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धन-संपदा से संबंधित नौ निधियों को जानिए...

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, सोमवार, 10 नवंबर 2014 (09:49 IST)
हिन्दू धर्मग्रंथों में 9 निधियों का विस्तार से जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि धन के बिना जीवन के किसी भी आयाम को सार्थक रूप देना संभव नहीं हो पाता है। कहा भी गया है कि 'पहला सुख निरोगी काया/ दूजा सुख घर में हो माया', इसलिए धन यानी लक्ष्मी को धर्म के बाद दूसरा स्थान दिया गया है।
रामभक्त हनुमानजी को अष्ट सिद्धि नौनिधि का दाता माना गया है। दाता अर्थात देने वाला। हनुमान के भक्त को जहां अष्ट सिद्धियां प्राप्त होती हैं वही श्रेष्ठ और सात्विक निधि का वरदान भी मिलता है। 
 
हर व्यक्ति के थोड़ा-सा निष्ठापूर्ण परिश्रम करने से, साधना करने से कुछ न कुछ निधियां उसे प्राप्त हो ही जाती हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को धन-संपन्न होना ही चाहिए जिसके लिए हर व्यक्ति प्रयत्नशील भी रहता है। नौ निधियों का संबंध मुख्यतः संपदा से ही है। संपदा में चल और अचल संपत्ति होती है।
 
प्रत्येक व्यक्ति के धन प्रा‍प्ति के साधन अलग-अलग होते हैं और उनका धन कमाने का उद्देश्य भी अलग-अलग होता है। धन कमाने के 3 तरीके हैं- सात्विक, राजसिक और तामसिक। सात्विक तरीके से कमाया गया धन सात्विक फल देता है और तामसिक तरीके से कमाया हुआ तामसिक। हालांकि यहां पर निम्न निधियों का संबंध कमाने के तरीके से नहीं है। तो क्या हैं ये नौ निधियां? और इनके नाम क्या हैं? जानिए अगले पन्ने पर। 
 
अगले पन्ने पर नव निधियों के नाम... 
 
 
 
 

नव निधियां : 1. पद्म निधि, 2. महापद्म निधि, 3. नील निधि, 4. मुकुंद निधि, 5. नंद निधि, 6. मकर निधि, 7. कच्छप निधि, 8. शंख निधि और 9. खर्व या मिश्र निधि। माना जाता है कि नव निधियों में केवल खर्व निधि को छोड़कर शेष 8 निधियां पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने पर प्राप्त हो जाती हैं, परंतु इन्हें प्राप्त करना इतना भी सरल नहीं है।
 
अगले पन्ने पर जानिए पद्म निधि... 
 

1. पद्म निधि : पद्म निधि के लक्षणों से संपन्न मनुष्य सात्विक गुणयुक्त होता है, तो उसकी कमाई गई संपदा भी सात्विक होती है। सात्विक तरीके से कमाई गई संपदा पीढ़ियों को तार देती है। इसका उपयोग साधक के परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है। सात्विक गुणों से संपन्न व्यक्ति स्वर्ण-चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है। यह सात्विक प्रकार की निधि होती है जिसका अस्तित्व साधक के परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है।
 
अगले पन्ने पर जानिए महापद्म निधि... 
 

2. महापद्म निधि : यह निधि भी पद्म निधि की तरह सात्विक ही है। हालांकि इसका प्रभाव 7 पीढ़ियों के बाद नहीं रहता। इस निधि से संपन्न व्यक्ति भी दानी होता है।
 
अगले पन्ने पर जानिए नील निधि... 
 

3. नील निधि : इस निधि में सत्व और रज गुण दोनों ही मिश्रित होते हैं। ऐसी निधि व्यापार द्वारा ही प्राप्त होती है इसलिए इस निधि से संपन्न व्यक्ति में दोनों ही गुणों की प्रधानता रहती है। हालांकि इसे मधुर स्वभाव वाली निधि कहा गया है। ऐसा व्यक्ति जनहित के काम करता है और इस तरह इस निधि का प्रभाव 3 पीढ़ियों तक रहता है।
 
अगले पन्ने पर जानिए मुकुंद निधि... 
 

4. मुकुंद निधि : इस निधि में पूर्णत: रजोगुण की प्रधानता रहती है इसलिए इसे राजसी स्वभाव वाली निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति या साधक का मन भोगादि में ही लगा रहता है। यह निधि एक पीढ़ी बाद नष्ट हो जाती है।
 
अगले पन्ने पर जानिए नंद निधि... 
 

5. नंद निधि : इसी निधि में रज और तम गुणों का मिश्रण होता है। माना जाता है कि यह निधि साधक को लंबी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है। यह व्यक्ति कुटुम्ब की नींव होता है। तारीफ से खुश होता है। यह निधि साधक को लंबी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है।
 
अगले पन्ने पर जानिए मकर निधि... 
 

6. मकर निधि : इस निधि को तामसी निधि कहा गया है। इस निधि से संपन्न साधक अस्त्र और शस्त्र को संग्रह करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति का राजा और शासन में दखल होता है। वह शत्रुओं पर भारी पड़ता है और युद्ध के लिए तैयार रहता है, लेकिन उसकी मौत भी इसी कारण होती है।
 
अगले पन्ने पर जानिए कच्छप निधि... 
 

7. कच्छप निधि : इसका साधक अपनी संपत्ति को छुपाकर रखता है। न तो स्वयं उसका उपयोग करता है, न करने देता है। वह सांप की तरह उसकी रक्षा करता है।
 
अगले पन्ने पर जानिए शंख निधि... 
 

8. शंख निधि : इस निधि को प्राप्त व्यक्ति स्वयं की ही चिंता और स्वयं के ही भोग की इच्छा करता है। वह कमाता तो बहुत है, लेकिन उसके परिवार वाले गरीबी में ही जीते हैं। ऐसा व्यक्ति धन का उपयोग स्वयं के सुख-भोग के लिए करता है जिससे उसका परिवार दरिद्रता में जीवन गुजारता है।
 
अगले पन्ने पर जानिए खर्व निधि... 
 

9. खर्व निधि : इसे मिश्रत निधि भी कहते हैं। नाम के अनुरूप ही यह निधि अन्य 8 निधियों का सम्मिश्रण होती है। इस निधि से संपन्न व्यक्ति को मिश्रित स्वभाव का कहा गया है। उसके कार्यों और स्वभाव के बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।
 
उसका जीवन व व्यवहार उतार-चढ़ावभरा होता है। इस निधि से प्रभावित व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकता है और अनिश्चयी स्वभाव का होता है। माना जाता है कि इस निधि को प्राप्त व्यक्ति विकलांग व घमंडी होता हैं, जो समय आने पर लूटकर चल देता है।
 
अंत में सच्ची निधि... 
 

जीवन की प्रमुख दिशाएं 3 होती हैं- 1. आत्मिक, 2. बौद्धिक, 3. सांसारिक। इन तीनों दिशाओं में आत्मबल बढ़ने से आनंददायक परिणाम प्राप्त होते हैं।
 
आत्मिक क्षेत्र की 3 निधियां- 1. विवेक, 2. पवित्रता, 3. शांति हैं। बौद्धिक क्षेत्र की और सांसारिक क्षेत्र की 3 निधियां- 1. साहस, 2. स्थिरता, 3. कर्तव्यनिष्ठा हैं और सांसारिक क्षेत्र की 3 निधियां- 1. स्वास्थ्य, 2. समृद्धि, 3. सहयोग हैं।-पं. श्रीराम शर्मा 'आचार्य' 

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