नवरात्रि में खासकर माता कात्यायिनी की पूजा होती है। छठ पर्व के दौरान भी माता कात्यायिनी की पूजा का विधान है। कात्यायिनी को माता दुर्गा का एक रूप माना जाता है। आओ जानते हैं माता कात्यायिनी के बारे में 7 खास बातें।
1. मां दुर्गा की छठी विभूति हैं मां कात्यायनी। शास्त्रों के मुताबिक जो भक्त दुर्गा मां की छठी विभूति कात्यायनी की आराधना करते हैं मां की कृपा उन पर सदैव बनी रहती है। शास्त्रों में माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है। इन्हें ही मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन होती है। षष्ठी देवी मां को ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहते हैं। छठी माता की पूजा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है।
2. उत्तरप्रदेश के मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे। इसकी शक्ति है उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं। यहीं पर आद्या कात्यायिनी मंदिर, शक्तिपीठ भी है जहां के बारे में कहा जाता है कि यहां पर माता के केश गिरे थे। वृन्दावन स्थित श्री कात्यायनी पीठ ज्ञात 51 पीठों में से एक अत्यन्त प्राचीन सिद्धपीठ है।
3. विजयादशमी का पर्व माता कात्यायिनी दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध करने के कारण मनाया जाता है जो कि श्रीराम के काल के पूर्व से ही प्रचलन में रहा है। इस दिन अस्त्र-शस्त्र और वाहन की पूजा की जाती है।
4. ऋषि कात्यायन की पुत्री ही कात्यायनी थीं। यह नवदुर्गा में से एक देवी कात्यायनी है। कात्यायन ऋषि को विश्वामित्रवंशीय कहा गया है। स्कंदपुराण के नागर खंड में कात्यायन को याज्ञवल्क्य का पुत्र बतलाया गया है। उन्होंने 'श्रौतसूत्र', 'गृह्यसूत्र' आदि की रचना की थी।
5. कहते हैं कि सिद्ध संत श्रीश्यामाचरण लाहिड़ीजी महाराज के शिष्य योगी 1008 श्रीयुत स्वामी केशवानन्द ब्रह्मचारी महाराज ने अपनी कठोर साधना द्वारा भगवती के प्रत्यक्ष आदेशानुसार इस लुप्त स्थान पर स्थिति इस श्रीकात्यायनी शक्तिपीठ जो राधाबाग, वृन्दावन नामक पावनतम पवित्र स्थान पर स्थित है का पुर्ननिर्माण कराया था।
6. मां कात्यायनी के मंत्र:
"कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी।
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।"
मंत्र - 'ॐ ह्रीं नम:।।'
चन्द्रहासोज्जवलकराशाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
मंत्र - ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
7. कात्यायिनी देवी की कथा :
रम्भासुर का पुत्र था महिषासुर, जो अत्यंत शक्तिशाली था। उसने कठिन तप किया था। ब्रह्माजी ने प्रकट होकर कहा- 'वत्स! एक मृत्यु को छोड़कर, सबकुछ मांगों। महिषासुर ने बहुत सोचा और फिर कहा- 'ठीक है प्रभो। देवता, असुर और मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें।' ब्रह्माजी 'एवमस्तु' कहकर अपने लोक चले गए। वर प्राप्त करने के बाद उसने तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा कर त्रिलोकाधिपति बन गया।
तब भगवान विष्णु ने सभी देवताओं के साथ मिलकर सबकी आदि कारण भगवती महाशक्ति की आराधना की। सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य तेज निकलकर एक परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुआ। हिमवान ने भगवती की सवारी के लिए सिंह दिया तथा सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किए। भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया।
भगवती दुर्गा हिमालय पर पहुंचीं और अट्टहासपूर्वक घोर गर्जना की। महिषासुर के असुरों के साथ उनका भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक-एक करके महिषासुर के सभी सेनानी मारे गए। फिर विवश होकर महिषासुर को भी देवी के साथ युद्ध करना पड़ा। महिषासुर ने नाना प्रकार के मायिक रूप बनाकर देवी को छल से मारने का प्रयास किया लेकिन अंत में भगवती ने अपने चक्र से महिषासुर का मस्तक काट दिया। कहते हैं कि देवी कात्यायनी को ही सभी देवों ने एक एक हथियार दिया था और उन्हीं दिव्य हथियारों से युक्त होकर देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध किया था।