माघ माह में कल्पवास करने का सबसे बड़ा पुण्य है। कल्पवास अर्थात कुछ काल के लिए या संपूर्ण माघ माह तक के लिए नदी के तट पर ही कुटिया बनाकर रहना और साधुओं के साथ व्रत, तप, उपवास, सत्संग आदि करना ही कल्पवास है। कल्पवास पौष माह के 11वें दिन से माघ माह के 12वें दिन तक रहता है। कल्पवास में सत्संग और स्वाध्याय का खास महत्व होता है।
सत्संग:
1. माघ माह में मंदिरों, आश्रमों, नदी के तट पर सत्संग, प्रवचन के साथ माघ महात्म्य तथा पुराण कथाओं का आयोजन होता है।
2. आचार्य विद्वानों द्वारा धर्माचरण की शिक्षा देने वाले प्रसंगों को श्रोताओं के समक्ष रखा जा रहा है।
3. कथा प्रसंगों के माध्यम से तन-मन की स्वस्थता बनाए रखने के लिए अनेक प्रसंग सुना जाता हैं।
4. सत्संग से धर्म का ज्ञान प्राप्त होता है। धर्म के ज्ञान से जीवन की बाधाओं से मुकाबला करने का समाधान मिलता है।
स्वाध्याय :
1. स्वाध्यय के दो अर्थ है। पहला स्वयं का अध्ययन करना और दूसरा धर्मग्रंथों का अध्ययन करना।
2. स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। अच्छे विचारों का अध्ययन करना और इस अध्ययन का अभ्यास करना।
3. आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें, वह सब कुछ जिससे आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो साथ ही आपको इससे खुशी भी मिलती हो। तो बेहतर किताबों को अपना मित्र बनाएं।