के, हम जातिवाद की भावना रखते हैं या वाममंथ की, लेकिन यह तय है कि आपके विचार सिर्फ विचारभर हैं, वे किसी भी काम के नहीं। न आपका धर्म महान है और न वामपंथ। दोनों का ही यदि अच्छे से इतिहास जानेंगे तो इससे दुनिया को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। यह एक छलावा है। यह आपकी समझ को बंद कर देते हैं। किसी वाद से ग्रसित होकर सोचना एक व्यर्थ प्रक्रिया है।
भोजन और जीवन संबंधी वस्तुओं की जानकारी : खाना बनाना भी एक कला है। हालांकि जो मिले, वही खा लें, इसी में भलाई है। खाने के प्रति लालसा नहीं रखनी चाहिए, लेकिन खाने की क्वालिटी से कभी समझौता नहीं करना चाहिए। आयुर्वेद और हिन्दू धर्म अनुसार भोजन से ही रोग उत्पन्न होते हैं और भोजन की आदत बदलने से ही रोग समाप्त भी हो जाते हैं। हिन्दू धर्म में किस नक्षत्र या वार को कौन सा भोजन करना चाहिए और कौन सा नहीं इसका उल्लेख मिलता है।
देश और दुनिया के सभी तरह के भोजन की जानकारी रखेंगे तो आपको अच्छा लगेगा। कभी-कभी घर में परंपरागत भोजन से हटकर भी ऐसा भोजन बनाएं, जो आपके मन को खुशी दे। तरह-तरह के भोजन और उनको बनाने संबंधी जानकारी भी किताबी रूप में उपलब्ध हैं। इसके अलावा जीवनोपयोगी वस्तुओं की भी आपको जानकारी होनी चाहिए। जैसे बिजली की अनुपस्थिति में लालटेन, चिमनी, टॉर्च, हाथ पंखा होना चाहिए। गैस के न होने पर सिगड़ी, इंडक्सन या हीटर होना चाहिए। इसके अलावा मल्टीपल पेचकस, फोल्डिंग सीढ़ी, केतली, सुराही, नीम और अरंडी का तेल, चकमक पत्थर, फोल्डिंग डंडा, घट्टी, सिलबट्टा और खलबत्ता, रेत घड़ी एवं चुंबकीय दिशा सूचक कंपास या यंत्र, सूखे खाद्य पदार्थ, पानी फिल्टर मशीन आदि ऐसी हजारों वस्तुएं हैं, जो हमारे जीवन में काम आती हैं या अचानक आ सकती हैं।
1. प्रतिपदा को कुष्माण्ड (कुम्हड़ा पेठा) न खाएं, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है।
2. द्वितीया को छोटा बैंगन व कटहल खाना निषेध है।
3. तृतीया को परमल खाना निषेध है, क्योंकि यह शत्रुओं की वृद्धि करता है।
4. चतुर्थी के दिन मूली खाना निषेध है, इससे धन का नाश होता है।
5. पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है अत: पंचमी को बेल खाना निषेध है।
6. षष्ठी के दिन नीम की पत्ती खाना एवं दातुन करना निषेध है, क्योंकि इसके सेवन से एवं दातुन करने से नीच योनि प्राप्त होती है।
7. सप्तमी के दिन ताड़ का फल खाना निषेध है। इसको इस दिन खाने से रोग होता है।
8. अष्टमी के दिन नारियल खाना निषेध है, क्योंकि इसके खाने से बुद्धि का नाश होता है।
9. नवमी के दिन लौकी खाना निषेध है, क्योंकि इस दिन लौकी का सेवन गौ-मांस के समान है।
10. दशमी को कलंबी खाना निषेध है।
11. एकादशी को सेम फली खाना निषेध है।
12. द्वादशी को (पोई) पुतिका खाना निषेध है।
13. तेरस (त्रयोदशी) को बैंगन खाना निषेध है।
14. अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी और अष्टमी, रविवार श्राद्ध एवं व्रत के दिन स्त्री सहवास तथा तिल का तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना निषेध है।
15. रविवार के दिन अदरक भी नहीं खाना चाहिए।
16. कार्तिक मास में बैंगन और माघ मास में मूली का त्याग करना चाहिए।
17. अंजुली से या खड़े होकर जल नहीं पीना चाहिए।
18. जो भोजन लड़ाई-झगड़ा करके बनाया गया हो, जिस भोजन को किसी ने लांघा हो तो वह भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह राक्षस भोजन होता है।
19. जिन्हें लक्ष्मी प्राप्त करने की लालसा हो उन्हें रात में दही और सत्तू नहीं खाना चाहिए, यह नरक की प्राप्ति कराता है।
स्थानीय और परंपरागत ज्ञान : स्थानीय ज्ञान का अर्थ आपके आसपास का लोक ज्ञान जैसे स्थानीय भाषाएं, कहावतें, पूर्वजों की बातें, कहानी-किस्से, लोक कथाएं, लोक गीत, जनश्रुतियां आदि। यदि आप पुराण पढ़ेंगे तो उसमें भी इस तरह की बहुत सी बातें मिल जाएगी।
परंपरागत ज्ञान का अर्थ जैसे आप जंगल में हैं और अंधेरा होने वाला है और आग जलाने का कोई साधन नहीं है, लेकिन आपको यह ज्ञान है कि 'चकमक पत्थर' से आग जलाई जा सकती है तो आप आग जला लेंगे। इसी तरह के कई परंपरागत ज्ञान होते हैं जिसका उपयोग प्राचीनकाल के लोग करते थे। आधुनिककाल में मनुष्य वह ज्ञान खो बैठा है।
गांव के लोग आज भी अपने परंपरागत ज्ञान के आधार पर यह जान लेते हैं कि बारिश कब होगी, तूफान आ सकता है या नहीं। इसके अलावा वे बगैर घड़ी के समय बता देते हैं, जंगल में भटकने के बाद दिशा जान लेते हैं, कई किलोमीटर दूर से ही देखकर नदी के होने का अनुमान लगा लेते हैं और पशु-पक्षियों में हलचल जानकर शेर या सांप के होने का अनुमान लगा लेते हैं। इसके अलावा किसी व्यक्ति का परंपरागत तरीके से बुखार, जहर, पीलिया आदि उतार देते हैं। ऐसी हजारों बाते हैं जो परंपरागत ज्ञान के अंतर्गत आती हैं। इस संबंध में किताबें भी मिलती हैं।
छात्र कितना ही खराब या अच्छा हो, लेकिन उसे ये बातें पसंद नहीं आती हैं- सीखना, पढ़ना, परीक्षा, डांटना और दंड। उसे पसंद हैं, उसकी प्रशंसा, कैंपस में भाषण देना, समय बिताना, गाने गाना, सिगरेट पीना, इश्क लड़ाना, वल्गर बातें करना और राजनीतिक आंदोलनों में भाग लेना। न मालूम हम कब थोक में वैज्ञानिक पैदा करने लगेंगे। अभी तो थोक में कट्टरपंथी और नेता पैदा हो रहे हैं।
योग : आपने तैरने के संबंध में कई ग्रंथ पढ़े होंगे, लेकिन यदि आपको तैरना नहीं आता है तो सब व्यर्थ है। योग करने वाला ही जानता है कि आखिर योग क्यों जरूरी है। जैसे तैरने वाला ही जानता ही कि तैरना कितना आनंददायक और जरूरी है। इसी तरह यह अनुभव से जाना गया है कि यदि आपको योग के आसान और योग संबंधी जानकारी नहीं है तो सारी पढ़ाई व्यर्थ है।
संपूर्ण जीवन ही एक योग है। इसीलिए योग से नाता जोड़ना जरूरी है। योग बिना सब व्यर्थ है। योग के यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि के अलावा क्रिया, बंध, मुद्रा आदि के बारे में भी विस्तार से पढ़ें और उसमें से किसी भी एक नियम को अपना लेने से भी जीविन में बहुत लाभ मिलेगा। यदि आपके पास आसन करने का समय नहीं है तो यम और नियमों का पालन भी कर सकते हैं।
ज्योतिष और वास्तु : ज्योतिष और वास्तु का ज्ञान रखना बहुत कठिन है। इस विद्या को समझना भी बहुत ही कठिन है। हालांकि इसका हल्का फुल्का ज्ञान रखना जरूरी है। जैसे हिन्दू माह, तिथि, नक्षत्र, चंद्रमास, सौरमास, नक्षत्रमास और ग्रह नक्षत्रों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जानकारी हासिल करना।
ज्योतिष और वास्तु में विश्वास रखकर इसकी थोड़ी बहुत जानकारी रखते हुए आप अपना जीवन इसके अनुसार सुखी बना सकते हैं। जिस तरह चंद्रमा के प्रभाव से समुद्र में ज्वारभाटा उत्पन्न होता है और जिस तरह मंगल के प्रभाव से समुद्र में मूंगा उत्पन्न होता है उसी तरह हमारे शरीर पर भी ग्रहों का प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव से बचने के लिए घर का उचित वास्तु होना चाहिए और दूसरी बात यह कि नक्षत्रों के अनुसार ही उचित खानपान होना चाहिए।
दस पुण्य कर्म-
1.धृति- हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखना।
2.क्षमा- बदला न लेना, क्रोध का कारण होने पर भी क्रोध न करना।
3.दम- उद्दंड न होना।
4.अस्तेय- दूसरे की वस्तु हथियाने का विचार न करना।
5.शौच- आहार की शुद्धता। शरीर की शुद्धता।
6.इंद्रिय निग्रह- इंद्रियों को विषयों (कामनाओं) में लिप्त न होने देना।
7.धी- किसी बात को भलीभांति समझना।
8.विद्या- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान।
9.सत्य- झूठ और अहितकारी वचन न बोलना।
10.अक्रोध- क्षमा के बाद भी कोई अपमान करें तो भी क्रोध न करना।
दस पाप कर्म: -
1. दूसरों का धन हड़पने की इच्छा।
2. निषिद्ध कर्म (मन जिन्हें करने से मना करें) करने का प्रयास।
3. देह को ही सब कुछ मानना।
4. कठोर वचन बोलना।
5. झूठ बोलना।
6. निंदा करना।
7. बकवास (बिना कारण बोलते रहना)।
8. चोरी करना।
9. तन, मन, कर्म से किसी को दु:ख देना।
10. पर-स्त्री या पर-पुरुष से संबंध बनाना।
कुछ खास दिन : आप इसे मानें या न मानें। मान्यता अनुसार कुछ खास दिनों में कुछ खास कार्य करने से बचना चाहिए। ये कुछ खास दिन यहां प्रस्तुत हैं। जानकार लोग तो यह कहते हैं कि तेरस, चौदस, पूर्णिमा, अमावस्या और प्रतिपदा उक्त 5 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है, क्योंकि इन दिनों में देव और असुर सक्रिय रहते हैं।
*चन्द्रमा की सोलह कला : अमृत, मनदा, पुष्प, पुष्टि, तुष्टि, ध्रुति, शाशनी, चंद्रिका, कांति, ज्योत्सना, श्री, प्रीति, अंगदा, पूर्ण और पूर्णामृत। इसी को प्रतिपदा, दूज, एकादशी, पूर्णिमा आदि भी कहा जाता है। प्रत्येक कला आपके जीवन पर भिन्न प्रकार का प्रभाव डालती है। अब तो यह विज्ञान से भी सिद्ध हो चुका है।
अमावस्या : अमावस्या को हो सके तो यात्रा टालना चाहिए। किसी भी प्रकार का व्यसन नहीं करना चाहिए। इस दिन राक्षसी प्रवृत्ति की आत्माएं सक्रिय रहती हैं। यह प्रेत और पितरों का दिन माना गया है। इस दिन बुरी आत्माएं भी सक्रिय रहती हैं, जो आपको किसी भी प्रकार से जाने-अनजाने नुकसान पहुंचा सकती है। इस दिन शराब, मांस, संभोग आदि कार्य से दूर रहें।
पूर्णिमा : पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम ही आती है। कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या या हत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं इसलिए पूर्णिमा की रात में चांद की रोशनी स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होती है। पूर्णिमा की रात में कुछ देर चांदनी में बैठने से मन को शांति मिलती है। कुछ देर चांद को देखने से आंखों को ठंडक मिलती है और साथ ही रोशनी भी बढ़ती है। इस दिन शराब, मांस, संभोग आदि कार्य से दूर रहें।
उपाय : अमावस्या या पूर्णिमा के दिन नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं फिर एक मिट्टी का दीपक हनुमानजी के मंदिर में जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। अमावस्या पर इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इस दिन तुलसी के पत्ते या बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए।
राहुकाल : जब कोई कार्य पूर्ण मेहनत किए जाने के बाद भी असफल हो जाए या उस कार्य के विपरीत परिणाम जाए, तो समझ लीजिए आपका कार्य शुभ मुहूर्त में नहीं हुआ बल्कि राहुकाल में हुआ है। राहुकाल में शुभ कार्य करना वर्जित है।
क्या होता राहुकाल? : राहुकाल कभी सुबह, कभी दोपहर तो कभी शाम के समय आता है, लेकिन सूर्यास्त से पूर्व ही पड़ता है। राहुकाल की अवधि दिन (सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय) के 8वें भाग के बराबर होती है यानी राहुकाल का समय डेढ़ घंटा होता है। राहुकाल को छायाग्रह का काल कहते हैं। उक्त डेढ़ घंटा कोई कार्य न करें या किसी यात्रा को टाल दें।
कब होता है राहुकाल-
* रविवार को शाम 4.30 से 6.00 बजे तक राहुकाल होता है।
* सोमवार को दिन का दूसरा भाग यानी सुबह 7.30 से 9 बजे तक राहुकाल होता है।
* मंगलवार को दोपहर 3.00 से 4.30 बजे तक राहुकाल होता है।
* बुधवार को दोपहर 12.00 से 1.30 बजे तक राहुकाल माना गया है।
* गुरुवार को दोपहर 1.30 से 3.00 बजे तक का समय यानी दिन का छठा भाग राहुकाल होता है।
* शुक्रवार को दिन का चौथा भाग राहुकाल होता है यानी सुबह 10.30 बजे से 12 बजे तक का समय राहुकाल है।
* शनिवार को सुबह 9 बजे से 10.30 बजे तक के समय को राहुकाल माना गया है।
दिशाशूल मूलत: किसी दिशा विशेष में दिन विशेष पर की जाने वाली यात्रा से संबंधित है। अगर किसी कारणवश उक्त दिशा में यात्रा करनी भी पड़े तो उसके निवारण के कुछ आसान से उपाय होते हैं जिन्हें जानकर यात्रा को निर्विघ्न बानाया जा सकता है।
किस दिशा में होता कब दिशाशूल:-
1. सोमवार और शुक्रवार को पूर्व
2. रविवार और शुक्रवार को पश्चिम
3. मंगलवार और बुधवार को उत्तर
4. गुरुवार को दक्षिण
5. सोमवार और गुरुवार को दक्षिण-पूर्व
6. रविवार और शुक्रवार को दक्षिण-पश्चिम
7. मंगलवार को उत्तर-पश्चिम
8. बुधवार और शनिवार को उत्तर-पूर्व
उपाय :
1. रविवार:- दलिया और घी खाकर
2. सोमवार:- दर्पण देखकर
3. मंगलवार:- गुड़ खाकर
4. बुधवार:- तिल, धनिया खाकर
5. गुरुवार:- दही खाकर
6. शुक्रवार:- जौ खाकर
7. शनिवार:- अदरक अथवा उड़द की दाल खाकर
नृत्य, संगीत और गान : भारतीय परंपरागत गीत और नृत्य को कौन जानता है आजकर। हालांकि डांस तो सभी करते हैं लेकिन बहुत कम लोगों को आता है। इसी तरह संगीत सिखना चाहिए। थोड़ा बहुत गीत गाना भी आना चाहिए। सामवेद में संगीत के बारे में विस्तार से मिलता है। भारतीरय संगीत को यदि आप सीख नहीं सकते तो कम से कम उसे सुनने और समझने की क्षमता का विकास तो कर ही सकते हो।
दरअसल, हमारे जीवन में नृत्य, संगीत और गान नहीं है तो जीवन रेगिस्तान की तरहा है। नृत्य, संगीत और गान आपके जीवन को खुशहाल और सुंदर बनाता है। इससे जीवन में उत्साह और उमंग का विकास होता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि आप कभी भी सेड सांग या दुखभरे संगीत और गीत को न सुने उससे दूर ही रहें अन्यथा आपका अच्छा भला जीव भी बोझ बन जाएगा। संगीत की ताकत को समझे।
हिन्दू धर्म गीत और संगीत के महत्व को समझता है तभी तो उसके संपूर्ण त्योहार उत्साह, गीत, संगीत और नृत्य से जुड़े हुए हैं। यदि आप इसमें फूहड़ता को जोड़ते हैं तो आप संस्कृति और त्योहार को खराब करने के दोषी होते हैं।