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रहस्यमयी 10 मणियां, जानिए कौन-सी

हमें फॉलो करें रहस्यमयी 10 मणियां, जानिए कौन-सी

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

वेद, रामायण, महाभारत और पुराणों में कई तरह की चमत्कारिक मणियों का जिक्र मिलता है। पौराणिक कथाओं में सर्प के सिर पर मणि के होने का उल्लेख मिलता है। पाताल लोक मणियों की आभा से हर समय प्रकाशित रहता है। सभी तरह की मणियों पर सर्पराज वासुकि का अधिकार है।

मणि एक प्रकार का चमकता हुआ पत्थर होता है। मणि को हीरे की श्रेणी में रखा जा सकता है। मणि होती थी यह भी अपने आप में एक रहस्य है। जिसके भी पास मणि होती थी वह कुछ भी कर सकता था। ज्ञात हो कि अश्वत्थामा के पास मणि थी जिसके बल पर वह शक्तिशाली और अमर हो गया था। रावण ने कुबेर से चंद्रकांत नाम की मणि छीन ली थी।

मान्यता है कि मणियां कई प्रकार की होती थीं। अगले पन्नों पर हम बताएंगे कि कौन-कौन-सी मणियां होती हैं।

मणियों के महत्व के कारण ही तो भारत के एक राज्य का नाम मणिपुर है। शरीर में स्थित 7चक्रों में से एक मणिपुर चक्र भी होता है। मणि से संबंधित कई कहानी और कथाएं समाज में प्रचलित हैं। इसके अलावा पौराणिक ग्रंथों में भी ‍मणि के किस्से भरे पड़े हैं।

मणियों को सामान्य हीरे से कहीं ज्यादा मूल्यवान माना जाता है। जैनियों में मणिभद्र नाम से एक महापुरुष हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि चिंतामणि को स्वयं ब्रह्माजी धारण करते हैं। रुद्रमणि को भगवान शंकर धारण करते हैं। कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं। इसी तरह और भी कई मणियां हैं जिनके चमत्कारों का उल्लेख पुराणों में है। आओ जानते हैं प्रमुख 10 मणियों के बारे में।

अगले पन्ने पर जानिए पहली रहस्यमयी मणि...

पारस मणि : पारस मणि का जिक्र पौराणिक और लोक कथाओं में खूब मिलता है। इसके हजारों किस्से और कहानियां समाज में प्रचलित हैं। कई लोग यह दावा भी करते हैं कि हमने पारस मणि देखी है। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में जहां हीरे की खदान है, वहां से 70 किलोमीटर दूर दनवारा गांव के एक कुएं में रात को रोशनी दिखाई देती है। लोगों का मानना है कि कुएं में पारस मणि है।

पारस मणि की प्रसिद्धि और लोगों में इसके होने को लेकर इतना विश्‍वास है कि भारत में कई ऐसे स्थान हैं, जो पारस के नाम से जाने जाते हैं। कुछ लोगों के आज भी पारस नाम होते हैं।

पारस मणि की खासियत : पारस मणि से लोहे की किसी भी चीज को छुआ देने से वह सोने की बन जाती थी। इससे लोहा काटा भी जा सकता है। कहते हैं कि कौवों को इसकी पहचान होती है और यह हिमालय के आस-पास ही पाई जाती है। हिमालय के साधु-संत ही जानते हैं कि पारस मणि को कैसे ढूंढा जाए, क्योंकि वे यह जानते हैं कि कैसे कौवे को ढूंढने के लिए मजबूर किया जाए।

अगले पन्ने पर दूसरी रहस्यमयी मणि...

नीलमणि : नीलमणि एक रहस्यमय मणि है। असली नीलमणि जिसके भी पास होती है उसे जीवन में भूमि, भवन, वाहन और राजपद का सुख होता है। इसे 'नीलम' भी कहा जाता है। लेकिन शनि का रत्न नीलम और नीलमणि में फर्क है। संस्कृत में नीलम को इन्द्रनील, तृषाग्रही नीलमणि भी कहा जाता है।

असली नीलमणि या नीलम से नीली या बैंगनी रोशनी निकली है, जो दूर तक फैल जाती है। विश्व का सबसे बड़ा नीलम 888 कैरेट का श्रीलंका में है जिसकी कीमत करीब 14 करोड़ आंकी गई है।

नीलम के प्रकार- 1. जलनील, 2. इन्द्रनील।

भारत में नीलमणि पर्वत भी है। भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य में नीलम पाया जाता है। कश्मीर में पहले नागवंशियों का राज था। नीलम विशुद्ध रंग मोर की गर्दन के रंग का होता है। कहते हैं कि नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में असली 'नीलमणि' रखी हुई है। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है कि नीलम का लाभ होता है या नहीं, यह दावे से नहीं कहा जा सकता।

अगले पन्ने पर तीसरी रहस्यमयी मणि...

नागमणि : नागमणि को भगवान शेषनाग धारण करते हैं। भारतीय पौराणिक और लोक कथाओं में नागमणि के किस्से आम लोगों के बीच प्रचलित हैं। नागमणि सिर्फ नागों के पास ही होती है। नाग इसे अपने पास इसलिए रखते हैं ताकि उसकी रोशनी के आसपास इकट्ठे हो गए कीड़े-मकोड़ों को वह खाता रहे। हालांकि इसके अलावा भी नागों द्वारा मणि को रखने के और भी कारण हैं।

नागमणि का रहस्य आज भी अनसुलझा हुआ है। आम जनता में यह बात प्रचलित है कि कई लोगों ने ऐसे नाग देखे हैं जिसके सिर पर मणि थी। हालांकि पुराणों में मणिधर नाग के कई किस्से हैं। भगवान कृष्ण का भी इसी तरह के एक नाग से सामना हुआ था।

छत्तीसगढ़ी साहित्य और लोककथाओं में नाग, नागमणि और नागकन्या की कथाएं मिलती हैं। मनुज नागमणि के माध्यम से जल में उतरते हैं। नागमणि की यह विशेषता है कि जल उसे मार्ग देता है। इसके बाद साहसी मनुज महल में प्रस्थित होकर नाग को परास्त कर नागकन्या प्राप्त करता है।

नागमणि के चमत्कार : नागमणि के बारे में कहा जाता है कि यह जिसके भी पास होती है उसकी किस्मत बदल जाती है। कहते हैं कि नागमणि में अलौकिक शक्तियां होती हैं। उसकी चमक के आगे हीरा भी फीका पड़ जाता है। मान्यता अनुसार नागमणि जिसके भी पास होती है उसमें भी अलौकिक शक्तियां आ जाती हैं और वह आदमी भी दौलतमंद हो जाता है। मणि का होना उसी तरह है जिस तरह की अलादीन के चिराग का होना। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है, यह कोई नहीं जानता।

अगले पन्ने पर चौथी रहस्यमयी मणि...

कौस्तुभ मणि : कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं। कौस्तुभ मणि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। पुराणों के अनुसार यह मणि समुद्र मंथन के समय प्राप्त 14 मूल्यवान रत्नों में से एक थी। यह बहुत ही कांतिमान मणि है।

यह मणि जहां भी होती है, वहां किसी भी प्रकार की दैवीय आपदा नहीं होती। यह मणि हर तरह के संकटों से रक्षा करती है। माना जाता है कि समुद्र के तल या पाताल में आज भी यह मणि पाई जाती है।

अगले पन्ने पर पांचवीं रहस्यमयी मणि...

चंद्रकांता मणि : भारत में चंद्रकांता मणि के नाम पर अब उसका उपरत्न ही मिलता है। इस मणि को धारण करने से भाग्य में वृद्धि होती है। किसी भी प्रकार की गंभीर दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। इससे वैवाहिक जीवन भी सुखमय व्यतीत होता है। चंद्रकांता मणि का उपरत्न पारदर्शी जल की तरह साफ-सुथरा होता है। यह चंद्रमा से संबंधित रत्न होता है।

माना जाता है कि असली चंद्रकांता मणि जिसके भी पास होती है उसका जीवन किसी चमत्कार की तरह पलट जाता है। कहने का मतलब उसका भाग्य अचानक बदल जाता है। इस मणि की तरह ही उसका जीवन में चमकने लगता है। उसकी हर तरह की इच्‍छाएं पूर्ण होने लगती हैं।

कहते हैं कि झारखंड के बैजनाथ मंदिर में चंद्रकांता मणि है। धनकुबेर की राजधानी अलकापुरी से राक्षसराज रावण द्वारा यहां पर यह मणि जड़ित की गई थी।

शुश्रुत संहिता में चन्द्र किरणों का उपचार के रूप में उल्लेख मिलता है जिनमें प्रमुख है अद्भुत चंद्रकांत मणि का उल्लेख। इस मणि की एक प्रमुख विशेषता होती है कि इसे चन्द्र किरणों की उपस्थति में रखने पर इससे जल टपकने लगता है। इस जल में कई अद्भुत औषधीय गुण होते हैं।

रक्षोघ्नं शीतलं हादि जारदाहबिषापहम्।
चन्द्रकान्तोद्भवम् वारि वित्तघ्नं विमलं स्मृतम्।। सुश्रुत 45/27।।


अर्थात चन्द्रकांता मणि से उत्पन्न जल कीटाणुओं का नाश करने वाला है। शीतल, आह्लाददायक, ज्वरनाशक, दाह और विष को शांत करने वाला है।

अगले पन्ने पर छठी रहस्यमयी मणि...

स्यमंतक मणि : स्यमंतक मणि को इंद्रदेव धारण करते हैं। कहते हैं कि प्राचीनकाल में कोहिनूर को ही स्यमंतक मणि कहा जाता था। कई स्रोतों के अनुसार कोहिनूर हीरा लगभग 5,000 वर्ष पहले मिला था और यह प्राचीन संस्कृत इतिहास में लिखे अनुसार स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था। दुनिया के सभी हीरों का राजा है कोहिनूर हीरा। यह बहुत काल तक भारत के क्षत्रिय शासकों के पास रहा फिर यह मुगलों के हाथ लगा। इसके बाद अंग्रेजों ने इसे हासिल किया और अब यह हीरा ब्रिटेन के म्यूजियम में रखा है। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है कि कोहिनूर हीरा ही स्यमंतक मणि है? यह शोध का विषय हो सकता है। यह एक चमत्कारिक मणि है।

भगवान श्रीकृष्ण को इस मणि के लिए युद्ध करना पड़ा था। उन्होंने मणि के लिए नहीं बल्कि खुद पर लगे मणि चोरी के आरोप को असिद्ध करने के लिए जाम्बवंत से युद्ध करना पड़ा था। दरअसल, यह मणि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित के पास थी और उन्हें यह मणि भगवान सूर्य ने दी थी।

सत्राजित ने यह मणि अपने देवघर में रखी थी। वहां से वह मणि पहनकर उनका भाई प्रसेनजित आखेट के लिए चला गया। जंगल में उसे और उसके घोड़े को एक सिंह ने मार दिया और मणि अपने पास रखी ली। सिंह के पास मणि देखकर जाम्बवंतजी ने सिंह को मारकर मणि उससे ले ली और उस मणि को लेकर वे अपनी गुफा में चले गए, जहां उन्होंने इसको खिलौने के रूप में अपने पुत्र को दे दी। इधर सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर आरोप लगा दिया कि यह मणि उन्होंने चुराई है।

तब श्रीकृष्ण को यह मणि हासिल करने के लिए जाम्बवंतजी से युद्ध करना पड़ा। बाद में जाम्बवंत जब युद्ध में हारने लगे तब उन्होंने अपने प्रभु श्रीराम को पुकारा और उनकी पुकार सुनकर श्रीकृष्ण को अपने रामस्वरूप में आना पड़ा। तब जाम्बवंत ने समर्पण कर अपनी भूल स्वीकारी और उन्होंने मणि भी दी और श्रीकृष्ण से निवेदन किया कि आप मेरी पुत्री जाम्बवती से विवाह करें।

जाम्बवती-कृष्ण के संयोग से महाप्रतापी पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम साम्ब रखा गया। इस साम्ब के कारण ही कृष्ण कुल का नाश हो गया था। श्रीकृष्ण ने कहा कि कोई ब्रह्मचारी और संयमी व्यक्ति ही इस मणि को धरोहर के रूप में रखने का अधिकारी है अत: श्रीकृष्ण ने वह मणि अक्रूरजी को दे दी। उन्होंने कहा कि अक्रूर, इसे तुम ही अपने पास रखो। तुम जैसे पूर्ण संयमी के पास रहने में ही इस दिव्य मणि की शोभा है। श्रीकृष्ण की विनम्रता देखकर अक्रूर नतमस्तक हो उठे।

अगले पन्ने पर सातवीं रहस्यमयी मणि...

स्फटिक मणि : स्फटिक मणि सफेद रंग की चमकदार होती है। यह आसानी से मिल जाती है। फिर भी इसके असली होने की जांच कर ली जानी चाहिए।

स्फटिक मणि की अंगूठी भी होती है। अधिकतर लोग स्फटिक की माला धारण करते हैं। हालांकि स्फटिक को धारण करने के अपने कुछ खास नियम होते हैं अन्यथा यह नुकसानदायक भी सिद्ध हो सकता है।

इसको धारण करने से सुख, शांति, धैर्य, धन, संपत्ति, रूप, बल, वीर्य, यश, तेज व बुद्धि की प्राप्ति होती है तथा इसकी माला पर किसी मंत्र को जप करने से वह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है। स्फटिक मणि के कई चमत्कारों का वर्णन ज्योतिषियों के ग्रंथों में मिलता है।

अगले पन्ने पर आठवीं रहस्यमयी मणि...

लाजावर्त मणि : इस मणि का रंग मयूर की गर्दन की भांति नील-श्याम वर्ण के स्वर्णिम छींटों से युक्त होता है। यह मणि भी प्राय: कम ही पाई जाती है।

लाजावर्त मणि को धारण करने से बल, बुद्धि एवं यश की वृद्धि होती ही है। माना जाता है कि इसे विधिवत रूप से मंगलवार के दिन धारण करने से भूत, प्रेत, पिशाच, दैत्य, सर्प आदि का भी भय नहीं रहता।

अगले पन्ने पर नौवीं रहस्यमयी मणि...

उलूक मणि : उलूक मणि के बारे में ऐसी कहावत है कि यह मणि उल्लू पक्षी के घोंसले में पाई जाती है। हालांकि अभी तक इसे किसी ने देखा नहीं है। माना जाता है कि इसका रंग मटमैला होता है।

यह किंवदंती है कि किसी अंधे व्यक्ति को यदि घोर अंधकार में ले जाकर द्वीप प्रज्वलित कर उसकी आंख से इस मणि को लगा दें तो उसे दिखाई देने लगता है। दरअसल यह नेत्र ज्योति बढ़ाने में लाभदायक है।

अंत में जानिए कुछ खास मणियों की संक्षिप्त जानकारी...

उलूक मणि : उलूक मणि के बारे में ऐसी कहावत है कि यह मणि उल्लू पक्षी के घोंसले में पाई जाती है। हालांकि अभी तक इसे किसी ने देखा नहीं है। माना जाता है कि इसका रंग मटमैला होता है।

यह किंवदंती है कि किसी अंधे व्यक्ति को यदि घोर अंधकार में ले जाकर द्वीप प्रज्वलित कर उसकी आंख से इस मणि को लगा दें तो उसे दिखाई देने लगता है। दरअसल यह नेत्र ज्योति बढ़ाने में लाभदायक है।

अंत में जानिए कुछ खास मणियों की संक्षिप्त जानकारी...

प्रमुख मणियां 9 मानी जाती हैं- घृत मणि, तैल मणि, भीष्मक मणि, उपलक मणि, स्फटिक मणि, पारस मणि, उलूक मणि, लाजावर्त मणि, मासर मणि।

* घृत मणि की माला धारण कराने से बच्चों को नजर से बचाया जा सकता है।
* इस मणि को धारण करने से कभी भी लक्ष्‍मी नहीं रूठती।
* तैल मणि को धारण करने से बल-पौरूष की वृद्धि होती है।
* भीष्मक मणि धन-धान्य वृद्धि में सहायक है।
* उपलक मणि को धारण करने वाला व्यक्ति भक्ति व योग को प्राप्त करता है।
* उलूक मणि को धारण करने से नेत्र रोग दूर हो जाते हैं।
* लाजावर्त मणि को धारण करने से बुद्धि में वृद्धि होती है।
* मासर मणि को धारण करने से पानी और अग्नि का प्रभाव कम होता है।

संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

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