Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

क्या तुम शूद्र हो?

हमें फॉलो करें क्या तुम शूद्र हो?
प्राचीनकाल में वर्ण होते थे लेकिन वर्तमान में इन्होंने जाति या समाज का रूप धारण के सत्यानाश कर दिया है। शूद्र, क्षत्रिय, वैश्य और फिर ब्राह्मण। यह मनुष्य की चार तरह की श्रेणियां थीं। शूद्र (क्षुद्र) रस्सी का प्रथम सिरा है तो ब्राह्मण रस्सी का अंतिम सिरा। प्रत्येक व्यक्ति को ब्राह्मण बनना है। जन्म से प्रत्येक व्यक्ति शूद्र है। प्रत्येक व्यक्ति शूद्र ही पैदा होता है, लेकिन वह बड़ा होकर कर्म या अपने भावानुसार क्षत्रिय, वैश्य या ब्राह्मणत्व धारण करता है। बहुत से लोग हैं जो किसी न किसी प्रकार का छोटा व्यापार करते हैं वह भी वैश्य ही है।

दुनिया के हर देश और धर्म में चार तरह के लोग मिल जाएंगे। 
1.पहले वे जो ज्ञान, विज्ञान और धर्म में रुचि रखते हैं और सत्य आचरण करते हैं। पहले किस्म के लोग जरूरी नहीं है कि धर्म-कर्म में रुचि रखने वाले ही हों। वे साहित्य और सृजन के किसी भी क्षेत्र में रुचि रखने वाले हो सकते हैं। ब्राह्मणत्व से तात्पर्य है जो ब्रह्म में विश्वास रखते हुए श्रेष्ठ चिन्तन व श्रेष्ठ कर्म का हो। दलित, आदिवासी आदि समाज के लोगों में ब्राह्मण मिलते हैं।

2.दूसरे वे जो राजनीति और शक्ति के कार्य में रुचि रखते हैं। दूसरे किस्म के लोग जरूरी नहीं है कि राजनीति में ही रुचि रखने वाले हों। वे अच्‍छे सैनिक, खिलाड़ी, प्रबंधक और पराकर्म दर्शाने वाले सभी कर्म में रुचि रखने वालों में भी हो सकते हैं।

3.तीसरे वे जो उद्योग-व्यापार में रुचि रखकर सभी के हित के लिए कार्य करते हैं। तीसरे किस्म के लोग व्यापारी के अलावा श्रेष्ठ किस्म के व्यवस्थापक, अर्थ के ज्ञाता, बैंक या वित्त विभाग को संभालने वाले आदि हो सकते हैं।

4.चौथे किस्म के वे लोग जो किसी भी कार्य में रुचि नहीं रखते। जो रा‍क्षसी कर्म में ही रुचि रखते हैं अर्थात जिनकी दिनचर्या में शामिल होता है खाना, पीना, संभोग करना और सो जाना।

चौथे किस्म के लोग जरूरी नहीं है कि पशुवत या राक्षसी जीवन जीने वाले लोग ही हों, वे अपराधी और हर समय बुरा ही सोचने, बोलने और करने वाले लोग भी हो सकते हैं। वे मूढ़ किस्म के लोग होते हैं। ऐसे लोग पढ़े लिखे भी हो सकते हैं और अनपढ़ भी।

शूद्रत्व से अर्थ है ब्रह्म को छोड़कर अन्य में मन रमाने वाला निकृष्ट चिंतन व निकृष्ट कर्म करने वाला। तथाकथित ब्राह्मण समाज में भी शूद्र होते हैं। प्राचीन काल में शूद्र को निशाचरी, राक्षसी और प्रेत कर्म करने वाला माना जाता था। बाद में इसे दास माना गया और बाद में छोटे कर्म करने वाला कहा जाने लगा। हर काल में इसकी संज्ञा बदलती रही लेकिन कोई भी धर्मसम्मत बात नहीं करता।

शनकैस्तु क्रियालोपदिनाः क्षत्रिय जातयः।
वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणा दर्शनेन च॥
पौण्ड्रकाशचौण्ड्रद्रविडाः काम्बोजाः भवनाः शकाः ।
पारदाः पहल्वाश्चीनाः किरताः दरदाः खशाः॥- मनुसंहिता (1- (/43-44)

अर्थात ब्राह्मणत्व की उपलब्धि को प्राप्त न होने के कारण उस क्रिया का लोप होने से पोण्ड्र, चौण्ड्र, द्रविड़ काम्बोज, भवन, शक, पारद, पहल्व, चीनी किरात, दरद व खश ये सभी क्षत्रिय जातियां धीरे-धीरे शूद्रत्व को प्राप्त हो गयीं।

ब्राह्मण कौन ?
न जटाहि न गोत्तेहि न जच्चा होति ब्राह्मणो।
यम्हि सच्चं च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो॥- बुद्ध

अर्थात ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न गोत्र से और न जन्म से। जिसमें सत्य है, धर्म है और जो पवित्र है, वही ब्राह्मण है।

बुद्ध कहते हैं- जो ध्यानी, निर्मल, स्थिर, कृतकृत्य और आस्रव (चित्तमल) से रहित है, जिसने सत्य को पा लिया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं। ब्राह्मण वह है जो निष्पाप है, निर्मल है, निरभिमान है, संयत है, वेदांत-पारगत है, ब्रह्मचारी है, ब्रह्मवादी (निर्वाण-वादी) और धर्मप्राण है। जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है।

बुद्ध जो कहते हैं उसके ठीक विपरित जो है वह शूद्र है।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi