हिन्दू धर्म के चार सिद्धांत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से धर्म के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है। धर्म की परिषाभा या धर्म के रहस्य को जानने के बजाय यह जरूरी है कि धर्म हमारे जीवन में किस तरह से बदलाव ला सकता है। कैसे हमारे जीवन की समस्याओं का समाधान हो सकता है? और, हम कैसे एक सफल इंसान बन सकते हैं?
किसी साधन को प्राप्त करने के लिए साधना करने की जरूरत होती है। आप जिंदगी में कुछ भी पाना चाहते हैं, धर्म, समृद्धि, सिद्धि, चमत्कार या मोक्ष तो आपके लिए धर्म के कुछ ऐसे मार्ग बताएं जा रहे हैं जिन पर चलकर आप कामयाबी के परचम को छू सकते हैं। बशर्ते की शर्त यह है कि आपका रास्ता सात्विक और लोगों का कल्याण करने वाला हो।
यहां जो लिखा जा रहा है पाठक कृपया अपने विवेक का उपयोग करें। यहां आपको हर तरह की विधियां, चमत्कारिक साधनाएं और रहस्यमयी बातों के बारे में बताएंगे। आप किसी योग्य गुरु से सलाह लेकर ही ऐसा कार्य करें।
तंत्र साधना : तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी तथा दूसरी दक्षिण मार्गी। वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है। वाम मार्गी तंत्र साधना में 6 प्रकार के कर्म बताए गए हैं जिन्हें षट् कर्म कहते हैं।
शांति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा।
गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषणः॥
अर्थात शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण ये छ: तांत्रिक षट् कर्म।
इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:-
मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्।
आकर्षण यक्षिणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥
मारण, मोहनं, स्तम्भनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये 9 प्रयोग हैं।
रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शन्तिर किता।
विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्॥
पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्।
स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥
प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्।
अर्थात : जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाए, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तम्भन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं।
मंत्र साधना : मंत्र साधना भी कई प्रकार की होती है। मंत्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है और मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है। मंत्र का अर्थ है मन को एक तंत्र में लाना। मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। ‘मंत्र साधना’ भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है।
मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1. वैदिक मंत्र, 2. तांत्रिक मंत्र और 3. शाबर मंत्र।
मंत्र जप के भेद- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप।
वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है।
मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है। किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए।
साबर साधनाएं : वैदिक अथवा तांत्रोक्त अनेक ऐसे मंत्र हैं, जिसमें साधना करने के लिए अत्यंत सावधानी की जरूरत होती है। असावधानी से कार्य करने पर प्रभाव प्राप्त नहीं होता अथवा सारा श्रम व्यर्थ चला जाता है, परंतु शाबर मंत्रों की साधना या सिद्धि में ऐसी कोई आशंका नहीं होती। यह सही है कि इनकी भाषा सरल और सामान्य होती है। माना जाता है कि लगभग सभी साबर साधनाओं और मंत्रों का अविष्कार गुरु गोरखनाथ ने किया है।
।।ओम गुरुजी को आदेश गुरजी को प्रणाम, धरती माता धरती पिता, धरती धरे ना धीरबाजे श्रींगी बाजे तुरतुरि आया गोरखनाथमीन का पुत् मुंज का छड़ा लोहे का कड़ा हमारी पीठ पीछे यति हनुमंत खड़ा, शब्द सांचा पिंड काचास्फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।।
इस मन्त्र को सात बार पढ़ कर चाकू से अपने चारों तरफ रक्षा रेखा खींच ले गोलाकार, स्वयं हनुमानजी साधक की रक्षा करते हैं। शर्त यह है कि मंत्र को विधि विधान से पढ़ा गया हो।
साबर मंत्रों को पढ़ने पर ऐसा कुछ भी अनुभव नहीं होता कि इनमें कुछ विशेष प्रभाव है, परंतु मंत्रों का जप किया जाता है तो असाधारण सफलता दृष्टिगोचर होती है। कुछ मंत्र तो ऐसे हैं कि जिनको सिद्ध करने की जरूरत ही नहीं है, केवल कुछ समय उच्चारण करने से ही उसका प्रभाव स्पष्ट दिखाई देने लगता है। यदि किसी मंत्र की संख्या निर्धारित नहीं है तो मात्र 1008 बार मंत्र जप करने से उस मंत्र को सिद्ध समझना चाहिए।
दूसरी बात शाबर मंत्रों की सिद्धि के लिए मन में दृढ़ संकल्प और इच्छा शक्ति का होना आवश्यक है। जिस प्रकार की इच्छा शक्ति साधक के मन में होती है, उसी प्रकार का लाभ उसे मिल जाता है। यदि मन में दृढ़ इच्छा शक्ति है तो अन्य किसी भी बाह्य परिस्थितियों एवं कुविचारों का उस पर प्रभाव नहीं पड़ता।
यंत्र साधना : यंत्र साधना सबसे सरल है। बस यंत्र लाकर और उसे सिद्ध करके घर में रखें लोग तो अपने आप कार्य सफल होते जाएंगे। यंत्र साधना को कवच साधना भी कहते हैं। यंत्र को दो प्रकार से बनाया जाता है- अंक द्वारा और मंत्र द्वारा। यंत्र साधना में अधिकांशत: अंकों से संबंधित यंत्र अधिक प्रचलित हैं। श्रीयंत्र, घंटाकर्ण यंत्र आदि अनेक यंत्र ऐसे भी हैं जिनकी रचना में मंत्रों का भी प्रयोग होता है और ये बनाने में अति क्लिष्ट होते हैं।
इस साधना के अंतर्गत कागज अथवा भोजपत्र या धातु पत्र पर विशिष्ट स्याही से या किसी अन्यान्य साधनों के द्वारा आकृति, चित्र या संख्याएं बनाई जाती हैं। इस आकृति की पूजा की जाती है अथवा एक निश्चित संख्या तक उसे बार-बार बनाया जाता है। इन्हें बनाने के लिए विशिष्ट विधि, मुहूर्त और अतिरिक्त दक्षता की आवश्यकता होती है।
यंत्र या कवच भी सभी तरह की मनोकामना पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं जैसे वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण, धन अर्जन, सफलता, शत्रु निवारण, भूत बाधा निवारण, होनी-अनहोनी से बचाव आदि के लिए यंत्र या कवच बनाए जाते हैं।
दिशा- प्रत्येक यंत्र की दिशाएं निर्धारित होती हैं। धन प्राप्ति से संबंधित यंत्र या कवच पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं तो सुख-शांति से संबंधित यंत्र या कवच पूर्व दिशा की ओर मुंह करके रख जाते हैं। वशीकरण, सम्मोहन या आकर्षण के यंत्र या कवच उत्तर दिशा की ओर मुंह करके, तो शत्रु बाधा निवारण या क्रूर कर्म से संबंधित यंत्र या कवच दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके रखे जाते हैं। इन्हें बनाते या लिखते वक्त भी दिशाओं का ध्यान रखा जाता है।
योग साधना : सभी साधनाओं में श्रेष्ठ मानी गई है योग साधना। यह शुद्ध, सात्विक और प्रायोगिक है। इसके परिणाम भी तुरंत और स्थायी महत्व के होते हैं। योग कहता है कि चित्त वृत्तियों का निरोध होने से ही सिद्धि या समाधि प्राप्त की जा सकती है- 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः'।
मन, मस्तिष्क और चित्त के प्रति जाग्रत रहकर योग साधना से भाव, इच्छा, कर्म और विचार का अतिक्रमण किया जाता है। इसके लिए यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये 5 योग को प्राथमिक रूप से किया जाता है। उक्त 5 में अभ्यस्त होने के बाद धारणा और ध्यान स्वत: ही घटित होने लगते हैं। योग साधना द्वार अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति की जाती है। सिद्धियों के प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अपनी सभी तरह की मनोकामना पूर्ण कर सकता है।
ध्यान साधना : हालांकि ध्यान योग का ही एक अंग है। फिर भी ध्यान को सर्वोच्च माना गया है। मात्र ध्यान करते रहने से भी सिद्धि और समृद्धि के द्वारा खुलने लगते हैं। भागती दौड़ती और चिंता से ग्रस्त जिंदगी में हमारे मस्तिष्क की क्षमता कमजोर होती जाती है जिसके कारण शरीर सहित आत्मविश्वास भी कमजोर हो जाता है। तेज रफ्तार से दौड़ती दुनिया में ज्यादातर लोग रफ्तार के दबाव से टूट जाते हैं और तनाव, चिंता, अवसाद आदि के शिकार हो जाते हैं। ऐसे में ध्यान की शक्ति से मस्तिष्क की शक्ति बढ़ाकर खुद को शक्तिशाली बनाए रखा जा सकता है।
सावधानी : ध्यान की शक्ति को बढ़ाने के लिए शाकाहारी होना आवश्यक है। शाकाहार में भी मिर्च, मसाला, बेसन, खट्टे पदार्थ और यहां तक कि दूध और घी का प्रयोग भी वर्जित है। यह शाकाहार सिर्फ खाने-पीने में ही नहीं, पहनने, ओढ़ने में भी होना चाहिए। अर्थात ऊन, सिल्क, फर व चमड़े की बनी कोई वस्तु या वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए।
कैसे प्राप्त करें ध्यान की शक्ति : किसी भी सुखासन में बैठकर प्रतिदिन सुबह, शाम और रात सोते वक्त 15 मिनट का ध्यान करें। इसकी शुरुआत में मध्यम स्वर में तीन बार ॐ का उच्चारण करते हुए आंखें बंद कर लें। ध्यान के मध्य में श्वासों के आवगम को गहराएं। ध्यान के अंत में हाथों की हथेलियों से चेहरे को स्पर्श करते हुए आंखें खोल दें। फिर ध्यान के बाद 26 बार पलकें झपकाएं। अंत में ब्रह्म मुद्रा करने के बाद ध्यान का समापन करे दें।
विशेष : 40 दिनों तक ध्यान करते रहने के बाद ध्यान की शक्ति का अहसास होना शुरू हो जाता है। व्यक्ति स्वयं को ऊर्जावान और हमेशा तरोताजा महसूस करता है। मस्तिष्क अच्छे तरीके से सक्रिय होकर सकारात्मक सोच का निर्माण करता है। ध्यान की शक्ति को सम्भालना जरूरी है अन्यथा कई लोग नियम और परहेज छोड़कर भी ध्यान करते हैं जिसका लाभ कम ही मिल पाता है।
ध्यान की शक्ति का लाभ :
*मस्तिष्क की शक्ति को ध्यान की सहायता से कई गुना बढ़ाया जा सकता है और जीवन के लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं।
*ध्यान से तनाव ही नहीं, पीठ का दर्द, लकवा, मांसपेशियों में खिंचाव, मधुमेह व अस्थमा जैसे रोगों का उपचार भी संभव है।
*याददाश्त बढ़ाने, मन-मस्तिष्क को एकाग्र करने, आत्मविश्वास बढ़ाने और आज के प्रतिस्पर्द्धी वातावरण के दबावों का सामना करने के लिए ध्यान की शक्ति महत्वपूर्ण सिद्ध होती है।