ब्रह्मा, विष्णु और महेश को ही सर्वोत्तम और स्वयंभू मान जाता है। क्या ब्रह्मा, विष्णु और महेश का कोई पिता नहीं है? वेदों में लिखा है कि जो जन्मा या प्रकट है वह ईश्वर नहीं हो सकता। ईश्वर अजन्मा, अप्रकट और निराकार है।
शिवपुराण के अनुसार उस अविनाशी परब्रह्म (काल) ने कुछ काल के बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की। उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। तब उस निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की, जो मूर्तिरहित परम ब्रह्म है। परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म। परम अक्षर ब्रह्म। वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है। एकांकी रहकर स्वेच्छा से सभी ओर विहार करने वाले उस सदाशिव ने अपने विग्रह (शरीर) से शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। सदाशिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धि तत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है।
वह शक्ति अम्बिका (पार्वती या सती नहीं) कही गई है। उसको प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेव जननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), नित्या और मूल कारण भी कहते हैं। सदाशिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की 8 भुजाएं हैं। पराशक्ति जगतजननी वह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है। एकांकिनी होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवशात अनेक हो जाती है। उस कालरूप सदाशिव की अर्द्धांगिनी हैं जिसे जगदम्बा भी कहते हैं।
माता सती को ही पार्वती, दुर्गा, काली, गौरी, उमा, जगदम्बा, गिरीजा, अम्बे, शेरांवाली, शैलपुत्री, पहाड़ावाली, चामुंडा, तुलजा, अम्बिका आदि नामों से जाना जाता है। कहते हैं कि माता सती के ही ये नए जन्म थे। यह किसी एक जन्म की कहानी नहीं कई जन्मों और कई रूपों की कहानी है। जो भी हो इस गुत्थी को सुलझाना थोड़ा मुश्किल है।
माता पार्वती का परिचय : माता पार्वती शिवजी की दूसरी पत्नीं थीं। मान्यता अनुसार शिवजी की तीसरी पत्नी उमा और चौथी काली थी। हालंकि इन्हें पार्वती का ही भिन्न रूप भी माना जाता है। पार्वती माता अपने पिछले जन्म में सती थीं। सती माता के ही 51 शक्तिपीठ हैं। माता सती के ही रूप हैं जिसे 10 महाविद्या कहा जाता है- काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। पुराणों में इनके संबंध में भिन्न भिन्न कहानियां मिलती है। दरअसल ये सभी देवियों की कहानी पुराणों में अलग-अलग मिलती है। इनमें से कुछ तो पार्वती का रूप या अवतार नहीं भी है।
दिव्योर्वताम सः मनस्विता: संकलनाम ।
त्रयी शक्ति ते त्रिपुरे घोरा छिन्न्मस्तिके च।।
देवी पार्वती के पिता का नाम हिमवान और माता का नाम रानी मैनावती था। माता पार्वती की एक बहन का नाम गंगा है, जिसने महाभारत काल में शांतनु से विवाह किया था और जिनके नाम पर ही एक नदी का नाम गंगा है।
माता पार्वती को ही गौरी, महागौरी, पहाड़ोंवाली और शेरावाली कहा जाता है। अम्बे और दुर्गा का चित्रण पुराणों में भिन्न मिलता है। अम्बे या दुर्गा को सृष्टि की आदिशक्ति माना गया है जो सदाशिव (शिव नहीं) की अर्धांगिनी है। माता पार्वती को भी दुर्गा स्वरूप माना गया है, लेकिन वे दुर्गा नहीं है। नवरात्रि का त्योहार माता पार्वत के लिए ही मनाया जाता है। पार्वती के 9 रूपों के नाम हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति.चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।