मूषक शब्द संस्कृत के मूष से बना है जिसका अर्थ है लूटना या चुराना। सांकेतिक रूप से मनुष्य का दिमाग मूषक, चुराने वाले यानी चूहे जैसा ही होता है। यह स्वार्थ भाव से गिरा होता है। गणेशजी का चूहे पर बैठना इस बात का संकेत है कि उन्होंने स्वार्थ पर विजय पाई है और जनकल्याण के भाव को अपने भीतर जागृत किया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि मनुष्य और चूहे के मस्तिष्क का आकार-प्रकार एक समान है। चूहे का किसी न किसी रूप में मनुष्य से कोई सबंध जरूर है उसी तरह जिस तरह की चूहे और हाथी का संबंध गहरा है।
शिवपुत्र गणेशजी का वाहन है मूषक। हालांकि गणेश पुराण अनुसार हर युग में गणेशजी का वाहन बदलता रहता है। सतयुग में गणेशजी का वाहन सिंह है। त्रेता युग में गणेशजी का वाहन मयूर है, द्वापर में उनका वाहन मूषक है और वर्तमान युग यानी कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है। मूषक को भगवान श्री गणेश द्वारा अपना वाहन बनाने के संबंध में कई कथाएं प्रचलन में है।
गणेश पुराण की एक कथा के अनुसार गणेशची का वाहन चूहा पूर्वजन्म में एक गंधर्व था जिसका नाम क्रोंच था। एक बार देवराज इंद्र की सभा में गलती से क्रोंच का पैर मुनि वामदेव के ऊपर पड़ गया। मुनि वामदेव को लगा की क्रोंच ने यह शरारत की है। इसलिए गुस्से में उन्होंने क्रोंच को चूहा बनने का शाप दे दिया। इस शाप के चलते वह चूहा बन गया लेकिन वह बहुत ही विशालकाय था। वह इतना विशालकाय था कि झाड़ पेड़ आदि जो भी उसके रास्ते में आता उसे वह नष्ट कर देता था। एक बार वह उत्पात मचाता हुआ महर्षि पराशर के आश्रम में पहुंच गया।
महर्षि पराशर के आश्रम में पहुंचकर वह बलवान मूषक उत्पात मचाने लगा। जिससे परेशान होकर महर्षि ने भगवान श्रीगणेश की स्तुति की। गणेशजी महर्षि की भक्ति से प्रसन्न हुए और उत्पाती मूषक को पकड़ने के लिए अपना पाश फेंका। पाश मूषक का पीछा करता हुआ पाताल लोक पहुंच गया और उसे बांधकर गणेशजी के सामने ले आया।
गणेशजी को सामने देखकर मूषक उनकी स्तुति करने लगा। गणेश जी ने कहा तुमने महर्षि पराशर को बहुत परेशान किया है लेकिन अब तुम मेरी शरण में हो इसलिए जो चाहो वरदान मांग लो। गणेश जी के ऐसे वचन सुनते ही मूषक अहंकारवश खुद ही गणेशजी से कहने लगा मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, अगर आपको मुझसे कुछ चाहिए तो मांग लीजिए। गणेश जी मुस्कुराए और मूषक से कहा कि अच्छा ठीक है तब फिर तुम मेरा वाहन बन जाओ। मूषक तो हतप्रभ रह गया।
अपने अभिमान के कारण मूषक गणेश जी का वाहन बन गया। लेकिन जैसे ही गणेश जी मूषक पर चढ़े गणेश जी के भार से वह दबने लगा। मूषक ने गणेश जी से कहा कि हे प्रभो मैं आपके वजन से दबा जा रहा हूं। अपने वाहन की विनती सुनकर गणेशजी ने अपना भार कम कर लिया। इसके बाद से मूषक गणेशजी का वाहन बनकर उनकी सेवा में लगा हुआ है।
दूसरी कथा अनुसार गजमुखासुर नामक एक असुर से गजानन का युद्ध हुआ। गजमुखासुर को यह वरदान प्राप्त था कि वह किसी अस्त्र से नहीं मर सकता। तब गणेशजी ने उसे अपने दांत से मारने का प्रयास किया जिससे वह घबरा गया और मूषक बनकर भागने लगा। गणेश जी ने मूषक बने गजमुखासुर को अपने पाश में बांध लिया। गजमुखासुर गणेश जी से क्षमा मांगने लगा। तब गणेशजी ने गजमुखासुर को अपना वाहन बनाकर जीवनदान दे दिया।