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इन 10 बातों का विरोध कभी न करें, नहीं तो पछताना पड़ेगा

हमें फॉलो करें इन 10 बातों का विरोध कभी न करें, नहीं तो पछताना पड़ेगा

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

प्रत्येक व्यक्ति के भीतर विरोध की भावना होती है। कुछ इसे व्यक्त करते हैं और कुछ नहीं करते हैं। कुछ अपनी इस विरोध की भावना को विद्रोह में बदल कर सभी का अहित करते रहते हैं और कुछ के लिए विद्रोह न्यायसंगत होता है।

भारत में वामपंथियों द्वारा जनवादी विचारधारा और बौद्धिकता की आड़ में छात्रों में रोष भरा जाता रहा है जो अभी भी जारी है। विचारधाराओं का मोहरा बने इन छात्रों ने पिछले 70 वर्षों में देश को आगे नहीं बढ़ने दिया और आगे भी ये ऐसा ही करेंगे। इसमें इनका दोष नहीं है क्योंकि इनकी खुद की सोच नहीं है ये किसी उधार की सोच के नमुने हैं।
 
हमारे देश में अलगाववाद, माओवाद, जातिवाद और नक्सलवाद भी एक प्रकार का विरोध ही है जिसके चलते देश नर्क बना हुआ है। विरोध या विद्रोह के कई रूप हैं। विरोध की आग को भड़काने वालों के भी कई रूप होते हैं। लेकिन यह मानकर चलिए जिस भी घर, परिवार, समाज और राष्ट्र में यह भावना होती है वह कभी सुखी नहीं रहता है। विरोध या विद्रोह करने वाले यह नहीं जानते हैं। वे तो बस मोहरे होते हैं।
 
हम यहां हर तरह के विरोध को तो बता नहीं सकते, लेकिन फिर भी कुछ ऐसी बाते हैं जो पुराने समय में प्रचलित रही है। मध्यकाल के मनुष्यों का मानना था कि हमें कुछ बातों का विरोध नहीं करना चाहिए अन्यथा हम मुसिबत में पड़ सकते हैं। हालांकि आज वक्त बदल गया है, फिर भी इनमें से कुछ बातें तो आज भी मानी जाती है। 
 
अगले पन्ने पर पहली बात जिसका विरोध नहीं करना चाहिए...
 

रसोई बनाने वाले का विरोध : बहुत से लोग रसोई बनाने वाले के मामले में दखलअंदाजी करते हैं। वे कभी-कभी उसका विरोध भी करते हैं। ऐसा करने से रसोइये की मानसिकता भंग होती है और निश्चित ही उसका असर उसके भोजन पर पड़ता है। हालांकि इसके और भी कारण है। जो आपको भोजन देता है उसका विरोध कैसे करेंगे?
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आपको यह भी सोचना चाहिए कि आपके घर रोज खाना कौन बनाता है, आपकी पत्नी या आपकी मां। हो सकता है कि आपके घर खाना बनाने वाली आती हो। शादी या पार्टी में भी कई रसोइये होते हैं क्या कभी आपने उनका विरोध किया है?
 
अगले पन्ने पर दूसरा विरोध...
 

मूर्ख व्यक्ति का विरोध न करें: यदि कोई व्यक्ति मूर्ख है, तो उसका विरोध करके आप व्यर्थ ही अपनी उर्जा नष्ट न करें। मूर्ख व्यक्ति का विरोध करने से आपको और भी कई तरह के नुकसान उठाना पड़ सकते हैं। आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी दांव पर लग सकती है। यह भी कहा जाता है कि मूर्ख व्यक्ति से ज्ञान की बातें नहीं करना चाहिए। मूर्ख व्यक्ति का आप कितना ही भला करें वह कभी भी पलट जाएगा।
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मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दु:खिते सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति।।- चाणक्य नीति
 
मूर्ख व्यक्ति के साथ सोच-समझकर ही व्यवहार करना चाहिए। हो सके तो उससे बच कर निकल जाएं तो ही अच्छा है। यदि आप उसका विरोध करेंगे तो खुद भी मूर्ख साबित हो जाएंगे। पढ़े-लिखे मूर्खों से समाज और राष्ट्र का ज्यादा नुकसान होता है। हमारे देश में बहुत से राजनेता, अभिनेता, कलाकार, साहित्यकार और पत्रकार बंधु मूर्ख हैं आप जरा इनसे बच कर ही रहें।
 
अगले पन्ने पर तीसरा विरोध...
 

अपने बड़े अधिकारी या स्वामी से विरोध न करें : यदि आप किसी दफ्तर या कंपनी में कार्य कर रहे हैं, तो अपने किसी बड़े अधिकारी या मालिक से कभी भी वाद-विवाद या उसका विरोध न करें। क्यों नहीं करें यह तो आप जानते ही होंगे?
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यदि आपको लगता है कि कंपनी या दफ्तर में कुछ गलत हो रहा है। आपके साथ न्याय नहीं हो रहा है, तो आप पहले अपनी स्थिति का आकलन करें। कमजोर लोगों के लिए न्याय नहीं होता। इस सत्य को स्वीकारना भी जरूरी है। इस देश में कई बड़ी-बड़ी कंपनियां हड़ताल और विरोध के कारण बंद हो गई है। किसी का कुछ नहीं बिगड़ा। न कंप‍नी मालिक का और न ही कम्यूनिष्ट नेताओं का। लेकिन जिन कर्मचारियों ने विरोध का झंडा उठाया था उनका सबकुछ नष्ट हो गया। 
 
अगले पन्ने पर चौथा विरोध...
 

सत्तावान से विरोध : यदि आपका राजनीति या सत्ता से कोई वास्ता नहीं और आप दाल-रोटी की लड़ाई लड़ रहे हैं, तो आप किसी सत्तावान का कभी विरोध न करें। आपका साथ देने वाला कोई नहीं होगा।
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यह सही है कि जनतंत्र में सभी को विरोध करने का अधिकार मिलता है, लेकिन जनतंत्र भी तो होना चाहिए। अभी तो भीड़तंत्र, लाठीतंत्र या जातितंत्र है। भले ही संविधान ने आपको लाख अधिकार दे रखे हैं, लेकिन यदि आपको नगर-निगम का छोटा-सा भी कार्य करना हो तो सत्तावान की ही जरूरत पड़ेगी। हमारा समाज आदर्श समाज नहीं है जिसमें सत्तावान खुद को जनता का सेवक मानकर कार्य करें, इसलिए सत्तावान का अनावश्यक विरोध आप पर भारी पड़ सकता है।
 
अगले पन्ने पर पांचवां विरोध...
 
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शस्त्रधारी से अकेले में : किसी शस्त्रधारी से अकेले में कभी उसका विरोध न करें या उससे किसी भी प्रकार का वाद-विवाद न करें। हो सकता है कि आप मुसिबत में पड़ जाएं या यह भी हो सकता है कि आप बहुत हिम्मतवर हो और उसे मुसिबत में डाल दें। लेकिन दोनों ही स्थिति में आपके सामने समस्या तो खड़ी हो ही जाएगी।
 
अगले पन्ने पर छठा विरोध...
 

धनवान से विरोध : धनबल की भी अपनी ताकत होती है। यदि आप धनवान नहीं है या खुद को किसी दूसरे की अपेक्षा कम धनवान मान रहे हैं, तो उसका विरोध न करें।
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पुराने समय में कोई मूर्ख ही किसी धनपति का विरोध करता था। धनपतियों का शासन से संबंध होता है। वे सत्ता और धर्म को अपनी जेब में पालकर रखते हैं। आप सोचीए कि धन के बल पर कुछ भी किया जा सकता है? कम से कम आपको मुसिबत में तो डाला ही जा सकता है।
 
अगले पन्ने पर सातवां विरोध...
 

गुप्त रहस्य जानने वाले से: आज वक्त बदल गया है। लोग आगे रहकर अपने गुप्त रहस्य लोगों को बता देते हैं। हालांकि ये बात अलग है कि बाद में उन्हें मुसिबत उठाना पड़ती है। यदि आप गलत मार्ग पर हैं तभी आपका कोई रहस्य गुप्त रखने योग्य होगा।
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पुराने समाज के लोग मानते थे कि जो व्यक्ति आपके जीवन के गुप्त रहस्य जानता है उससे कभी विरोध नहीं करना चा‍हिए। यदि वह आपका शुत्र बन गया, तो कभी भी आपके जीवन में जहर घोल देगा। मध्यकाल में राजाओं के गुप्त रहस्य जानने वाले लोगों की बहुत कीमत थी।
 
अगले पन्ने पर आठवां विरोध...
 

वैद्य या डॉक्टर से विरोध : किसी वैद्य या डॉक्टर से कभी विरोध नहीं रखना चाहिए क्योंकि वक्त पर वही काम आता है। मध्यकाल में किसी गांव में एक ही वैद्य होता था। आज के डॉक्टरों की तरह कोई डॉक्टर तो होते नहीं थे इसलिए ऐसा माना जाता था कि वैद्य से विरोध करना उचित नहीं।
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आजकल तो हर गली-मोहल्ले में डॉक्टर होते हैं। इस डॉक्टर से विरोध है, तो दूसरे के यहां आप इलाज कराने चले जाएंगे। लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि उसी डॉक्टर से काम पड़ जाता है। दुनिया को गोल इसीलिए कहते हैं।
 
अगले पन्ने पर नौवां विरोध....
 

किसी विचारधारा से: विश्व में हजारों तरह की विचारधाराएं प्रचलित है। उनमें से कुछ हिंसक है तो कुछ अहिंसक, कुछ धार्मिक है तो कुछ अधार्मिक, कुछ नास्तिक है तो कुछ आस्तिक। सभी को यह लगता है कि क्रांतियां खूनी ही होती है। इन खूनी विचारधाराओं का समर्थन या विरोध करके आपने हाथ लाल न करें।
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हालांकि विभाजन और भी कई तरह के किए जा सकते हैं, जैसे वामपंथी, साम्राज्यवादी, पूंजीवादी, सामंती, सेकुलरवादी, सांप्रदायिक, अस्तित्ववाद और जातिवादी आदि। ये सभी विचारधाराएं मिलकर इस देश का नाश करने में लगी हुई है। पता नहीं इनका नाश कब होगा? ये सभी प्रकार की विचारधाराएं जीवन विरोधी हैं।
 
किसी भी प्रकार की विचारधारा ने अब तक किसका भला किया? विचारधाराएं होती है सत्ता को हथियाने के लिए। सत्ता को हथियाने के लिए जितने ज्यादा युवकों के दिमाग खराब किए जाएं उतना अच्छा होता है। इन विचारधाराओं के खात्मे के लिए एक ही रास्ता है कि इनका न पक्ष लो और न इनका विरोध करो। इनकी उपेक्षा करना ही एकमात्र विकल्प है।
 
अब आपके मन में सवाल यह होगा कि फिर हम किसे मानें? यदि आप समझदार होंगे तो आपने सभी को पढ़ा होगा और समझा भी होगा? आपने इसके साथ ही दुनिया के सभी दार्शनिकों को भी पढ़ा और समझा होगा? जो युद्ध विकास के रास्ते खोलता है वहीं युद्ध विनाश भी कर देता है।
 
अगले पन्ने पर दसवां विरोध...
 

कवि या भाट : पुराने समय में कवि और भाट का बहुत रुतबा और जान-पहचान थी इसलिए कहा जाता था कि इनका विरोध नहीं करना चाहिए। ये आपके लिए कभी भी मुसिबत खड़ी कर सकते हैं, लेकिन आज के जमाने में ऐसा नहीं है। हालांकि एक कवि की इतनी ताकत तो होती है कि वह सत्ता के नट-बोल्ट ढीले कर दे।
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अंत में विरोध करना चाहिए हर तरह के अन्याय के खिलाफ और आपके खिलाफ यदि कोई असत्य बोल रहा है तो भी विरोध करना चाहिए। अपके परिवार, समाज और देश के विरोध में कोई कुछ कह या कर रहा है, तो उसका जमकर विरोध करना चाहिए।

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