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अमृततुल्य है ये 13 तरह के चमत्कारिक रस...

हमें फॉलो करें अमृततुल्य है ये 13 तरह के चमत्कारिक रस...
संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
हिन्दू धर्म के एकमात्र धर्मग्रंथ वेद में रस को ब्रह्म कहा गया है। अन्न से बढ़कर है रस। प्राचीनकाल के अधिकतर ऋषि-मुनि रस पीकर ही जीवन-यापन करते थे। वे किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण नहीं करते थे। हिमालय के जंगलों में कई तरह के ऐसे फल और कंद पाए जाते हैं जिनका रस पीकर आप कई दिनों तक भूख और प्यास मिटाकर तपस्या कर सकते हैं।
हम आपको बताना चाहते हैं कि वर्तमान में ऐसे कौन-से 13 तरह के रस हैं जिन्हें पीकर आप हमेशा सेहतमंद बने रह सकते हैं और यदि किसी प्रकार का रोग है तो उसे भी दूर कर सकते हैं। हम आपको‍ जिन रसों के बारे में बताने जा रहे हैं, वे सचमुच ही चमत्कारिक रूप से असरकारक हैं। अंत में हम बताएंगे एक ऐसे रस का नाम, जो बहुत ही चमत्कारिक है और जो अब कम ही पाया जाता है। हालांकि आप वह रस पीना चाहते हैं तो थोड़ी मुश्किल से मिल भी जाएगा।
 
हम आपको अदरक, लहसुन, करेला, लौकी, घीया, टमाटर, चुकंदर, पपीता, खीरा, पालक, पाइनएपल, कद्दू, केला, गाजर, अंगूर, पोदीना, चेरी, अनानास, सेब, मूली, जामुन, ना‍रियल, तरबूज आदि के रस के बारे में नहीं बता रहे हैं। हालांकि आप इनका भी सेवन समय-समय पर करते रहेंगे तो लाभ मिलेगा।
 
आप अपने घर में उक्त और निम्न सभी तरह के रस रखेंगे तो जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार का कोई रोग और शोक नहीं होगा। बताए जा रहे रस का सेवन समय-समय पर करें, लेकिन ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार की अति न करें।
 
अगले पन्ने पर पहला अमृततुल्य रस...
 

चरणामृत : 'चरणामृत' का अर्थ होता है 'भगवान के चरणों का अमृत'। यह अमृततुल्य है। इसका प्रतिदिन सेवन करने से किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता। एक शोधानुसार तुलसी का सेवन या उसके रस का सेवन करने से कैंसर दूर हो जाता है। इसे तो आप प्रतिदिन पी सकते हैं।
 
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तुलसी सर्वरोगनाशक है। यह संसार की एक बेहतरीन एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-एजिंग, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-सेप्टिक, एंटी-वायरल, एंटी-फ्लू, एंटी-बायोटिक, एंटी-इंफ्लामेटरी व एंटी-डिसीज है। तुलसी मुख्य रूप से 5 प्रकार की पाई जाती हैं- श्याम तुलसी, राम तुलसी, श्वेत सुरक्षा, वन तुलसी एवं नींबू तुलसी।
 
कैसे बनता है चरणामृत : तांबे के बर्तन में चरणामृतरूपी जल रखने से उसमें तांबे के औषधीय गुण आ जाते हैं। चरणामृत में तुलसी पत्ता, तिल और दूसरे औषधीय तत्व मिले होते हैं। मंदिर या घर में हमेशा तांबे के लोटे में तुलसी मिला जल रखा ही रहता है। 
 
चरणामृत लेने के नियम : चरणामृत ग्रहण करने के बाद बहुत से लोग सिर पर हाथ फेरते हैं, लेकिन शास्त्रीय मत है कि ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे नकारात्मक प्रभाव बढ़ता है। चरणामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए और श्रद्घाभक्तिपूर्वक मन को शांत रखकर ग्रहण करना चाहिए। इससे चरणामृत अधिक लाभप्रद होता है।
 
चरणामृत का लाभ : आयुर्वेद की दृष्टि से चरणामृत स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार तांबे में अनेक रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। यह पौरूष शक्ति को बढ़ाने में भी गुणकारी माना जाता है। तुलसी के रस से कई रोग दूर हो जाते हैं और इसका जल मस्तिष्क को शांति और निश्चिंतता प्रदान करता हैं। स्वास्थ्य लाभ के साथ ही साथ चरणामृत बुद्घि, स्मरण शक्ति को बढ़ाने भी कारगर होता है।
 
अगले पन्ने पर दूसरा अमृततुल्य रस...
 

पंचामृत : 'पंचामृत' का अर्थ है 'पांच अमृत'। दूध, दही, घी, शहद और शकर को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है। इसी से भगवान का अभिषेक किया जाता है। पांचों प्रकार के मिश्रण से बनने वाला पंचामृत कई रोगों में लाभदायक और मन को शांति प्रदान करने वाला होता है।
 
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पंचामृत के लाभ : पंचामृत का सेवन करने से शरीर पुष्ट और रोगमुक्त रहता है। पंचामृत से जिस तरह हम भगवान को स्नान कराते हैं, ऐसा ही खुद स्नान करने से शरीर की कांति बढ़ती है। पंचामृत उतनी मात्रा में सेवन करना चाहिए जित‍नी मात्रा में कि किया जाता है, उससे ज्यादा नहीं।
 
अगले पन्ने पर तीसरा अमृततुल्य रस...
 
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नींबू रस : सप्ताह में दो बार नींबू का रस पीना सबसे उत्तम माना गया है। इससे सभी तरह के विजातीय पदार्थ शरीर के बाहर निकल जाते हैं। यह आंतों को अच्छे तरीके से साफ तो करता ही है, साथ ही यह किडनी को भी सेहतमंद बनाए रखने में मददगार सिद्ध हुआ है।
 
नींबू का अनोखा गुण यह है कि इसकी खट्टी खुशबू खाने से पहले ही मुंह में पानी ला देती है। नींबू सैकड़ों तरह के रोगों में लाभदायक सिद्ध हुआ है। इसका सेवन करते रहने से हर तरह के रोगों का निदान हो जाता है। 
 
अगले पन्ने पर चौथा अमृततुल्य रस...
 

नीम रस : नीम का पेड़ दो तरह का होता है, पहला कड़वा नीम और दूसरा मीठा नीम। ये दोनों ही अपने गुणों के कारण चिकित्सा जगत में अहम स्थान रखते हैं। नीम के पंचांग जड़, छाल, टहनियां, फूल, पत्ते और निंबोली सभी उपयोगी हैं। इन्हीं कारणों से पुराणों में नीम को अमृत के समान माना गया है।
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नीम के लाभ : सप्ताह में एक या दो बार नीम के रस का सेवन करने से किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता। नीम के पत्ते चबाने से मुंह, दांत और आंत के रोग तो दूर होते ही हैं, साथ ही इसके रस से रक्त भी साफ रहता है। मीठी नीम का पत्ता तो खाने में स्वाद बढ़ाने में ही लाभदायक नहीं होता बल्कि यह कई तरह के औषधीय गुणों से परिपूर्ण है।
 
नीम रक्त साफ करता है। दाद, खाज, सफेद दाग और ब्लडप्रेशर में नीम की पत्ती का रस लेना लाभदायक है। नीम कीड़ों को मारता है इसलिए इसकी पत्ती को कपड़ों और अनाजों में रखा जाता है। नीम की 10 पत्तियां रोजाना खाएं, कभी भी जीवन में रक्तदोष नहीं होगा। साथ ही यदि इसका असर बढ़ जाएगा तो सांप का काटा भी असर नहीं होगा।
 
अगले पन्ने पर पांचवां अमृततुल्य रस...
 

आंवला रस : आंवले के रस से हमारे शरीर में पनप रहीं सभी तरह की बीमारियों का नाश हो सकता है। आंवले में आयरन और विटामिन सी भरा पड़ा होता है। हर इंसान को प्रतिदिन 50 मिलीग्राम विटामिन-सी की जरूरत होती है तो ऐसे में यदि आप आंवले का सेवन या फिर इसके रस का सेवन करेंगे तो आपके शरीर में विटामिन सी की पूर्ति होगी।
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आंवले का ज्यूस रोजाना लेने से पाचन दुरुस्त, त्वचा में चमक, त्वचा के रोगों में लाभ, बालों की चमक बढ़ाने, बालों को सफेद होने से रोकने के अलावा और भी बहुत सारे फायदे हैं। आंवला दांतों और मसूड़ों को स्वस्थ और मजबूत बनाता है। हृदय की बेचैनी, मोटापा, जिगर, धड़कन, ब्लडप्रेशर, प्रदर, गर्भाशय दुर्बलता, नपुंसकता, चर्मरोग, मूत्र रोग एवं हड्डियों आदि के रोग को दूर करने में आंवले का रस सक्षम है।
 
अगले पन्ने पर छठा अमृततुल्य रस...
 
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ग्वारपाठा रस : इसे अंग्रेजी में एलोवेरा और आयुर्वेद में घीग्वार या घृत कुमारी कहते हैं। दुनिया में 200 से अधिक प्रकार की किस्मों का एलोवेरा पाया जाता है। इसके पत्ते के गूदा का रस बनाया जाता है। इसके रस में 18 अमीनो एसिड, 12 विटामिन और 20 खनिज पाए जाते हैं।
 
पाचन संस्थान विशेष रूप से लिवर या जिगर संबंधी कमजोरी और व्याधियों को ठीक करने के अलावा चर्म रोगों व जलने एवं झुलसने के कारण त्वचा की खराबी को दूर करने तथा सौंदर्य प्रसाधनों में भी उपयोगी माना गया है। त्वचा, बाल, आंख, कान, नाक, कब्ज, बवासीर, गुर्दे आदि सभी अंगों से संबंधित रोग में ग्वाररपाठा लाभदायक सिद्ध हुआ है।
 
अगले पन्ने पर सातवां अमृततुल्य रस...
 

जवारे का रस : गेहूं के जवारे को अनेक वैद्यों ने संजीवनी बूटी कहा है। गेहूं के जवारों में अनेक अनमोल पोषक तत्व व रोग निवारक गुण पाए जाते हैं। जवारों में सबसे प्रमुख तत्व क्लोरोफिल पाया जाता है। क्लोरोफिल को केंद्रित सूर्य शक्ति कहा गया है। 
 
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गेहूं के जवारे रक्त व रक्त संचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, उच्च रक्तचाप, सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, स्थायी सर्दी, साइनस, पाचन संबंधी रोग, पेट में छाले, कैंसर, आंतों की सूजन, दांत संबंधी समस्याओं, दांत का हिलना, मसूड़ों से खून आना, चर्म रोग, एक्जिमा, किडनी संबंधी रोग, सेक्स संबंधी रोग, शीघ्रपतन, कान के रोग, थायराइड ग्रंथि के रोग व अनेक ऐसे रोग जिनसे रोगी निराश हो गया, उनके लिए गेहूं के जवारे अनमोल औषधि हैं। इसलिए कोई भी रोग हो, तो वर्तमान में चल रही चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ इसका प्रयोग कर आशातीत लाभ प्राप्त किया जा सकता है। 
 
अगले पन्ने पर आठवां अमृततुल्य रस...
 
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गिलोय रस : गिलोय के रस को बड़े रोगों की रामबाण दवा माना जाता है। आयुर्वेद में इसे कई नामों से जाना जाता है जैसे अमृता, अमरबेल, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी आदि। आयुर्वेद के अनुसार यह हर तरह के बुखार की महान औषधि है। गिलोय की लता जंगलों, पहाड़ों और घने पेड़ों पर पाई जाती है। पहले ये बहुतायत में होती थीं, लेकिन अब इसे ढूंढना पड़ता है।
 
गिलोय उल्टी, दस्त, हर तरह के बुखार, खांसी, संक्रमण, पीलिया, धातु विकार, कृमि रोग, कब्ज, चर्मरोग, झुर्रियां, गैस आदि रोगों में लाभदायक है। एक से डेढ़ माह में इसके रस का सेवन करने से उपरोक्त रोगों से बचा जा सकता है। 
 
अगले पन्ने पर नौवां अमृततुल्य रस...
 
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अनार का रस : अनार का रस भी अमृततुल्य है। यह जहां खून बढ़ाने में सहायक है वहीं यह यौन इच्छा में भी बढ़ोतरी करता है। इसके पत्ते, जड़ की छाल, फल, छिल्का तथा कली अनेक रोगों में औषधि का काम करते हैं।
 
अनार रस के लाभ : प्लीहा और यकृत की कमजोरी तथा पेटदर्द अनार खाने से ठीक हो जाते हैं। अनार कब्ज दूर करता है, मीठा होने पर पाचन शक्ति बढ़ाता है। इसका शर्बत एसिडिटी को दूर करता है। ताजा शोधानुसार 1 गिलास अनार का रस कम से कम 15 दिन पीने से सेक्स की इच्छा प्रबल हो जाती है।
 
अनार के रस से गुर्दे की बीमारी भी दूर हो जाती है। अनार में मौजूद एंटीआक्सीडेंट न केवल डायलिसिस के रोगियों के लिए लाभप्रद हो सकते हैं बल्कि संक्रमण और दिल की बीमारियों से होने वाली मृत्यु की दरों में भी कटौती कर सकते हैं।
 
अनार रस और मूली का रस समान मात्रा में लेकर उसमें अजवाइन, सेंधा नमक चुटकी भर मिलाकर सेवन करने से अम्लपित्त बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है। एनीमिया शीघ्र दूर करने के लिए अनार का रस और मूली का रस समान मात्रा में मिलाकर पीएं। 
 
अगले पन्ने पर दसवां अमृततुल्य रस...
 

संतरे और मौसंबी का रस : संतरा बहुतायत में पाया जाता है। सभी लोग इसका रस पीते हैं, लेकिन वे सभी पानी मिला या बरफ मिला हुआ पीते हैं जिसका कोई लाभ नहीं। ताजा और सिर्फ संतरे का एक गिलास रस तन-मन को शीतलता प्रदान कर थकान एवं तनाव दूर करता है, हृदय तथा मस्तिष्क को नई शक्ति व ताजगी से भर देता है।
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संतरे रस के लाभ : संतरे के कई औषधीय प्रयोग हैं। इसका छिल्का, गूदा, रस और बीज सभी किसी न किसी रोग में काम आते हैं। संतरे का नियमित सेवन करने से बवासीर की बीमारी में लाभ मिलता है। रक्तस्राव को रोकने की इसमें अद्भुत क्षमता है। तेज बुखार में संतरे के रस का सेवन करने से तापमान कम हो जाता है। इसमें उपस्थित साइट्रिक अम्ल मूत्र रोगों और गुर्दा रोगों को दूर करता है। पेट में गैस, अपच, जोड़ों का दर्द, उच्च रक्तचाप, गठिया, बेरी-बेरी रोग में भी संतरे का सेवन बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है। 
 
गर्भवती महिलाओं तथा यकृत रोग से ग्रसित महिलाओं के लिए संतरे का रस बहुत लाभकारी होता है। इसके सेवन से जहां प्रसव के समय होने वाली परेशानियों से मुक्ति मिलती है, वहीं प्रसव पीड़ा भी कम होती है। बच्चा स्वस्थ व हृष्ट-पुष्ट पैदा होता है।
 
अगले पन्ने पर ग्यारहवां अमृततुल्य रस...
 

गन्ने का रस : गन्ने का रस तो गर्मी लगते ही बाजार में बिकने लगता है लेकिन उसमें बरफ का पानी और मसाला मिला दिया जाता है, जो कि हानिकारक होता है। उसमें पोदीना मिला सकते हैं। गन्ने का रस हमेशा ताजा व छना हुआ ही पीना चाहिए। ठेले पर बेचे जा रहे गन्ने के रस से आप बीमार भी हो सकते हैं।
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आयरन व कार्बोहाइड्रेट की प्रचुर मात्रा होने के कारण गन्ने का रस तुरंत शक्ति व स्फूर्ति प्रदान करता है। इसमें ढेर सारे खनिज तत्व व ऑर्गेनिक एसिड होने के कारण इसका औषधीय महत्व भी है। गन्ने के रस में कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन, मैग्नीशियम और फॉस्फोरस जैसे आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो हमारे शरीर के दैनिक क्रियाकलापों के लिए आवश्यक हैं।
 
पीलिया रोग में गन्ने का रस लाभदायक है। गन्ने का रस पेट, दिल, दिमाग, गुर्दे व आंखों के लिए विशेष लाभदायक है। 
 
अगले पन्ने पर बारहवां अमृततुल्य रस...
 

मशरूम का रस : क्या मशरूम को ही सोमरस कहते थे? हालांकि हम यहां सोमरस के बारे में नहीं बता रहे हैं। सोमरस के बारे में जानने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें।
 
सोमरस के फायदे और यह कहां मिलेगा आगे क्लिक करें... सोमरस एक चमत्कारिक औषधि
 
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सोमरस देवताओं के लिए समर्पण का मुख्य पदार्थ था और अनेक यज्ञों में इसका बहुविध उपयोग होता था। सबसे अधिक सोमरस पीने वाले इंद्र और वायु हैं। पूषा आदि को भी यदा-कदा सोम अर्पित किया जाता है।
 
प्राचीन भारतीय साहित्य में देवताओं का पसंदीदा पेय 'सोमरस' क्या मशरूम का रस था। एक यूरोपीय शोधकर्ता की मानें तो यही सच है। गार्डन वास्सन ने वेदों पर शोध के बाद लिखा है कि सोमरस में सोम और कुछ नहीं, बल्कि खास मशरूम था।
 
'सोम डिवाइन मशरूम ऑफ इमार्टेलिटी' नामक पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि सोम एक मशरूम था जिसे लगभग 4000 वर्ष पहले यानी 2000 ईसा पूर्व उन लोगों द्वारा धार्मिक कर्मकांडों में प्रयोग में लाया जाता था, जो खुद को आर्य कहते थे। वास्सन का निष्कर्ष है कि इस मशरूम में पाया जाने वाला हेलिसोजेनिक तत्व मस्तिष्क के न्यूरॉन्स में उल्लिखित परमोल्लास का कारक था।
 
महाराष्ट्र के अमरावती विश्वविद्यालय में जैव प्रौद्योगिकी विषय की शोधकर्ता अल्का करवा ने कहा कि मशरूम का सेवन स्वास्थ्य के लिए बड़ा गुणकारी है। इसमें अद्भुत चिकित्सकीय गुण मौजूद हैं। यह एड्स, कैंसर, रक्तचाप और हृदयरोग जैसी गंभीर बीमारियों में काफी लाभदायी है, क्योंकि यह रोगी की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है। इसी कारण से इसे अंग्रेजी में 'एम्यूनो बूस्टर' भी कहा जाता है। 
 
करवा जैसे कुछ मशरूम विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और चीन जैसे कुछ देशों में इसका सेवन अच्छे स्वास्थ्य, अच्छे सौभाग्य और अमरत्व का प्रतीक माना जाता रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों का यह विश्वास इस बात पर आधारित है कि मशरूम का सेवन शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने वाला तथा लंबी उम्र प्रदान करने वाला माना जाता रहा है।
 
मशरूम में विटामिन ए, डी, के, ई और बी कॉम्प्लेक्स के सारे विटामिन पाए जाते हैं। भारतीय भोजन में दो अनिवार्य एमिनो एसिड का अभाव है, जबकि मशरूम लाइसिन और ट्रायप्टोफैन जैसे दो एमिनो एसिड के मामले में काफी समृद्ध है। इन सबके अलावा मशरूम में पोटैशियम, सोडियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम और कुछ लौहतत्व जैसे खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में हैं।

अगले पन्ने पर तेरहवां अमृततुल्य रस...
 

नीरा : 'नीरा' का अर्थ होता है 'शुद्ध और पवित्र'। नीरा का रस मधुर, सीपी-सा सफेद और पारदर्शी होता है। शुद्ध और ताजा नीरा कई प्रकार के रोग में लाभदाय सिद्ध हुआ है। व्यवस्था के अभाव में तो फिलहाल यह शहरों तक पहुंच नहीं बना पाता है, लेकिन वर्षों पहले खादी भंडार के माध्यम से यह जनसामान्य को उपलब्ध हो जाता था। अब इसे बंद कर दिया गया। वनवासी क्षेत्रों में यह बहुतायत में पाया जाता है।

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नीरा को ताड़ और नारियल के वृक्ष से प्राप्त किया जाता है। ताड़ के वृक्ष से प्राप्त नीरा जब तक यह ताजा रहता है तब तक यह नीरा रहता है, लेकिन जैसे ही यह सड़ता है यह ताड़ी बन जाता है। नीरा को नारियल के पेड़ से भी प्राप्त किया जाता है। नारियल पेड़ के फूलों के गुच्छे से जो रस निकलता है वही नीरा है। यह अत्यंत पौष्टिक व स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। शोधानुसार यह 100 से भी अधिक बीमारियों को रोकने में सहायक सिद्ध हुआ है।
 
बाजार में मिलने वाली शक्तिवर्द्धक औषधियों व टॉनिक से भी ज्यादा यह प्रभावकारी प्रतीत होता है। धारोष्ण दुग्ध का जैसा महत्व है, वैसे ही नीरा सोमरस को प्रात:काल में लेना महत्वपूर्ण है। यह शकर निहित रस, स्वादिष्ट स्वास्थ्य पेय है तथा शर्कराएं, खनिज, धातुओं एवं विटामिनों का समृद्ध स्रोत है।

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