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ऐसा है यम का द्वार, देखिए...

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मार्कण्डेय पुराण अनुसार सूर्य पुत्र यमराज दक्षिण दिशा के दिक्पाल और मृत्यु का देवता माना जाता है। जिस तरह कुबेर की नगरी को अलकापुरी, इंद्र की नगरी को अमरावती, गंधर्वों की नगरी को गंधर्वपुरी के नाम से जाना जाता है उसी तरह यमराज की नगरी को 'यमपुरी' और राजमहल को 'कालीत्री' कहते हैं। 
यमपुरी या यमलोक का उल्लेख गरूड़ पुराण और कठोपनिषद ग्रंथ में मिलता है। पुराणों के अनुसार यमलोक एक लाख योजन क्षेत्र में फैला और इसके चार मुख्य द्वार हैं। यमलोक में आने के बाद आत्मा को चार प्रमुख द्वारों में से किसी एक में कर्मों के अनुसार प्रवेश मिलता है। दक्षिण द्वार को नरक का द्वार और पूर्व के द्वार को स्वर्ग का द्वार का जाता है। बाकी बचे दो द्वार सामान्य कर्मों पर निर्धारित आत्माओं के प्रवेश के लिए हैं। लेकिन हम यहां एक ऐसे यम द्वार की चर्चा कर रहे हैं जो तिब्बत में स्थित है।
 
प्राचीनकाल में तिब्बत को त्रिविष्टप कहते थे। यह अखंड भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। तिब्बत इस वक्त चीन के अधीन है। तिब्बत में दारचेन से 30 मिनट की दूरी पर है यह यम का द्वार। यह द्वार पवित्र कैलाश पर्वत के रास्ते में पड़ता है। इसकी परिक्रमा करने के बाद ही कैलाश यात्रा शुरू होती है। हिन्दू मान्यता के अनुसार इसे मृत्यु के देवता यमराज के घर का प्रवेश द्वार माना जाता है। तिब्बती लोग इसे चोरटेन कांग नग्यी के नाम से जानते हैं जिसका मतलब होता है- दो पैर वाले स्तूप।

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ऐसा कहा जाता है कि यहां रात में रुकने वाला जीवित नहीं रह पाता। ऐसी कई घटनाएं हो भी चुकी हैं, लेकिन इसके पीछे के कारणों का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। साथ ही यह मंदिरनुमा द्वार किसने और कब बनाया?  इसका कोई प्रमाण नहीं है। ढेरों शोध हुए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका। कहते हैं कि द्वार के इस ओर संसार है, तो उस पार मोक्षधाम। बौद्ध लामा लोग यहां आकर प्राणांत होने को मोक्ष-प्राप्ति मानते हैं इसलिए बीमार लामा अंतिम इच्छा के रूप में यहां जाते हैं और प्राण त्यागते हैं।
 
पुराणों के अनुसार यमराज का रंग हरा है और वे लाल वस्त्र पहनते हैं। यमराज भैंसे की सवारी करते हैं और उनके हाथ में गदा होती है। यमराज के मुंशी 'चित्रगुप्त' हैं जिनके माध्यम से वे सभी प्राणियों के कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। चित्रगुप्त की बही 'अग्रसन्धानी' में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब है। यमराज के सिंहासन का नाम 'विचार-भू' है।

महाण्ड और कालपुरुष इनके शरीर रक्षक और यमदूत इनके अनुचर हैं। वैध्यत यमराज का द्वारपाल है। चार आंखें तथा चौड़े नथुने वाले दो प्रचण्ड कुत्ते यम द्वार के संरक्षक हैं। स्मृतियों के अनुसार 14 यम माने गए हैं- यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुम्बर, दध्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त। 'स्कन्द पुराण' में कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को दीये जलाकर यम को प्रसन्न किया जाता है।

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