महाभारत युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- हे कुंतीनंदन! तेरे और मेरे कई जन्म हो चुके हैं। फर्क ये है कि मुझे मेरे सारे जन्मों की याद है, लेकिन तुझे नहीं। तुझे नहीं याद होने के कारण तेरे लिए यह संसार नया और तू फिर से आसक्ति पाले बैठा है।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। -गीता 2/22
अर्थात : जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होती है।
यहूदी, ईसाइयत, इस्लाम पुनर्जन्म के सिद्धांत को नहीं मानते हैं। उक्त तीनों धर्मों के समानांतर- हिन्दू, जैन और बौद्ध ये तीनों धर्म मानते हैं कि पुनर्जन्म एक सच्चाई है। योरप और भारत में ऐसे ढेरों किस्से मिल जाएंगे जिनको अपने पिछले जन्म की याद है। विज्ञान इस संबंध में अभी तक खोज कर रहा है, लेकिन वह किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा है। पूर्व जन्म के कई वृत्तांत पत्र-पत्रिकाओं व अखबारों में प्रकाशित हुए हैं। इस विषय पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं और बहुत सी फिल्में भी बनी है। प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात, प्लेटो और पायथागोरस भी पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे। दुनिया की लगभग सभी प्राचीन सभ्यताएं भी पुनर्जन्म में विश्वास करती थीं।
हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। उसकी यह भी मान्यता है कि प्रत्येक आत्मा मोक्ष प्राप्त करती है, जैसा कि गीता में कहा गया है।
वेदों में पुनर्जन्म को मान्यता है। उपनिषदकाल में पुनर्जन्म की घटना का व्यापक उल्लेख मिलता है। योग दर्शन के अनुसार अविद्या आदि क्लेशों के जड़ होते हुए भी उनका परिणाम जन्म, जीवन और भोग होता है। सांख्य दर्शन के अनुसार 'अथ त्रिविध दुःखात्यन्त निवृति ख्यन्त पुरुषार्थः।' पुनर्जन्म के कारण ही आत्मा के शरीर, इंद्रियों तथा विषयों से संबंध जुड़े रहते हैं। न्याय दर्शन में कहा गया है कि जन्म, जीवन और मरण जीवात्मा की अवस्थाएं हैं। पिछले कर्मों के अनुरूप वह उसे भोगती है तथा नवीन कर्म के परिणाम को भोगने के लिए वह फिर जन्म लेती है।
पुनर्जन्म पर कई लोगों और संस्थाओं ने शोध किए हैं। ओशो रजनीश ने पुनर्जन्म पर बहुत अच्छे प्रवचन दिए हैं। उन्होंने खुद के भी पिछले जन्मों के बारे में विस्तार से बताया है। हालांकि आधुनिक युग में पुनर्जन्म पर अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेंसन ने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब 'रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी' लीखी थी जिसे सबसे महत्वपूर्ण शोध किताब माना गया है।
वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेंसन ने पहली बार वैज्ञानिक शोधों और प्रयोगों के दौरान पाया कि शरीर न रहने पर भी जीवन का अस्तित्व बना रहता है। उपयुक्त अवसर आने पर वह अपने शरीर या पार्थिव रूप को फिर से रचता है। उन्हीं की टीम द्वारा किए प्रयोग और अनुसंधानों को स्पिरिट साइंस एंड मेटाफिजिक्स में संजोते हुए लिखा है कि पुनर्जन्म काल्पनिक नहीं हैं। उसकी संभावना निश्चित-सी है।
इसी प्रकार बेंगलुरु की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत पसरिया द्वारा इस विषय पर शोध किया गया था। उन्होंने अपने इस शोध को एक किताब का रूप दिया जिसका नाम है- 'श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ कैसेज इन इंडियास।' इस किताब में 1973 के बाद से भारत में हुई 500 पुनर्जन्म की घटनाओं का उल्लेख मिलता है।
इसी प्रकार गीता प्रेस गोरखपुर ने भी अपनी एक किताब 'परलोक और पुनर्जन्मांक' में ऐसी कई घटनाओं का वर्णन किया है जिससे पुनर्जन्म होने की पुष्टि होती है। वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा 'आचार्य' ने एक किताब लिखी है, 'पुनर्जन्म : एक ध्रुव सत्य।' इसमें पुनर्जन्म के बारे में अच्छी विवेचना की गई है। पुनर्जन्म में रुचि रखने वाले को ओशो की किताबें जैसे 'विज्ञान भैरव तंत्र' के अलावा उक्त दो किताबें जरूर पढ़ना चाहिए।
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पंच तत्वों का स्थूल शरीर और मन : हमारा यह शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है- आकाश, वायु, अग्नि, जल, धरती। शरीर जब नष्ट होता है तो उसके भीतर का आकाश, आकाश में लीन हो जाता है, वायु भी वायु में समा जाती है। अग्नि में अग्नि और जल में जल समा जाता है। अंत में बच जाती है राख, जो धरती का हिस्सा है। इसके बाद में कुछ है, जो बच जाता है उसे कहते हैं आत्मा। आत्मा कभी नहीं मरती।
जन्म और मृत्यु के बीच में जिंदगी मानी गई है लेकिन जिंदगी तो मरने के बाद भी जारी रहती है। जन्म और मृत्यु के बीच जो सबसे बड़ी कड़ी है वह है आत्मा। आत्मा शरीर में है तो संसार है और आत्मा ने शरीर को छोड़ दिया, तो पारलौकिक संसार है। विज्ञान के लिए जन्म और मृत्यु के बीच की कड़ी आत्मा सबसे उलझा रहस्य है।
इस आत्मा से जब स्थूल शरीर छूट जाता है या इसका स्थूल शरीर जलकर नष्ट हो जाता है, तब भी उसके पास दो चीजें बच जाती हैं जिसे मन और सूक्ष्म शरीर कहते हैं। शरीर तो भौतिक जगत का हिस्सा है, लेकिन मन अभौतिक है। यह मन ही आत्मा के साथ आकाशरूप में विद्यमान रहता है। इस मन में उसकी बुद्धि, सभी स्मृतियां और अनुभव संरक्षित रहते हैं। मृत्यु के बाद आत्मा सूक्ष्म शरीर में रहकर अगले जन्म मिलने का इंतजार करते रहती है।
इस इंतजार में कुछ आत्मा भूत बनकर भटकती है, तो कुछ गहरी सुषुप्ति अवस्था में रहती है, कुछ पितृलोक चली जाती है और कुछ देवलोक। लेकिन सभी को फिर से धरती पर पुन: किसी पशु, पक्षी या मनुष्य की योनि प्राप्त करने के लिए लौटना होता। जिसके जैसे कर्म और विचार उसको मिलते हैं, वैसी योनि। जन्म, मृत्यु और फिर से जन्म का यह चक्र तब तक चलता रहता है, जब तक कि आत्मा मोक्ष प्राप्त न कर ले। मोक्ष प्राप्त आत्मा ब्रह्मलोक में स्थिर रहती है।
कर्म और पुनर्जन्म एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। कर्मों के फल के भोग के लिए ही पुनर्जन्म होता है तथा पुनर्जन्म के कारण फिर नए कर्म संग्रहीत होते हैं। इस प्रकार पुनर्जन्म के दो उद्देश्य हैं- पहला, यह कि मनुष्य अपने जन्मों के कर्मों के फल का भोग करता है जिससे वह उनसे मुक्त हो जाता है। दूसरा, यह कि इन भोगों से अनुभव प्राप्त करके नए जीवन में इनके सुधार का उपाय करता है जिससे बार-बार जन्म लेकर जीवात्मा विकास की ओर निरंतर बढ़ती जाती है तथा अंत में अपने संपूर्ण कर्मों द्वारा जीवन का क्षय करके मुक्तावस्था को प्राप्त होती है।
जिस प्रकार इस संसार में आपाधापी और धक्का देकर अवसर छीन लेने की होड़ है उसी प्रकार सूक्ष्म जगत में धक्का देकर दुष्टात्मा श्रेष्ठ गर्भ छीन लेती है जिससे कोई दुष्ट चरित्र व्यक्ति किसी कुलीन और संस्कारित परिवार में जन्म ले लेता है, कोई गाली-गलौज करने वाला बालक अच्छे और कुलीन गर्भ में जन्म ले लेता है वहीं किसी असभ्य कुसंस्कारित माता के गर्भ से कोई शांत बालक जन्म ले लेता है।
आपको यह भी जानना चाहिए कि आत्मा मृत्यु के तुरंत बाद नया जन्म नहीं लेती है। कुछ सालों के बाद जब स्थिति अनुकूल होती है तभी आत्मा नए शरीर में प्रवेश करती है।
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पुनर्जन्म और ज्योतिष : कहते हैं कि कुंडली में आपके पिछले जन्म की स्थिति लिखी होती है। यह कि आप पिछले जन्म में क्या थे। कुंडली, हस्तरेखा या सामुद्रिक विद्या का जानकार व्यक्ति आपके पिछले जन्म की जानकारी के सूत्र बता सकता है।
ज्योतिष के अनुसार जातक के लग्न में उच्च या स्वराशि का बुध या चंद्र स्थिति हो तो यह उसके पूर्व जन्म में सद्गुणी व्यापारी (वैश्य) होने का सूचक है। किसी जातक के जन्म लग्न में मंगल उच्च राशि या स्वराशि में स्थित हो तो इसका अर्थ है कि वह पूर्व जन्म में क्षत्रिय योद्धा था।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी कोई जातक पैदा होता है तो वह अपनी भक्ति और भोग्य दशाओं के साथ पिछले जन्म के भी कुछ सूत्र लेकर आता है। ऐसा कोई भी जातक नहीं होता है, जो अपनी भुक्त दशा और भोग्य दशा के शून्य में पैदा हुआ हो।
ज्योतिष धारणा के अनुसार मनुष्य के वर्तमान जीवन में जो कुछ भी अच्छा या बुरा अनायास घट रहा है, उसे पिछले जन्म का प्रारब्ध या भोग्य अंश माना जाता है। पिछले जन्म के अच्छे कर्म इस जन्म में सुख दे रहे हैं या पिछले जन्म के पाप इस जन्म में उदय हो रहे हैं, यह खुद का जीवन देखकर जाना जाता सकता है।
हो सकता है इस जन्म में हम जो भी अच्छा या बुरा कर रहे हैं, उसका खामियाजा या फल अगले जन्म में भोगेंगे या पाप के घड़े को तब तक संभाले रहेंगे, जब तक कि वह फूटता नहीं है। हो सकता है इस जन्म में किए गए अच्छे या बुरे कर्म अगले जन्म तक हमारा पीछा करें।
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मनोवैज्ञानिक और पुनर्जन्म : मनोवैज्ञानिक भी यही कहते हैं कि व्यक्ति का जीवन कई कड़ियों में बंधा है और प्रत्येक कड़ी दूसरी कड़ी के साथ जुड़ी हुई है इसलिए एक जन्म के कार्यों का प्रभाव दूसरे जन्म के कार्यों पर भी पड़ता है। इस जन्म के संस्कार सूक्ष्म रूप से अंतरमन में प्रवेश होकर सूक्ष्म आत्मा से घुल-मिल जाते हैं और मरने के बाद भी वे संस्कार अगले जन्म को स्थानांतरित हो जाते हैं।
पिछले जन्म को प्रमाणित करने के लिए उनकी स्मृतियों के आधार पर परखने और सही पाने के बाद मान लेने की तकनीक बहुत पुरानी है। उस पर संदेह भी जताए गए हैं। अब जीन्स और गुणसूत्रों के आधार पर परखने की नई तकनीक काम में लाई जा रही है। 1998 से उपयोग की जा रही इस तकनीक के और भी रोचक और ज्यादा प्रामाणिक नतीजे सामने आए हैं।
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पुनर्जन्म और स्वप्न : व्यक्ति के मन या मस्तिष्क में उसके पूर्व जन्म की स्मृति सूक्ष्म रूप में विद्यमान रहती है। यह स्मृति कभी स्वप्न में तो कभी जाग्रत में स्वत: ही प्रकट होती रहती है। व्यक्ति इस पर कभी ध्यान नहीं दे पाता है।
कभी वह स्वन्न में किसी ऐसे शहर, गांव, गलियों में घूम रहा होता है जिसे उसने इस जन्म में भले ही नहीं देखा हो। कभी किसी को स्वप्न में बार-बार उफनती नदी का दृश्य, तो किसी को हथकड़ी नजर आती है। यह अकारण नहीं है। कभी किसी जन्म में किसी व्यक्ति ने कोई दुष्कर्म किया होगा जिसकी स्मृति में उसके साथ हथकड़ी चलती रहती है। कहीं किसी जन्म की आत्महत्या की स्मृति व्यक्ति के साथ कभी रस्सी के रूप में तो कभी नदी के रूप में चलती रहती है। इसी तरह कोई स्थान उसे हमेशा दिखाई देता रहता है जिसका संबंध उसके पिछले जन्म से होता है।
इसी तरह कभी जाग्रत अवस्था में भी व्यक्ति को कोई अनजाना व्यक्ति जाना-पहचाना लगता है। किसी गांव या शहर में वो कभी गया नहीं होगा, लेकिन वहां पहली बार जाने पर लगता होगा कि शायद वह पहले भी यहां आया था। कोई लगातार इस पर आंतरिक खोज करता रहे तो हो सकता है कि वह अपने पिछले जन्म का गांव, शहर या कोई एक घटना याद कर ले।
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धर्मगुरु दलाईलामा : तिब्बत में जन्मे बौद्ध धर्मगुरु दलाईलामा कई जन्मों से अपने संप्रदाय से जुड़े हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि उन्हें अपने पिछले जन्म और अगले जन्म का पूरा ही वृत्तांत याद है। पिछले जन्म में वे कहां पैदा हुए थे और इस शरीर को त्यागने के बाद उनका अगला जन्म कहां होगा, वे शरीर त्यागने से पहले ही अपने शिष्यों को बता जाते हैं। उनके शिष्य उनके देह त्याग के तत्काल बाद उनके अगले जन्म के रूप की खोजबीन कर पहचान लेते हैं और मठ आदि में लाकर उसे बाल्यकाल से ही श्रेष्ठ धर्मगुरु की पदवी मिल जाती है।
यह एक विशेष तकनीक द्वारा होता है। उनका दर्शन और ज्ञान और भाषा आदि का जप उच्चारण जन्म-जन्मांतर से उनके साथ जुड़ा हुआ रहता है और यह भी कहते हैं कि वे जहां भी जाते हैं, उस देश की ही भाषा में बात करते हैं। इसी तरह हिन्दुओं के नाथ और नागा साधुओं के संप्रदाय में कई साधुओं को अपने पिछले कई जन्मों की याद है।
किसी के पूर्व जीवन के बारे में जानकर वर्णन करने की व्यवस्था उस समय से थी जब स्वयं शाक्य मुनि बुद्ध जीवित थे। विनयवस्तु, जातक, विज्ञमूर्ख सूत्र और कर्मशतक इत्यादि अधिकतर सूत्र और तंत्र में कई विवरण मिलते हैं जिसमें तथागत द्वारा कर्मफल की व्यवस्था देते समय किस कर्म के संचय से आज इस फल का अनुभव किया जा रहा है, इसे विस्तार से दिखाया गया है। साथ ही भारतीय आचार्यों की जीवन कथाओं में जिनका जीवन बुद्ध के बाद था, कई अपने जन्म के पहले के स्थान को प्रकट करते हैं। ऐसी कई कहानियां हैं, पर उनके पहचान और उनके अवतरण की संख्या की व्यवस्था भारत में नहीं हुई, क्योंकि भारतीय राजनीतिक और धार्मिक व्यवस्था में भारी परिवर्तन हो चुका था। यह प्रथा तिब्बत में जारी रही।
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पुनर्जन्म और पशु-पक्षी : सभी ने 'नागिन' फिल्म तो देखी ही होगी। ऐसा माना जाता है कि सर्प यानी नाग को अपने 7 जन्मों की संपूर्ण स्मृति रहती है। ऊंट भी अपने 3 जन्मों का पूरा हाल जानते हैं। ऊंट और नाग योनि में ऐसे उदाहरण आते हैं, जब ऊंट अपने पुराने क्रूर स्वामी को इस जन्म में भी पहचान लेता है।
कोई सर्प किसी को भी अनावश्यक नहीं काटता। वह दो स्थिति में ही लोगों को काटता है पहला जबकि उसे लगे कि ये व्यक्ति मेरा लिए खतरा है और दूसरा जबकि उसे लगे कि यह व्यक्ति मेरे पिछले जन्म का दुश्मन है। वह जब भी आपको आक्रमण करेगा तो यही सोचकर करेगा कि पिछले जन्मों में आपने भी उसे कहीं पर तंग किया होगा।
अपने शत्रु से बदला लेने के लिए मगरमच्छ, ऊदबिलाव और भालू जैसे जानवर भी हैं, जो अपने पर उपकार करने वाले पिछले जन्मों के पात्रों को भी नहीं भूलते हैं और हमला करने वाले शत्रुओं को भी कई जन्मों तक दिमाग में संजोए हुए रहते हैं। उनका यह व्यवहार उनके मित्र या शत्रु के मिलने पर जाहिर हो जाता है।
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आठ कारणों से लेती आत्मा पुनर्जन्म : शास्त्रों के अनुसार आत्मा के पुनर्जन्म के संबंध में बताए गए 8 कारण-
1. भगवान की आज्ञा से : भगवान किसी विशेष कार्य के लिए महात्माओं और दिव्य पुरुषों की आत्माओं को पुन: जन्म लेने की आज्ञा देते हैं।
2. पुण्य समाप्त हो जाने पर : संसार में किए गए पुण्य कर्म के प्रभाव से व्यक्ति की आत्मा स्वर्ग में सुख भोगती है और जब तक पुण्य कर्मों का प्रभाव रहता है, वह आत्मा दैवीय सुख प्राप्त करती है। जब पुण्य कर्मों का प्रभाव खत्म हो जाता है तो उसे पुन: जन्म लेना होता है।
3. पुण्य फल भोगने के लिए : कभी-कभी किसी व्यक्ति द्वारा अत्यधिक पुण्य कर्म किए जाते हैं और उसकी मृत्यु हो जाती है, तब उन पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए आत्मा पुन: जन्म लेती है।
4. पाप का फल भोगने के लिए।
5. बदला लेने के लिए : आत्मा किसी से बदला लेने के लिए पुनर्जन्म लेती है। यदि किसी व्यक्ति को धोखे से, कपट से या अन्य किसी प्रकार की यातना देकर मार दिया जाता है तो वह आत्मा पुनर्जन्म अवश्य लेती है।
6. बदला चुकाने के लिए।
7. अकाल मृत्यु हो जाने पर।
8. अपूर्ण साधना को पूर्ण करने के लिए।
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कहते हैं कि मीराबाई द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण की ललिता नामक सखी थी, जो इस कलयुग में परम कृष्णभक्त के रूप में राणा सांगा के घर में अवतरित हुईं। वैसे तो वे पूर्णरूप से श्रीकृष्ण में तल्लीन रहीं लेकिन हजारों वर्षों तक उसकी आत्मा वायुमंडल में तैरती रही।
पुराणों के अनुसार त्रेतायुग में बालि, द्वापर युग में जरा व्याध के रूप में और लक्ष्मण द्वापर युग में भगवान कृष्ण के बड़े भ्राता बलराम के रूप में अवतरित हुए। नर और नारायण ऋषि ने ही क्रमश: अर्जुन और श्रीकृष्ण के रूप में इस धरा पर अवतार लिया। श्री रामकृष्ण परमहंस और मां शारदा मणि ने अनेक जन्मों तक साथ रहकर भागवत कार्यों में हाथ बंटाया। इस प्रकार प्राचीन ग्रंथों में पुनर्जन्म की घटनाओं के उल्लेख भरे पड़े हैं।
तीन उदाहरण प्रस्तुत हैं...
शांतनु : पितामह भीष्म के पिता का नाम शांतनु था। उनका पहला विवाह गंगा से हुआ था। पूर्व जन्म में शांतनु राजा महाभिष थे। उन्होंने बड़े-बड़े यज्ञ करके स्वर्ग प्राप्त किया। एक दिन बहुत से देवता और राजर्षि, जिसमें महाभिष भी थे, ब्रह्माजी की सेवा में उपस्थित थे। उसी समय वहां गंगा का आना हुआ और गंगा को देखकर राजा मोहित हो गए और एकटक उन्हें देखने लगे। तब ब्रह्माजी ने कहा कि महाभिष, तुम मृत्युलोक जाओ। जिस गंगा को तुम देख रहे हो, वह तुम्हारा अप्रिय करेगी और तुम जब उस पर क्रोध करोगे, तब इस शाप से मुक्त हो जाओगे।
भीष्म : हिन्दू धर्म में 33 प्रमुख देवता हैं। उनमें 8 वसु भी हैं। उन्हीं 8 वसुओं ने गंगा की कोख से जन्म लिया थे जिनको गंगा नदी में बहाती जा रही थी, लेकिन गंगा के 8वें पुत्र को राजा शांतनु ने नहीं बहाने दिया। इन आठों को गुरु वशिष्ठ ऋषि ने मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दिया था। गंगा ने अपने सातों पुत्रों को जन्म लेते ही मनुष्य योनि से मुक्त कर दिया था, लेकिन 8वां पुत्र रह गया। यही 8वां पुत्र भीष्म कहलाया।
विदुर : यमराज को ऋषि मांडव्य ने श्राप दिया था जिसके चलते यमराज को मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा। विदुर को यमराज का अवतार माना जाता है। ये धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र में निपुण थे। उन्होंने जीवनभर कुरु वंश के हित के लिए कार्य किया।
गौतम बुद्ध : कहते हैं कि गौतम बुद्ध जब बुद्धत्व प्राप्त कर रहे थे तब उन्हें बुद्धत्व प्राप्त करने के पहले पिछले कई जन्मों का स्मरण हुआ था। गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों की कहानियां जातक कथाओं द्वारा जानी जाती हैं।
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मरने के 20 मिनट बाद ही ले लिया जन्म : समाचार पत्रों में कुछ माह पूर्व छपी खबर के अनुसार ऐसी ही एक चमत्कारी घटना मैनपुरी (उत्तरप्रदेश) के तिलयानी गांव की है। साल 2010 में सत्यभान सिंह यादव के पुत्र मनोज को एक बिच्छू ने काट लिया। उस समय मनोज महज 8 साल का था।
मनोज को मिनी पीजीआई, सैफई में भर्ती कराया गया। इसी दिन तिलियानी के ही राजू की पत्नी को प्रसव पीड़ा होने पर मिनी पीजीआई में भर्ती कराया गया। यह अजब संयोग था कि रात के 10.40 बजे मनोज की मौत हो गई और लगभग 11 बजे राजू की पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम 'छोटू' रखा गया।
परिवार वालों का कहना है कि छोटू जब ढाई साल का हुआ तो वह मनोज के पिता सत्यभान को पापा कहकर बुलाने लगा। छोटू को अपने पूर्व जन्म के रिश्तेदार और उनसे जुड़ी बातें याद हैं।
सत्यभान का दावा है कि छोटू ने ऐसी कई बातें बताई हैं, जो मनोज या उसके घर वाले ही जानते थे। अब पुनर्जन्म को मानते हुए छोटू को सत्यभान और उसका परिवार मनोज की तरह प्यार करते हैं। छोटू के मां-बाप को इससे कोई ऐतराज नहीं है। उनका कहना है कि छोटू को दो-दो मां-बाप का प्यार मिल रहा है।
एसएन मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा विभागाध्यक्ष डॉ. विशाल सिन्हा का कहना है कि साइंस और मनोविज्ञान पिछले जन्म में विश्वास नहीं करता। लेकिन विज्ञान और मनोविज्ञान से परे एक और विज्ञान है जिसे 'परामनोविज्ञान' कहते हैं, जो इस तरह की घटनाओं का अध्ययन करता है।
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अमेरिका के कोलोराडी प्यूएली नामक गांव में रुथ सीमेंस नामक लड़की ने सन् 1995 ईस्वी में सिर्फ 5 साल की अवस्था में अपने पिछलों जन्म का सही हाल बताकर सभी को हैरान कर दिया था।
मोरे वनस्टाइन नामक विद्या विशारद ने अपने प्रयोग से रुथ सीमेंस को अर्द्धमूर्छित करके उसके पिछले जन्म की कई सूचनाएं प्राप्त की थीं। उसने बताया कि 1890 में आयरलैंड के कार्क नगर में उसका पिछला जन्म हुआ था, तब उसका नाम ब्राइडी मर्फी और पति का नाम मेकार्थी था।
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तुर्की के इस्तांबुल की विज्ञान अनुसंधान परिषद ने पुनर्जन्म की एक ऐसी घटना की पड़ताल की, जो निस्संदेह पुनर्जन्म से संबंधित थी। इस मामले का प्रमुख पात्र 4 वर्ष का बालक इस्माइल अतलिंट्रलिक पिछले जन्म में दक्षिण-पूर्व के अदना गांव का बाशिंदा आविद सुजुलयुस था। इसकी हत्या की गई थी। उसके 3 बच्चे थे- गुलशरां, लकी और हिकमत।
चार साल का इस्माइल सोते-सोते बच्चों के नाम पुकारने लगता और रोने लगता। एक दिन इस्माइल ने एक फेरी वाले को आइसक्रीम बेचते देखा। उसने अजनबी का नाम लेकर पुकारा- महमूद तुम तो साग-सब्जी बेचते थे, अब आइसक्रीम बेचने लगे। फेरी वाला दंग रह गया।
यह बच्चा कैसे उसका नाम जानता है और कैसे उससे पिछले व्यापार की चर्चा करता जबकि उसका जन्म भी नहीं हुआ था? बच्चे ने कहा कि तुम भूल गए मैं तुम्हारा चिर-परिचित आविद हूं। कई साल पहले उसका कत्ल हो गया था।
बच्चे को अदना नगर ले गए। वहां पहुंचा तो वह पिछले जन्म की बेटी गुलशरां को देखते ही पहचान गया। उसने हत्या के स्थान अस्तबल को भी दिखाया और बताया कि रमजान ने कुल्हाड़ी से हमला कर मुझे मार डाला। और विवरण भी सही पाए गए। उनके आधार पर पुलिस ने इस कत्ल की ठीक वैसी ही जांच की जैसी कि बच्चे ने बताई।
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पुनर्जन्म की स्मृति भुलाने का तरीका : उत्तर भारत में यह मान्यता है कि जो बच्चे अपने पिछले जन्म के बारे में जानकारी रखते हैं, उनकी मृत्यु छोटी उम्र में ही हो जाती है। इसलिए जो बच्चे पुनर्जन्म की घटनाओं को याद रखते हैं, उनके लिए पालक उसकी इस स्मृति को भुलाने के लिए कई तरह के जतन करते हैं। कई बार तो उसे कुम्हार के चाक पर बैठाकर चाक को उल्टा घुमाया जाता है ताकि उसकी स्मृति का लोप हो जाए।