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साईबाबा की सिद्धि और चमत्कार का रहस्य, जानिए

हमें फॉलो करें साईबाबा की सिद्धि और चमत्कार का रहस्य, जानिए
, बुधवार, 10 सितम्बर 2014 (12:44 IST)
बीड़ में कुछ दिन काम करने के बाद साईबाबा ने अपने गांव पाथरी का रुख किया इस आशा से कि वहां उनकी मां मिलेगी, भाई होंगे और वह उनका जन्म स्थान भी है, लेकिन वहां पहुंचने के बाद पता चला कि वहां कोई नहीं है। अंत में वे पड़ोस में रहने वाली चांद बी से मिले। चांद बी ने उनको सारा किस्सा बताया। चांद मियां को मरे बहुत दिन हो गए थे। हरिबाबू को देखकर चांद बी प्रसन्न हुईं।

चांद बी हरिबाबू (बाबा) के रहने-खाने की व्यवस्था के लिए उन्हें नजदीक के गांव सेलू (सेल्यु) के वैंकुशा आश्रम में ले गई। उस वक्त बाबा की उम्र 15 वर्ष रही होगी।

वैंकुशा बाबा एक दैवीय शक्ति संपन्न व्यक्ति थे और वे दत्त संप्रदाय की परंपरा का निर्वाह करने वाले संत थे। आश्रम के बाहर चांद बी और बाबा को इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि दोनों अपने पहनावे से मुस्लिम नजर आ रहे थे। बाबा ने भी फकीरों जैसा बाना धारण कर रखा था। चांद बी ने मन ही मन वैंकुशा बाबा की प्रार्थना की तो ध्यान में बैठे बाबा को एकदम जाग्रति आ गई और वे खुद ही उठकर आश्रम के द्वार पर आ गए।

बाबा से कुछ सवाल-जवाब करने के बाद वैकुंशा उनके उत्तरों से संतुष्ट हो गए और उन्होंने अपने आश्रम में उनको प्रवेश दिया। वे बाबा के उत्तरों से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने हरिबाबू (साई) को गले लगाकर अपना शिष्य बनाया।
अगले पन्ने पर बाबा के सिर पर बंधी कफनी का रहस्य...

वैकुंशा के दूसरे शिष्य साईबाबा से बैर रखते थे, लेकिन वैंकुशा के मन में बाबा के प्रति प्रेम बढ़ता गया और एक दिन उन्होंने अपनी मृत्यु के पूर्व बाबा को अपनी सारी शक्तियां दे दीं और वे बाबा को एक जंगल में ले गए, जहां उन्होंने पंचाग्नि तपस्या की। वहां से लौटते वक्त कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी लोग हरिबाबू (साईबाबा) पर ईंट-पत्थर फेंकने लगे।

बाबा को बचाने के लिए वैंकुशा सामने आ गए तो उनके सिर पर एक ईंट लगी। वैंकुशा के सिर से खून निकलने लगा। बाबा ने तुरंत ही कपड़े से उस खून को साफ किया।

वैंकुशा ने वही कपड़ा बाबा के सिर पर तीन लपेटे लेकर बांध दिया और कहा कि ये तीन लपेटे संसार से मुक्त होने और ज्ञान व सुरक्षा के हैं। जिस ईंट से चोट लगी थी बाबा ने उसे उठाकर अपनी झोली में रख लिया। इसके बाद बाबा ने जीवनभर इस ईंट को ही अपना सिरहाना बनाए रखा।

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आश्रम पहुंचने के बाद दोनों ने स्नान किया और फिर वैंकुशा ने बताया कि 80 वर्ष पूर्व वे स्वामी समर्थ रामदास की चरण पादुका के दर्शन करने के लिए सज्जनगढ़ गए थे, वापसी में वे शिर्डी में रुके थे। उन्होंने वहां एक मस्जिद के पास नीम के पेड़ के नीचे ध्यान किया और उसी वक्त गुरु रामदास के दर्शन हुए और उन्होंने कहा कि तुम्हारे शिष्यों में से ही कोई एक यहां रहेगा और उसके कारण यह स्थान तीर्थ क्षेत्र बनेगा। वैकुंशा ने आगे कहा कि वहीं मैंने रामदास की स्मृति में एक दीपक जलाया है, जो नीम के पेड़ के पास नीचे एक शिला की आड़ में रखा है।

इस वार्तालाप के बाद वैकुंशा ने बाबा को तीन बार सिद्ध किया हुआ दूध पिलाया। इस दूध को पीने के बाद बाबा को चमत्कारिक रूप से अष्टसिद्धि शक्ति प्राप्त हुई और वे एक दिव्य पुरुष बन गए। उन्हें परमहंस होने की अनुभूति हुई। इसके बाद वैकुंशा ने देह छोड़ दी। वैंकुशा के जाने के बाद सांई बाबा का आश्रम में रुकने का कोई महत्व नहीं रहा। इस आश्रम में बाबा करीब 8 वर्ष रहे यानी उस वक्त उनकी उम्र 22-23 वर्ष रही होगी।- shatayu

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